सारांश
‘‘हरित क्रांति ने मनुष्य के भुखमरी एवं वंचना के विरुद्ध युद्ध में अस्थायी सफलता प्राप्त की है। इसने मनुष्य को साँस लेने हेतु स्थान प्रदान किया है।’’ -डा. नारमन ई. बारलाग (नोबेल भाषण, दिसम्बर 11, 1970)
1943 के बंगाल भुखमरी की भयावह स्मृतियों के पश्चात खाद्य सुरक्षा भारत के नीति निर्धारिकों के लिये प्रमुख मुद्दा बन गया। एक राष्ट्र जो हरित क्रांति से पूर्व अनेक बार भुखमरी एवं भीषण खाद्य अपर्याप्तता से ग्रस्त था, वो आज खाद्य आधिक्यता से परिपूर्ण है। हरित क्रांति ने भारतीय कृषि को आकर्षक एवं जीवन शैली को जीवन निर्वाहक के स्थान पर व्यापारिक आयाम प्रदान किया है। भारत आज आधुनिक कृषि प्रौद्योगिकी एवं तकनीकी, भौतिक एवं जैविक विज्ञान पर निर्भर है। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय 51 मिलियन टन के खाद्य उत्पादन से आज हम अवर्णनीय प्रगति करते हुए 257 मिलियन टन के खाद्य उत्पादन पर हैं। भारत आज विश्व के 15 अग्रणीय कृषि उत्पादक निर्यातकों में से एक है। यह शोधपत्र भारत में हरित क्रांति युग से पूर्व एवं पश्चात कृषि उत्पादकता का समीक्षात्मक एवं विश्लेषणात्मक मूल्यांकन करने का एक प्रयास है। किसी भी अन्य वस्तु की भांति हरित क्रांति भी दोषमुक्त नहीं है। भारत में हरित क्रांति की विफलताओं एवं चुनौतियाँ और उन्हें दूर करने के उपायों को भी दर्शाने का प्रयास किया गया है।
Abstract
“The green revolution has won a temporary success in man’s war against hunger & deprivation; it has given man a breathing space.” –Dr. Norman E. Borlaug (Nobel Lecture, December 11, 1970)
After hunted memories of Bengal Famine in 1943, food security has become a paramount item for India’s policymakers. A nation which was frequently plagued by famines & chronic food shortage before green revolution today faces surplus. Green Revolution has made the Indian agriculture attractive & a way of life by becoming commercial instead of subsistence. Modern agriculture in India is now dependent on engineering & technology & on the physical & biological sciences. From a food grain production around 51 million tons at the time of independence, we now have a spectacular progress of production of more than 257 million tons of food grain. India is now among the 15 leading exporters of agricultural products in the world. This paper is an attempt to evaluate critically & analytically the agricultural productivity in India in pre & post Green Revolution era. Like any other thing Green Revolution too is not free from defects. An attempt has also been made to highlight the failures & challenges of Green Revolution in India alongwith the suggestive measures.
प्रस्तावना
‘‘कहीं भी होने वाली खाद्य असुरक्षा, सर्वव्यापी शांति के लिये खतरा है।’’
भारत सदैव से अकाल एवं सूखे का देश रहा है। भारत में ग्यारवहीं से सत्रहवीं शताब्दी के मध्य 14 अभिलेखित अकाल हुए है। अंतिम प्रमुख अकाल भारत की स्वतंतत्रता प्राप्ति से ठीक चार वर्ष पूर्व 1943 में बंगाल में हुआ, जिसके उपरांत 1966 में बिहार का अकाल एवं 1970-73 में महाराष्ट्र, 1979-80 में पं. बंगाल, 2013 में महाराष्ट्र में सूखा पड़ा। भारत को स्वतंत्रता तब प्राप्त हुई जब कृषि अपने सबसे खराब दौर से गुजर रही थी। अत: यह स्वाभावित है कि खाद्य सुरक्षा स्वतंत्र भारत के कार्यसूची में प्रमुख मुद्दा बन गया। खाद्य सुरक्षा से अभिप्राय समस्त व्यक्तियों की हर समय पर्याप्त, सुरक्षित एवं पौष्टिक आहार के प्रति भौतिक एवं आर्थिक पहुँच से हैं जिसके माध्यम से वे एक सक्रिय एवं स्वस्थ जीवन निर्वाह के लिये अपनी आहार संबंधी आवश्यकताओं एवं खाद्य प्राथमिकताओं को पूरा कर सकें (वर्ल्ड फूड सम्मिट, 1996)। खाद्य सुरक्षा के तीन स्तंभ हैं- खाद्यान्न की भौतिक उपलब्धता, खाद्यान्न के प्रति सामाजिक एवं आर्थिक पहुँच एवं खाद्य उपभोग।
