भिक्षा, जल त्याग और भागीरथी इको सेंसेटिव जोन

भिक्षा, जल त्याग और भागीरथी इको सेंसेटिव जोन

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स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद - छठा कथन आपके समक्ष पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है :

वर्ष 2010 में हरिद्वार का कुम्भ अपेक्षित था। शंकराचार्य जी वगैरह सब सोच रहे थे कि कुम्भ में कोई निर्णय हो जाएगा। कई बैठकें हुईं। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष ज्ञानदास जी ने घोषणा की कि यदि परियोजनाएँ बन्द नहीं हुई, तो शाही स्नान नहीं होगा। लेकिन सरकार ने उन्हें मना लिया और कुम्भ में शाही स्नान हुआ। कुम्भ के दौरान ही शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी के मण्डप में एक बड़ी बैठक हुई। मेरे अनुरोध पर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद जी भी आये। अन्ततः यही हुआ कि आन्दोलन होना चाहिए।

भीख माँगकर, परियोजना नुकसान भरपाई की घोषणा

‘600 करोड़ खर्च हो गया है; क्या करें’



इस पर अविमुक्तेश्वरानंद जी ने कहा-

‘एक महीने का समय दो। हम पैसा इकट्ठा करके दे देंगे। हम भीख माँगकर देंगे।’



जयराम रमेश ने मजाक में कहा-

‘मेरा कमीशन?’



अविमुक्तेश्वरानंद जी बोले-

‘बताओ कितने? वह भी देंगे?’



कमीशन का तो मज़ाक था, लेेकिन जयराम जी ने माना कि नुकसान की भरपाई की बात कही जाये, तो रास्ता निकल सकता है। तय हुआ कि यही बात लिखकर सरकार को दी जाये। ड्रॉफ्ट बना; अविमुक्तेश्वरानंद जी ने जिम्मेदारी ली।

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी के जिम्मेदारी लेने से उनके प्रति मेरी श्रद्धा कुछ ऐसी बनी कि मुझे ऐसा लगा कि जितना स्नेह मुझे पिता व परिवार से नहीं मिला, वह उन्होंने दिया। मैंने सोचा कि यदि भिक्षा माँगकर देने को कहा है, तो यह गंगाजी और मेरे... दोनों के प्रति उनका स्नेह है, लेकिन कुछ नहीं हुआ।

वैकल्पिक योजना के अभाव में पुनः अनशन का निर्णय

‘नहीं, नहीं। तुम्हारे वहाँ रहने से लगेगा कि तुम ही करा रहे हो।’

केन्द्र पर निष्प्रभावी स्थानीय समर्थन

जलत्याग की तैयारी

पलटा घटनाक्रम : सक्रिय हुए जयराम

“आप किस रूप में आये हैं? मित्र के रूप में, मित्र के पुत्र के रूप में, मंत्री के रूप में या प्रधानमंत्री जी के दूत के रूप में?’’



जयराम ने कहा-

“मैं आपसे व्यक्तिगत मित्र के रूप में आया हूँ।’’



उन्होंने बताया कि सरकार क्या-क्या कर सकती है। उस पर मेरी आपत्तियाँ थीं। पहली आपत्ति कि किस कारण से गंगाजी पर परियोजनाएँ करें? कोई एक स्पेशिफिक कारण तो हो। मैं बाँधों के विरुद्ध हूँ, किन्तु मैं नहीं कहता कि सब बाँधों के विरुद्ध हूँ। सब बांधों के विरुद्ध लड़ना है, तो कोई और लड़े। मैंने कहा कि जो ड्रॉफ्ट बने, उसका पहला पैरा गंगा पर हो। गंगोत्री से 130 किलोमीटर उत्तरकाशी तक विशेष जोन डिक्लेयर करें। उसमें गंगाजी का नैसर्गिक स्वरूप बनाकर रखने की बात हो।

मानी गई इको सेंसेटिव जोन की माँग

प्रस्तोता का पश्चाताप :

आदरणीय पाठकगण, इस संवाद का प्रस्तोता इस मौके का स्वयं गवाह भी है और जिम्मेदारी के निर्वाह में संकल्पहीनता की कमी का भागीदार भी। मुझे याद है; जलपुरुष श्री राजेन्द्र सिंह जी, ‘सीएमएस वातावरण फिल्म फेस्टिवल’ में बतौर जूरी भाग लेने दिल्ली आये थे। आयोजकों ने रुकने का इन्तजाम, मौर्य शेरटन होटल में किया था। मेरी वह रात, राजेन्द्र भाई से यही अनुरोध करते बीती थी कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी संकल्प निभाएँ या न निभाएँ, हमें उनका तथा स्वामी सानंद का गंगा संकल्प निभाने के लिये ‘गंगा भिक्षा आन्दोलन’ के लिये निकल पड़ना चाहिए।

