भारत के इस गांव में नेपाल से पानी लाकर बुझाते हैं प्यास
पृथ्वी के 70 प्रतिशत से अधिक भूभाग पर पानी है। धरती पर पाई जाने वाली हर वस्तु अपने अस्तित्व के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पानी पर ही निर्भर करती है। उसी प्रकार इंसान के शरीर में भी लगभग 70 प्रतिशत पानी होता है। दिमाग, दिल, फेफड़ें, त्वचा, मसल्स, गुर्दे आदि पानी पर ही आधारित होते हैं, क्योंकि इंसान के शरीर के सभी अंगों को चलाने के लिए खून का आवश्यकता पड़ती है और खून का एक बड़ा हिस्सा (लगभग 90 प्रतिशत) पानी से ही बनता है। इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि मानव के जीवन के लिए पानी की कितनी उपयोगिता है। इसलिए धरती पर मानव सहित प्रत्येक जीव और वनस्पति के अस्तित्व के लिए स्वच्छ जल आधारभूत आवश्यकता है, लेकिन अपने स्वार्थ और अति-आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पानी का अति-दोहन किया गया। नदी, तालाब, कुएं, पोखर, नौले, धारे, गदेरे, झील सूख गए। भूजल लगभग समाप्त होने की कगार पर पहुंच गया। इससे देश भर में जल संकट खड़ा हो गया। पानी का उद्गम स्थल कहे जाने वाले पहाड़ भूजल स्तर गिरने की वजह से सूखे की चपेट में हैं। नतीजन पहाड़ के गांवों में रहने वाले लोगों पानी के लिए कई किलोमीटर दूर जाना पड़ रहा है, यहां तक कि कई बार प्यास बुझाने के लिए नेपाल से भी पानी लाना पड़ता है।
सुबह होते ही इंसान की दिनचर्या की शुरुआत पानी के उपयोग के साथ ही होती है, लेकिन पाइपलाइन से पानी पीने के युग में लोगों को सुबह होने पर पानी की समस्या नहीं सताती। पर भारत नेपाल की सीमा पर बसे पश्चिमी चंपारण के गौनाहा प्रखंड की धमौरा पंचायत के भिखनाठोरी गांव में सुबह होते ही लोगों को पानी की चिंता सताने लगती है। सभी हैंडपंप खराब होने से 800 की आबादी वाले इस गांव में पानी पाना बड़ी चुनौती है। हालाकि दैनिक कार्यों के लिए गांव के समीप से ही बहने वाली पंडई नदी के पानी का उपयोग किया जाता है, लेकिन नदी का पानी पीने लायक नहीं है, इसलिए भोजन और पीने के पानी की व्यवस्था करने के लिए गांव के लोगों को रोजाना सुबह दो किलोमीटर पैदल चलकर नेपाल के ठोरी गांव जाना पड़ता है। पानी लाने के दो किलोमीटर के इस पहाड़ी सफर में आने-जाने में करीब दो घंटे का समय लगता है। यहां ग्रामीण अमृतधारा नाम की पहाड़ी से बहने वाले पानी का भरते हैं। किंतु पेयजल के लिए लाखों रुपया खर्च करने के बाद भी ग्रामीणों की इस समस्या का आज तक निदान नहीं हो सका और उन्हें पानी की प्यास बुझाने के लिए परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
दरअसल पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट (पीएचईडी) द्वारा वर्ष 2016 में लगभग 18 लाख रुपये खर्च कर दो सोलर पंप गांव में लगवाए गए थे। शुरुआत में इन हैंडपंपों ने लोगों को खूब पानी दिया, लेकिन वर्ष 2017 में बाढ़ आने के बाद ये खराब हो गए। लोगों की इस समस्या का निदान करने के लिए विभाग ने टैंकरों से गांव में पानी की सप्लाई की, लेकिन प्रशासन की लापरवाही या बजट के अभाव में संवेदक को समय से वेतन का भुगतान नहीं हुआ, जिस कारण टैंकर से पानी की सप्लाई भी बंद हो गई। इसके अलावा धमौरा पंचायत के भतूजला गांव में भी पेयजल भी काफी समस्या है। यहां के लोगों के लिए पेयजल का एकमात्र सहारा वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के जंगलों में बहने वाली भंवरी नदी है। ग्रामीण रोजाना जंगल में दो किलोमीटर अंदर जाकर नदी से ही पीने का पानी भरकर लाते है। यहां भी सोलर पंप लगाया था, लेकिन उसमें गंदा पानी और कीचड़ आता है। हालाकि गांव के मुखिया और सहायक अभियंता जल घरों में साफ पानी आने की बात कह रहे हैं, लेकिन अब देखना ये होगा कि जहां हर घर नल और जल की बात की जा रही है, वहां के लोगों को पीने का पानी कब तक नसीब होता है।
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