रेडमड जो कि एक खतरनाक ठोस अपशिष्ट है, उसे संयंत्र से 5.6 किमी दूर विशेष प्रकार के पॉलीथीन एवं कंक्रीट की परत से बने लीक प्रूफ विशाल पोखरों में एकत्रित किया जाता है। रेडमड पर भवन निर्माण सामग्री, फेराइट सीमेंट, टाइल्स इत्यादि बनाने के अनुसन्धान किये जा रहे हैं। रेडमड भण्डारण के लिये नई तकनीक की खोज की जा रही है जिससे पुराने भरे पोखरों के ऊपर ही सूखी रेडमड का भण्डारण किया जा सके।एल्युमिना संयंत्र में एल्युमिना चूर्ण के कण व गैस उत्सर्जन को नियंत्रित करने हेतु इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसीपिटेटर्स लगाए गए हैं ताकि उत्सर्जन निर्धारित मानकों के अनुरूप रहे।
औद्योगिक संरचना - वृहद, मध्यम और लघु उद्योगसामाजिक एवं आर्थिक विकास के साथ ही औद्योगिक विकास भी जुड़ा हुआ है। औद्योगीकरण आर्थिक विकास का एक प्रमुख सोपान है। पिछड़ी एवं विकासशील अर्थव्यवस्था वाले क्षेत्रों के लिये औद्योगीकरण के माध्यम से उद्योगों के विकास के साथ ही साथ कृषि उत्पादन, रोजगार तथा राष्ट्रीय आय में वृद्धि को भी प्रोत्साहन मिलता है।
ब्राइस के अनुसार औद्योगिक विकास की महत्ता को इन शब्दों में व्यक्त किया गया है, “विकास के किसी भी सुदृढ़ कार्यक्रम में औद्योगिक विकास हमारे युग का एक महान युग धर्म बन चुका है। यह एक ऐसा अभियान है, जिसमें विकसित राष्ट्र गैर औद्योगिक देशों के औद्योगिक विकास की बढ़ती माँगों की पूर्ति की दिशा में परस्पर प्रतिस्पर्धा करते हैं। यह एक प्रयास है, जिसकी ओर सभी अल्प विकसित राष्ट्र अपनी निर्धनता, असुरक्षा एवं जनसंख्या वृद्धि की समस्याओं के निराकरण हेतु आशापूर्ण दृष्टि से देखते हैं। वस्तुतः अब औद्योगीकरण सम्पूर्ण विश्व में वर्तमान सदी का एक अभियान बन चुका है।” (Brice, 1965, 3-5)
औद्योगीकरण की प्रक्रिया द्वारा क्षेत्र विशेष की अवरुद्ध अर्थव्यवस्था में विकास की ऐसी परम्परा विकसित होती है, जिससे आर्थिक स्तर में वृद्धि होती है। “Industrialisation is an economic process by which structural transformation of an subsistence economy is achieved” [Heggade, 1993, 17]
“प्राकृतिक संसाधनों के विभिन्न प्रयोग तथा समुचित दोहन औद्योगीकरण द्वारा ही सम्भव है।” (अग्रवाल, 1994, 97) इस प्रकार औद्योगीकरण का प्रमुख उद्देश्य खनिज एवं कृषि जन्य पदार्थों के सन्तुलित उपयोग एवं ऊर्जा के साधनों के विकास के माध्यम से विस्तृत पूँजी निवेश द्वारा वृहद स्तर पर वस्तुओं का उत्पादन सम्भव बनाना है। औद्योगीकरण की प्रक्रिया के अन्तर्गत उद्योगों की स्थापना के साथ-साथ उद्योग में संरचनात्मक परिवर्तन तथा तकनीकी सुधार एवं आर्थिक विकास के संगठन को भी सम्मिलित किया जाता है। उद्योगों में उत्पादकता अधिक होती है तथा ये कम उत्पादकता वाले कृषि क्षेत्र से श्रम को आकर्षित करते हैं। यूजीन स्टेले के अनुसार “उच्च उत्पादकता औद्योगीकरण की प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है तथा ये दोनों एक दूसरे से परस्पर सम्बन्ध एवं प्रभावित होते हैं।” (Staley, Ed. R.S. Kulshresth, 1999, 7)
