जलाधिकार सत्याग्रह

जलाधिकार सत्याग्रह

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जल सत्याग्रह की शुरुआत आज राजघाट से हुई और फिर सत्याग्रह को समर्थन करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं, महिला समूहों, पानी पंचायत, किसान समूह, जल सहेलियों का समूह जंतर-मंतर तक पैदल यात्रा में शामिल हुआ। जंतर-मंतर पर यह यात्रा कई हजार लोगों के एक जन समूह में तब्दील हो गया। जिसमें सूखा प्रभावित 13 राज्यों से अलग-अलग समूहों की आवाज के प्रतिनिधि शामिल थे। यात्रा में चम्बल सम्भाग से मनीष शामिल हुए। मनीष ने टीकमगढ़ के पलेरा गाँव में इस बारिश के पानी को रोकने के लिये स्टापडैम बनाने में ग्रामीणों के काम अपना सहयोग दिया है।

मैगसेसे सम्मान से सम्मानित राजेन्द्र सिंह के अनुसार पानी की जमीन को पानी के लिये रखना होगा। पानी की जमीन हम छीन रहे हैं और धरती का पेट खाली करते जा रहे हैं। जब तक धरती का पेट खाली रहेगा। पानी का पुनर्भरण नहीं हो सकता। रिवर और सीवर को अलग करना होगा। वर्षाजल को नाले के प्रवाह से अलग करना होगा। नाला और पीने के पानी को मिलाने की राजनीति वास्तव में मैले की मैली राजनीति ही है। गन्दा पानी को साफ करने के लिये फिर विश्व बैंक से पैसा लिया जा सकता है। मैने आँखों से देखा है, इस पैसे का दुरुपयोग। मैंने आँखों से देखा है, तीस सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बने। उनमें करोड़ों रुपए की लागत आई लेकिन आज वे काम नहीं कर रहे हैं।

राजेन्द्र सिंह आगे कहते हैं- मैं पहले बोतल का पानी नहीं पीता था। जल साक्षरता यात्रा में मैंने 30 लाख लोगों से वादा लिया कि वे बोतलबन्द पानी नहीं पीएँगे। अब हमारे पानी को पीने लायक ही नहीं छोड़ा गया। मजबूरी में सभी को बोतलबन्द पानी की तरफ जाना पड़ रहा है। ऐसा माहौल पूरे देश में बनाया जा रहा है।

अब जरूरी है कि नगरपालिका और पंचायत अपनी सीमा में बरसने वाले पानी का इस तरह प्रबन्धन करें कि ऊपर की जमीन पर सुखाड़ ना आये और जो जमीन नीचे हैं, वहाँ बाढ़ ना आये।

राजेन्द्र सिंह केन्द्र सरकार के महत्त्वाकांक्षी योजनाओं में से एक नदी जोड़ योजना पर कहते हैं, नदियों को जोड़ने से कुछ लाभ नहीं होने वाला। यदि जोड़ना है तो देश के लोगों का दिल और दिमाग नदी से जोड़ दीजिए।

राजेन्द्र सिंह ने लातूर से आ रही निराशाजनक खबरों के बीच मजरा नदी का जिक्र किया। जिसके लिये लातूर के स्थानीय लोग 12 करोड़ रुपए जोड़कर नदी को पुनर्जीवित करने का काम कर रहे हैं।

05 मई से एकता परिषद, राष्ट्रीय जलबिरादरी और जल जन जोड़ो अभियान समेत 130 सामाजिक संगठनों के संयुक्त तत्वावधान में जंतर-मंतर पर देशभर से लगभग 4000 लोग एकत्रित हुए। जलाधिकार सत्याग्रह की माँग है कि पानी की समस्या का समाधान टुकड़ो में नहीं हो सकता है। उसके लिये नए कानून की माँग सत्याग्रह कर रहा है। वर्ष 1900 के मुकाबले 2015 में पानी की खपत में 10 गुना बढ़ोत्तरी हुई है। सत्याग्रह के अनुसार देश में 40 फीसदी आबादी के लिये जल उपलब्धता लगातार कठिन होती जा रही है।

जलाधिकार सत्याग्रह को मसर्थन दे रहे कर्नाटक से विधायक बीआर पाटिल के अनुसार उनके शहर के एक तरफ महाराष्ट्र का शोलापुर है और दूसरी तरफ लातूर। श्री पाटिल के अनुसार 40 साल पहले जब बिहार में भयंकर अकाल आया था और 72 में कर्नाटक में सूखा आया था। उस दौरान भी पानी का ऐसा संकट देखने को नहीं मिला। पानी की ऐसी किल्लत हो गई है कि जमीन के अन्दर 1000 फीट तक पानी नहीं मिलता। गन्ना की खेती से महाराष्ट्र के किसानों ने पैसा बना लिया लेकिन अब वे पैसे से पानी नहीं बना पा रहे हैं।

