वर्षाजल संचयन के साथ ही जलस्रोतों का भी बचाया जाना जरूरी है

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अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पर्यावरणविद् सुनीता नारायण ‘सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरनमेंट’ (सीएसई) की मुखिया हैं। लगभग चालीस सालों से सीएसई जल संचय के परंपरागत तरीकों और लगभग 30 सालों से वाटर हार्वेस्टिंग के नये तरीकों पर काम कर रहा है। 1980 में ही सीएसई ने रूफ टॉप रेनवाटर हार्वेस्टिंग की संकल्पना रखी, जिसकी तरफ सरकारों का भी ध्यान गया। देश के कई शहरों में रेनवाटर हार्वेस्टिंग अनिवार्य किया गया। पर प्रभावी कार्यान्वयन न होने के कारण लगभग देश के शहर पानी की कमी के शिकार हैं। सुनीता नारायण का मानना है कि शहरों में रूफ टॉप रेनवाटर हार्वेस्टिंग के अलावा झीलो, तालाबों का भी संरक्षण किया जाना चाहिए।

सुनीता नारायण

देश के सभी शहर कभी अपने जल स्रोतों के लिए जाने जाते थे। टैंकों, झीलों, बावली और वर्षा जल को संचित करने वाली इन जल संरचनाओं से पानी को लेकर उस शहर के आचार विचार और व्यवहार का पता लगता था। लेकिन आज हम धरती के जलवाही स्तर को चोट पहुंचा रहे हैं। किसी को पता नहीं है कि हम कितनी मात्रा में भूजल का दोहन कर रहे हैं। यह सभी को मालूम होना चाहिए कि भूजल संसाधन एक बैंक की तरह होता है। जितना हम निकालते हैं उतना उसमे डालना (रिचार्ज) भी पड़ता है। इसलिए हमें पानी की प्रत्येक बूंद का हिसाब-किताब रखना होगा।

1980 के शुरुआती वर्षों से सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट रेनवाटर हार्वेस्टिंग संकल्पना की तरफदारी कर रहा है। इसे एक अभियान का रूप देने से ही लोगों और नीति-नियंताओं की तरफ इसका ध्यान गया। देश के कई शहरों ने नगरपालिका कानूनों में बदलाव कर रेनवाटर हार्वेस्टिंग को आवश्यक कर दिया। हालांकि अभी चेन्नई ही एकमात्र ऐसा शहर है जिसने रेनवाटर हार्वेस्टिंग प्रणाली को कारगर रूप से लागू किया है।

2003 में तमिलनाडु ने एक अध्यादेश पारित करके शहर के सभी भवनों के लिए इसे जरूरी बना दिया। यह कानून ठीक उस समय बना जब चेन्नई शहर भयावह जल संकट के दौर से गुजर रहा था। सूखे के हालात और सार्वजनिक एजेंसियों से दूर हुए पानी ने लोगों को उनके घर के पीछे कुओं में रेनवाटर संचित करने की अहमियत समझ में आई।

यदि किसी शहर की जलापूर्ति के लिए रेनवाटर हार्वेस्टिंग मुख्य विकल्प हो, तो यह केवल मकानों के छतों के पानी को ही संचित करने तक ही नहीं सीमित होना चाहिए। वहां के झीलों और तालाबों का संरक्षण भी आवश्यक रूप से किया जाना चाहिए। वर्तमान में इन संरचनाओं को बिल्डर्स और प्रदूषण से समान रूप में खतरा है। बिल्डर्स अवैध तरीके से इन पर कब्जे का मंसूबा पाले रहते है वहीं प्रदूषण इनकी मंशा को सफल बनाने की भूमिका अदा करता है।

इस मामले में सभी को रास्ता दिखाने वाला चेन्नई शहर समुद्र से महंगे पानी के फेर में कैद है। अब यह वर्षा जल की कीमत नहीं समझना चाहता है। अन्य कई शहरों की तर्ज पर यह भी सैकड़ों किमी दूर से पानी लाकर अपना गला तर करना चाह रहा है। भविष्य में ऐसी योजना शहर और देश के लिए महंगी साबित होगी।

सुनीता नारायण प्रमुख, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट

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