खाद्य सुरक्षा के प्रति जागरूकता एवं खतरे ने जहाँ एक ओर 70 के दशक के मध्य में हरित क्रांति का जन्म, स्वपर्याप्तता की उपलब्धि एवं खाद्य आधिक्यता प्रदान की वहीं दूसरी ओर सरकार ने व्यापारियों द्वारा स्वयं के लाभार्जन के लिये खाद्य संचय पर रोक लगाने के लिये अधिनियमों द्वारा नकेल लगाने का प्रयास किया। इस प्रकार भारतीय कृषि परंपरागत जीवन निर्वाहक क्रिया से परिवर्तित होकर आधुनिक बहु-आयामीय उद्यम बन गईं। पूर्ण खाद्य सुरक्षा प्राप्त करने के लिये सरकार ने हरित क्रांति की तकनीकियों का तीव्रता से प्रसार किया। सौभाग्यवश, आज के भारत में इस प्रकार की खाद्य असुरक्षा नहीं है। 1967-68 से 1977-78 के मध्य हरित क्रांति के तीव्रतम प्रसार ने भारत को एक खाद्य अपर्याप्य राष्ट्र से विश्व के प्रमुख कृषि राष्ट्रों में स्थान प्रदान करवाया। भारत उन कुछ राष्ट्रों में से एक हैं जहाँ हरित क्रांति सबसे अधिक सफल रही है। भारत में हरित क्रांति की सफलतम यात्रा के कुछ तथ्य इस प्रकार हैं-
* भारत विश्व के 15 अग्रणीय कृषि उत्पाद निर्यातकों में से एक है। कुछ विशिष्ट उत्पादों जैसे तिलहन, चावल (विशेषकर बासमती चावल), कपास इत्यादि में भारत की निर्यातक क्षमता प्रशंसनीय है।
* भारत का कृषि निर्यात संपूर्ण विश्व के व्यापार का 2.6 प्रतिशत है (डब्ल्यूटीओ, 2012)। कृषि सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में कृषि निर्यात 2008-09 में 9.10 प्रतिशत से 2012-13 में 14.10 प्रतिशत हो गये है।
* भारत के कृषि एवं सहायक क्षेत्रों ने सकल घरेलू उत्पाद में 2009-10, 2010-11, 2011-12, 2012-13 एवं 2013-14 में क्रमश: 14.6 प्रतिशत, 14.56 प्रतिशत, 14.4 प्रतिशत, 13.9 प्रतिशत एवं 13.9 प्रतिशत का योगदान दिया है।
* कुल खेतिहर क्षेत्रफल 198.9 मिलियन हेक्टेयर हैं। भारत में कृषि घनत्व 140.5 प्रतिशत है।
* भारत के कृषि उत्पाद निर्यातों में 2011-12 से 2012-13 के मध्य 24 प्रतिशत की बढ़त हुई है।
* कुल निर्यातों में कृषि उत्पाद निर्यात का प्रतिशत 2011-12 में 12.8 प्रतिशत से बढ़कर 2012-13 में 13.1 प्रतिशत हो गया है।
* प्रति व्यक्ति प्रतिदिन खाद्यान्न उपलब्धता 1951 में 349.9 ग्राम से बढ़कर 2011 में 462.9 ग्राम हो गई है। औद्योगिक क्षेत्र में हुई अभूतपूर्व प्रगति के बाद भी कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रमुख अंग है। भारतीय कृषि नवीन युग में अनेक क्षेत्रों में विविधिकृत हो गई है जैसे- बागवानी, फूलबानी, मत्स्यपालन, मधुमक्खी पालन इत्यादि।
भारत में कृषि का स्थान एवं महत्ता- भारतीय कृषि सफलता की एक कहानी है। भारत आज कृषि रूपांतरण के अष्टम चरण में है। भारतीय कृषि के विभिन्न चरणों में विभाजन को लेकर मतैक्य नहीं है। विभिन्न अध्ययनों में विभाजन एवं चरणों की समय सीमा में परिवर्तन है। भारतीय कृषि की संक्षिपत प्रगति यात्रा इस प्रकार है-
सारणी 1 : भारतीय कृषि के विभिन्न चरण | |
चरण | लक्षण |
ब्रिटिश काल से पूर्व (1600 पूर्व) | कृषि मात्र एक आर्थिक क्रिया नहीं थी। यह एक परंपरा थी। कृषि सहायक के रूप में पशुपालन भी मुख्य कार्यों में से एक था। |
ब्रिटिश काल (1600-1947) | कृषि कभी भी पुन: जीवन शैली एवं परंपरा का हिस्सा नहीं बन पायी। कृषि मात्र एक आर्थिक क्रिया बन गई। आधुनिकृत कृषि जीवन साधन के स्थान पर प्रगति साधन बन गई। ब्रिटिश शासकों के राजस्व का स्रोत। |
स्वतंत्रता प्राप्ति चरण (1947-1950) | भारतीय कृषि का सबसे |
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