हालांकि नुकसान भरपाई के पत्र पर सरकार की ओर से भी कोई जवाब नहीं आया था; इसलिये औपचारिक तौर पर इसकी कोई आवश्यकता नहीं थी। किन्तु स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी की घोषणा के तुरन्त बाद, बीच बैठक में करीब पाँच लाख रुपए के दानदाता सामने आ गए थे, उससे इस घोषणा की शक्ति स्पष्ट थी। यूँ भी मैं इसे गंगा अविरलता और निर्मलता के मसले से जन-जुड़ाव के अनोखे अवसर के तौर पर देख रहा था। मेरे मन में एक ओर काशी हिन्दू विद्यापीठ के लिये स्व. मदन मोहन मालवीय जी द्वारा चलाए भिक्षा अभियान की कल्पना आकार ले रही थी, तो दूसरी ओर स्वतंत्रता आन्दोलन में झोली फैलाए गाँधी का चित्र, शक्ति दे रहा था।

मेरा विचार था कि गंगा के लिये कुर्बान करने को शासन के पास 600 करोड़ रुपए नहीं है; यह बात जनता के पौरुष को जगा देगी। जनता इसे एक ललकार की तरह लेगी। मैं, इसमें मीडिया के लिये भी चुम्बकीय तत्व की उपलब्धता भी देख रहा था। मेरा विश्वास था कि राजेन्द्र भाई में तमाम नामी-गिरामी गंगा प्रेमियों को इस आन्दोलन से जोड़ने की क्षमता है। मेरा यह भी विश्वास था कि जब नामी-गिरामी लोग, अपनी-अपनी झोली फैलाकर गाँव-गाँव, मोहल्ला-मोहल्ला.. गंगा टोलियों में निकलेंगे, तो गंगा मैया के नाम पर शहरी ही नहीं, गरीब-गुरबा ग्रामीणों के हाथों से इतना पैसा बरसेगा कि भारत की केन्द्र सरकार भी शरमा जाएगी। इसकी गूँज व्यापक होगी और गंगा के लिये प्रभावी भी।

इसके दो लाभ होंगे:

पहला, सरकार के पास बहाना नहीं बचेगा और जन दबाव इतना अधिक होगा कि वह चाहकर भी परियोजनाओं को आगे बढ़ा नहीं सकेगी। दूसरा, गंगा को हम भारतीयों से जिस सक्रिय संवेदना की दरकार है, ‘गंगा भिक्षा आन्दोलन’ उसे जागृत कर सकेगा।

मैं यह भी सोच रहा था कि ‘गंगा भिक्षा आन्दोलन’ सिर्फ धन नहीं मांगेगा, वह गंगा निर्मलता और प्रवाह की समृद्धि में सहयोगी कदमों के संकल्प के दान की भी माँग करेगा। इस तरह ‘गंगा भिक्षा आन्दोलन’, बिना कहे ही गंगा निर्मलता-अविरलता के रचनात्मक आन्दोलन में तब्दील हो जाएगा। राजेन्द्र भाई ने तो खैर अपना जीवन ही नदियों और तालाबों के लिये दान कर दिया है; मैं स्वयं भी इसके लिये अगले तीन महीने देने के लिये तैयार था। राजेन्द्र भाई तैयार दिखे और उत्साहित भी। क्या करेंगे? कैसे करेंगे?? इस पर भी विस्तार से चर्चा हुई। मैं प्रतीक्षा करता रहा, किन्तु वह बात, बात से आगे नहीं गई; जैसे रात का देखा सपना, भोर होते ही अपना प्रकाश खो देता है, वैसे ही मेरे जैसों की संकल्पहीनता ने गंगा जन-जागरण का एक अनुपम अवसर गँवा दिया। उस अवसर को गँवा देने का मुझे, आज भी अफसोस है... अरुण तिवारीसंवाद जारी...

अगले सप्ताह दिनांक 28 फरवरी, 2016 दिन रविवार को पढ़िए स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद शृंखला का सातवाँ कथन

प्रस्तोता सम्पर्क :
ईमेल : amethiarun@gmail.com
फोन : 9868793799

इस बातचीत की शृंखला में पूर्व प्रकाशित कथनों कोे पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें।



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