क्षेत्र विशेष की उन्नति में उद्योगों का विशेष महत्व है। उद्योगों के अन्तर्गत ऐसी समस्त प्रक्रियाएँ सम्मिलित की जाती हैं, जिनके द्वारा समाज की आर्थिक आवश्यकताओं को पूर्ण करने हेतु प्राकृतिक संसाधनों से उपयोगिता का सृजन किया जाता है। पी.एस. फ्लोरेन्स के अनुसार “सामान्य अर्थों में, उद्योगों से आशय निर्माण क्षेत्र से है तथा कृषि, खनिज एवं अधिकांश सेवाएँ इसके अन्तर्गत आती हैं। इस प्रकार उद्योग एक आर्थिक क्रिया है जिसमें मुख्यतया स्वरूप या उपयोगिता प्रदान की जाती है। इसमें कच्चे पदार्थों से उपभोग्य तथा पूँजीगत वस्तुओं का निर्माण किया जाता है।” (उपाध्याय, 1995, 20)
उत्पादन के आधार पर उद्योगों को निम्नांकित वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है (1) वृहद उद्योग, (2) मध्यम उद्योग (3) लघु उद्योग तथा (4) अति लघु उद्योग।
01. वृहद उद्योग :-
वह प्रतिष्ठान, जिसमें संरचना एवं मशीनरी में विनियोजन 05 करोड़ रुपए से अधिक हो, वृहद उद्योग की श्रेणी में आता है।
02. मध्यम उद्योग :-
वह प्रतिष्ठान, जिसमें संरचना एवं मशीनरी में विनियोजन 01 करोड़ रुपए से 05 करोड़ रुपए तक हो, मध्यम उद्योग की श्रेणी में आता है।
03. लघु उद्योग :-
वह प्रतिष्ठान, जिसमें स्थित परिसम्पत्तियों अर्थात संरचना एवं मशीनरी में विनियोजन 01 करोड़ रुपयों से अधिक न हो, लघु उद्योग की श्रेणी में आता है।
04. अति लघु उद्योग वे उद्योग हैं, जिनमें संयंत्र व मशीनरी में विनियोजन 25 लाख रुपए से अधिक न हो। लघु उद्योग एक व्यापक क्षेत्र है, जिसमें लघु, अति लघु तथा कुटीर उद्योग के क्षेत्र उद्योग शामिल हैं और इस क्षेत्र का भारतीय अर्थव्यवस्था के नियोजित विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान है। (लघु उद्योग क्षेत्र, लघु कृषि एवं ग्रामीण उद्योग मंत्रालय, 1999)। ऐसे उद्योग जो मुख्यतः परिवार के सदस्यों की सहायता से पूर्ण कालिक अथवा अंशकालिक रोजगार की तरह संचालित किये जाते हैं, कुटीर उद्योग कहलाते हैं।
1. वृहद उद्योग :-
देश की अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर एवं स्वावलम्बी बनाने हेतु व्यापक औद्योगिक विकास, विशेषतः आधारभूत तथा पूँजीगत उद्योगों का विकास परमावश्यक है। प्रचुर खनिज एवं वन सम्पदा से युक्त छत्तीसगढ़ उन कतिपय राज्यों में से एक है, जहाँ औद्योगिक क्षेत्र में पर्याप्त विकास की सम्भावनाएँ है। औद्योगिक विकास के मूलभूत उद्योग जैसे लोहा तथा इस्पात एवं रासायनिक उद्योगों का कच्चा माल खनिज पदार्थ ही है।
छत्तीसगढ़ का औद्योगिक स्वरूप कृषि पर आधारित उद्योगों से उच्च स्तरीय वैज्ञानिक प्रक्रिया पर आधारित ऐसे उद्योगों की ओर परिवर्तित हो रहा है, जिसमें धातु व खनिज का उपयोग अधिक हो रहा है। वृहद एवं मध्यम स्तरीय उद्योगों के अन्तर्गत वर्तमान में प्रदेश में 165 औद्योगिक इकाइयाँ स्थापित हुई हैं, जिन्हें निम्नांकित श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है :-
क. लौह इस्पात उद्योग
ख. सीमेंट उद्योग,
ग. रासायनिक उद्योग,
घ. एल्युमिनियम उद्योग,
ङ. विस्फोटक पदार्थ उद्योग,
च. खाद्य उद्योग,
छ. वनोपज पर आधारित उद्योग (जूट एवं कागज उद्योग)
ज. वस्त्र उद्योग,
झ. अन्य उद्योग, (इंजीनियरिंग, फैरोएलाय, फैरोस्क्रेप तथा स्टील कास्टिंग उद्योग
औद्योगिक संरचना के दृष्टिकोण से प्रदेश में कार्यरत इंजीनियरिंग तथा फैरोएलाय उद्योग की संख्या 44 है, जिनमें से रायपुर में 26, दुर्ग में 20, राजनांदगांव में 1, बिलासपुर में 1 तथा रायगढ़ में 1 इकाई कार्यरत है।
