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ब्लास्टिंग कूप: पेयजल के स्थायी स्रोत पर सरकारी डाका

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1000 से अधिक नये कूप निर्माण कराने का लक्ष्य अभी नहीं हुआ पूरा

ब्लास्टिंग कूप की चौड़ाई 18 और गहरायी 50 फिट होनी चाहिए इसे एक मानक के रूप में रखा गया है। एक कूप निर्माण में पांच लाख रुपये से अधिक बजट निर्धारित है। अनुभवी इंजीनियरों का कहना है कि एक ऐसे समय जब पूरी दुनिया आसन्न जल संकट से निबटने के लिए छटपटा रही है, ब्लास्टिंग कूप स्थायी पानी उपलब्ध कराने से न केवल लंबे समय तक पेयजल उपलब्ध होगा बल्कि वाटर रिचार्ज के लिए भी यह उपाय उपयुक्त है।

पानी की समस्या का वास्तविक हल तो जल संरक्षण और संग्रहण के पुराने व प्राकृतिक स्रोतों को बचाने और उन्हें पुनर्स्थापित करने में है। इनमें कभी सबसे अहम स्रोत बने थे कुएं। मानव सभ्यता के इतिहास में कुओं की परिकल्पना और कठोर से कठोर चट्टानों को काट कर भी उनके बीच से शुद्ध, शीतल व निरोगित जल निकालने का उपक्रम हमारे पूर्वजों का एक महान प्रयास था। हजारों सालों तक अबाधित रूप से पेयजल उपलब्ध कराने वाले इन कुओं की दुर्दशा आज देखी नहीं जाती। हाय-तौबा के बीच अनियोजित वॉटर रिचार्ज के नाम पर भले ही करोड़ो रुपये बर्बाद किया जा रहा हो लेकिन सच यह है कि जल स्रोतों में, जिसमें प्राचीन काल से कुएं सर्वाधिक उपयोगी थे अब बेकार व अनुपयोगी समझ लिये गये हैं। त्वरित विकास के आधुनिक मॉडलों ने प्राचीन जल स्रोतों की जितनी उपेक्षा की है, उसकी भरपाई शायद ही कभी हो सके। परिणाम स्वरूप जलवायु परिवर्तन, जल संकट, जल प्रदूषण आज मानव समाज की सबसे बड़ी समस्या है, जिससे निबटना आज के दौर की एक बड़ी चुनौती भी है।

अब हम जल संग्रहित करने के नाम पर छतों पर प्लास्टिक की टंकियां लगाते हैं। पाइप से घरों तक पहुंचाये जा रहे पानी पर आश्रित हो चुके हैं। जल शोधन के नाम पर आधुनिक से आधुनिकतम महंगी मशीने लगा रहे हैं। सूचनाक्रांति से उत्पन्न फटाफट लाइफ स्टाइल में यह सोचने की किसे फुरसत है कि जब भी पानी के प्राकृतिक स्थिति में फेरबदल किया जाता है तो वह पानी मृत हो जाता है। बताया जाता है कि इंग्लैंड में पानी को करीब 16 बार प्यूरीफाई करने के बाद वह पीने योग्य माना जाता है। लेकिन तब तक पानी का जीवंत तत्व नष्ट हो चुके रहते हैं। उनमें हमारे प्राचीन कुएं के पानी की तरह स्वाद व ताजगी कहां रह जाती है। गांवों की एक कहावत कि -

ताजा पानी भर लाओ, बड़ी वैज्ञानिक थी।

देश के अन्य हिस्सों की तरह इधर दो सालों से उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद, मिर्जापुर, विंध्यांचल, बांदा और चित्रकूट जिलों में नए कुएं बनाने और पुरानों के नवीनीकरण की एक योजना चलाई गई, जिससे स्थायी जल स्रोतों के निर्माण की किरण नजर आने लगी थी। अकेले इलाहाबाद जनपद में एक हजार से भी ज्यादा नये कुएं तैयार होने थे। वह भी पथरीली जगहों पर, जहां वास्तव में पेयजल के लिए कृतिम प्रबंध फेल हो चुके हैं। टैंकरों से पानी पहुंचाना भी आसान कार्य नहीं रह गया। इसीलिए इसे ब्लास्टिंग कूप का नाम दिया गया है। मसलन इन कुओं की खुदायी पहाड़ों पर पत्थर तोड़ कर की जानी है। जिससे संकट आने पर आसपास के गांवों में पीने का पानी उपलब्ध कराया जा सके।

सुजनी गांव में ब्लास्ट कूप की खुदाई करते किसान

ब्लास्टिंग कूपों से किसान भी खुश थे। सबसे खास बात यह है कि इन कुओं में सामुदायिक भागीदारी होगी। पांच सीमांत किसानों की एक जल समिति बनाकर सरकार समिति के अध्यक्ष को एक कूप स्वीकृत करती है। कुएं तैयार होने के बाद उसके जल का उपयोग समिति के सदस्यों के बीच आपसी सहमति के आधार पर होगा। इस योजना की दूसरी एक खास बात यह है कि इसमें पुराने, जर्जर कुओं की मरम्म्त कराने का बजट है।

लेकिन कूप निर्माण में प्राइवेट लोगों को ठेका देने से जोर जबरदस्ती जारी है। सरकारी अफसर भी कमीशनखोरी के दलदल में गहरे धंसे हैं। यह महत्वाकांक्षी योजना चूंकि भारत सरकार की है, इसलिए इस पर राज्य सरकारों का नजरिया भी राजनैतिक है। नतीजतन स्थायी जलस्रोत की यह सुन्दर योजना ऐसे तैसे निबटा दी जा रही है। एक ऐसे समय जब पूरी दुनिया आसन्न जल संकट से निबटने के लिए छटपटा रही है, ब्लास्टिंग कूप स्थायी पानी उपलब्ध कराने में मील का पत्थर साबित हो सकते हैं।

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