झारखंड के साथ ही बिहार से जंगलों का भी बड़ा हिस्सा अलग हो गया। कमोबेश जंगल विहीन हो गया बिहार। राजद की सरकार को पर्यावरण के इस मुद्दे पर ध्यान देने की जरूरत नहीं महसूस हुई। अब नीतीश बिहार में हरियाली के माध्यम से खुशहाली की राह निकालना चाहते हैं।
राज्य विभाजन के बाद झारखंड क्षेत्र के अलग हो जाने से वनों का हिस्सा कम हो गया और बिहार की हरियाली घट गई। राज्य में फिलहाल महज छह फीसदी क्षेत्र में जंगल है। प्रदेश के 27 जिले वनविहीन हैं। विकास और पर्यावरण संरक्षण में जंगलों और पेड़ों की खासी अहमियत रही है। राष्ट्रीय वन नीति भी कहती है कि पारिस्थितिकी संतुलन के लिए कुल भूभाग का 33 फीसदी हरियाली से आच्छादित रखना जरूरी है। बिहार के सामने कम से कम 20 प्रतिशत भूभाग को वनों से आच्छादित करने की चुनौती है। वैसे राज्य सरकार ने अपने प्रयास से 36 वर्ग किलोमीटर वनक्षेत्र का विस्तार किया है लेकिन अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस चुनौती को और गंभीरता से लेते हुए वन-विस्तार का विशेष अभियान शुरू किया है। देश में पहली बार किसी राजनीतिक दल ने अपनी सदस्यता के लिए पेड़ लगाना अनिवार्य कर दिया है। पहले कम से कम पांच पेड़ लगाइए और फिर जनता दल (यू) के पार्टी कार्यालय में कदम रखिए!नीतीश कुमार के हरित बिहार मुहिम से पर्यावरणविद राजेंद्र कुमार पचौरी कुछ इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होंने पटना आकर मुख्यमंत्री से मुलाकात की। पचौरी ने मुलाकात के बाद कहा, 'जब देश में अधिकांश नेता इस गंभीर मुद्दे पर चर्चा तक करना मुनासिब नहीं समझते हों, ऐसे माहौल में नीतीश कुमार का यह अभियान बेहद सराहनीय है। बिहार की अधिकांश नदियां नेपाल के हिमालय क्षेत्र से उतरती हैं। ग्लोबल वार्मिंग का दुष्प्रभाव हिमालय और उनसे निकलने वाली नदियों पर पड़ रहा है। ऐसे में इन दुष्प्रभावों से बचाने के लिए हरित क्षेत्र का रकबा बढ़ाना कारगर उपाय हो सकता है। इस मायने में बिहार में यह अनोखा प्रयास हो रहा है।'

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सूबे में कम से कम 15 प्रतिशत ग्रीन एरिया विकसित करने का लक्ष्य तय किया है। उन्होंने राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं सहित सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों से भी पेड़ लगाने का अनुरोध किया है। इस अपील ने असर दिखाना भी शुरू कर दिया है। राज्य की हरित भूमि को 6.87 से बढ़ाकर 15 प्रतिशत तक ले जाने में भूमिहीन भी शामिल हो रहे हैं। उन्हें सड़क किनारे लगाने के लिए निःशुल्क पौधे दिए जा रहे हैं। नीतीश ने इस अभियान की शुरुआत पैतृक गांव कल्याण बिगहा से की और वहां पेड़ लगाए। मुख्यमंत्री ने इस अभियान को अपना एक माह का वेतन (एक लाख रुपए) भी भेंट किया। जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने भी इस मद में 45 हजार रुपए दिए। अब सूबे विधायक और मंत्री एक-एक माह का वेतन हरित बिहार अभियान को सौंप रहे हैं।

अभियान के लिए रथ रवाना करते वक्त मुख्यमंत्री नीतीश ने कहा कि जदयू के पचास लाख सदस्य बनाए जाएंगे और इतने ही पौधे भी लगाए जाएंगे। विधायक दल की बैठक बुलाकर इस अभियान के प्रति लोगों की जागरूकता बढ़ाने के निर्देश दिए गए हैं। नीतीश कहते हैं, 'राजनीतिक कार्यकर्ता पौधे और पर्यावरण की चिंता कर रहे हैं, यह एक बड़ी बात है। जदयू का रथ हर जिले में घूम-घूमकर इस अभियान से आम जनता को जोड़ रहा है। अब पेड़ लगाने की मुहिम ने आंदोलन का रूप ले लिया है। बिहार की यह जागृति देश को नई दिशा दे सकती है।'

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