खाद्य आधारित उद्योग की संख्या 28 है, जिनमें से रायपुर में 11, राजनांदगांव में 6, महासमुन्द में 4, भिलाई में 3, धमतरी में 2, रायगढ़ में 1 तथा बिलासपुर में 1 इकाई कार्यरत है।
रासायनिक उद्योग के अन्तर्गत प्रदेश में 18 इकाइयाँ कार्यरत हैं, जिनमें से दुर्ग में 6, रायपुर में 7, बिलासपुर में 2 तथा राजनांदगांव में 3 इकाइयाँ स्थापित हैं।
सीमेंट उद्योग के अन्तर्गत 13 इकाइयाँ कार्यरत हैं, जिनमें से रायपुर में 5, दुर्ग में 2, जांजगीर चांपा में 2, बस्तर में 2 तथा रायगढ़ में 2 इकाई स्थापित है।
वनोपज आधारित उद्योगों के अन्तर्गत 11 इकाइयाँ कार्यरत है, जिनमें से रायगढ़ में 4, बस्तर में 2, रायपुर में 3, बिलासपुर तथा जांजगीर चांपा में 1-1 इकाई स्थापित है।
लौह इस्पात उद्योग की संख्या 9 है, जिनमें से रायपुर में 3, दुर्ग में 2, रायगढ़ में 2, बिलासपुर में 1 तथा जांजगीर-चांपा में 1 इकाई स्थापित है।
विस्फोटक पदार्थ उत्पादक इकाइयाँ मुख्यतः कोरबा में स्थित हैं, इन इकाइयों की संख्या 3 है।
वस्त्र उद्योग मुख्यतः रायपुर में स्थापित है इन इकाइयों की संख्या 3 है। एल्युमिनियम उद्योग एकमात्र कोरबा जिले में स्थापित है।
क. लौह इस्पात उद्योग :-
“Iron and steel being one of the important ingredients of the industrial agricultural and infrastructural sectors of an economically, its production plays a vital role in the economic development of a country” (Saxena and Rath, 1991, 3)
“किसी देश की लौह इस्पात की उत्पादन क्षमता उस देश की आर्थिक समुन्नति एवं सैनिक शक्ति का मापदण्ड है, क्योंकि न केवल शान्ति काल में आर्थिक विकास के लिये ही यह मौलिक तत्व है प्रत्युत युद्ध काल में देश रक्षा के लिये भी युद्ध सामग्री बनाने हेतु उत्तम तथा विविध प्रकार के इस्पात आवश्यक है।” (सिंह एवं सिंह, 2001, 338)
छत्तीसगढ़ प्रदेश में लौह इस्पात उद्योगों की स्थापना में खनिज संसाधनों की सम्पन्नता सहायक सिद्ध हुई है। प्रदेश में लौह अयस्क के 21032.6 लाख टन के संचित भण्डार पाए गए हैं, जो इस क्षेत्र में स्थापित लौह इस्पात तथा स्पंज आयरन उद्योग की स्थापना के आधारभूत तत्व हैं। वर्तमान में प्रदेश में इस्पात एवं स्पंज आयरन की 9 वृहद मध्यम इकाइयाँ कार्यरत है, जिनमें रायपुर में 3, दुर्ग में 2, रायगढ़ में 2, बिलासपुर 1 तथा चांपा में 1 लौह इस्पात एवं स्पंज आयरन इकाई स्थापित है। जिनका विवरण निम्नांकित है -
तालिका 5.1 छत्तीसगढ़ प्रदेश में स्थापित लौह इस्पात एवं स्पंज आयरन उत्पादक इकाइयाँ | |||||
क्र. |
इकाई का नाम |
क्षेत्र |
पूँजी निवेश (लाख रु. में) |
रोजगार |
उत्पादन वर्ष |
01. |
स्टील अथॉरिटी |
भिलाई ऑफ इंडिया |
60875.47 |
63291 |
1959 |
02. |
जिन्दल स्ट्रीप्स लिमिटेड |
पतरापाली, रायगढ़ |
47802.26 |
938 |
1991 |
03. |
एच.ई.जी. लिमिटेड |
बोरई, दुर्ग |
10600.00 |
805 |
1992 |
04. |
प्रकाश इण्डस्ट्रीज लिमिटेड |
चांपा |
21800.00 |
950 |
1993 |
05. |
रायपुर एलाय एंड स्टील लिमिटेड |
सिलतरा |
5006.00 |
400 |
1993 |
06. |
मोनेट इस्पात रायपुर |
मन्दिर हसौद |
1594.20 |
159 |
1994 |
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