श्री पाटिल के अनुसार निजी कम्पनियाँ पानी पर कब्जा चाहती हैं। इसलिये वे पानी को लेकर पूरे देश में एक दहशत और डर का माहौल बनाने का प्रयास कर रहीं हैं। इस तरह पानी का निजीकरण और फिर पानी पर निजी कम्पनियों का कब्जा आसान होगा।

लातूर के अन्दर पानी के लिये झगड़े में चार लोगों ने अपनी जान दे दी। लातूर के लोगों ने पहले ऐसा हादसा कभी नहीं सुना। इस तरह की खबर अब देश के दूसरे हिस्सों से भी आ रही है।

अब पानी का संरक्षण हमारी प्राथमिकता में नहीं है और जंगल लगाने की जगह हम काट रहे हैं। ऐसे में प्रकृति के साथ हम सन्तुलन कैसे बना सकते हैं? पानी अब भी उतना ही बरसता है, जितना पहले बरसता है। लेकिन अब समय पर नहीं बरस रहा। यह सारी स्थितियाँ हम ही पैदा कर रहे हैं।

सत्याग्रह में शामिल प्रतिभा शिंदे के अनुसार लातूर लाये गए ट्रेन से लातूर पहुँचने तक 21 लाख लीटर पानी रास्ते में बर्बाद हो चुका था। लीकेज की वजह से। शिंदे के अनुसार पानी की बर्बादी को रोकने के लिये वन अधिकार कानून की तर्ज पर केन्द्र सरकार को जल अधिकार कानून बनाना चाहिए।

जल जन जोड़ो अभियान के प्रतिनिधि के नाते बुन्देलखण्ड के संजय सिंह सत्याग्रह से जुड़े हैं। संजय सिंह और राजेन्द्र सिंह ने बुन्देलखण्ड के हर उस गाँव को मदद करने का निर्णय लिया है। जो अपनी मदद खुद करने को तैयार हैं।

संजय सिंह के अनुसार बुन्देलखण्ड में इसलिये सूखा नहीं है कि प्रकृति ने बुन्देलखण्ड के साथ कोई अन्याय किया है। बारिश तो वहाँ पहले की तरह ही हो रही है लेकिन हमने अपना पारम्परिक जल संरक्षण की व्यवस्था को खत्म करके अपने पैर पर ही कुल्हाड़ी मारी है। बुन्देलखण्ड में चन्देलों और बुन्देला राजाओं ने खासतौर से पानी का बहुत अच्छा काम किया था।

बुन्देलखण्ड में कभी 12,000 चन्देलकालीन तालाब हुआ करते थे। अब 1300 तालाब रह गए हैं। जिनमें 300 तालाबों में पानी नहीं है। श्री सिंह ने बुन्देलखण्ड पैकेज का जिक्र करते हुए कहा- 7200 करोड़ रुपए का बुन्देलखण्ड पैकेज सरकार ने पूरे बुन्देलखण्ड में खर्च किया और एक तालाब पूरे बुन्देलखण्ड में नहीं दिखता जो उस पैसे से दुरुस्त हुआ हो। बुन्देलखण्ड से 18 लाख लोग रोजगार की तलाश में पलायन कर चुके हैं। इस बीच ना जाने कहाँ से बुन्देलखण्ड में टैंकर लॉबी प्रकट हुई है जो पैसे देने से टैंकर भर कर पानी पहुँचाने आ जाती है।

संजय सिंह ने यकिन दिलाया कि सरकार तीन साल ईमानदारी से बुन्देलखण्ड में काम करने की इच्छा शक्ति दिखाए तो चौथे साल में बुन्देलखण्ड की एक नई तस्वीर सामने होगी।

पीवी राजगोपाल मानते हैं कि इस मुद्दे पर सामाजिक संगठनों की मदद और सामूहिक प्रयास से हमें योजना बनानी चाहिए कि कैसे नीति निर्माताओं, सरकार और सरकार के प्रशासनिक अधिकारियों से इस अभियान में सहयोग हासिल किया जाये?

पानी के मुद्दे पर पूरे देश की नजर है। नब्बे फीसदी जल आज भी देश की जनता के हाथ में। अब देश की निजी कम्पनियों की नजर पानी पर है। यदि इस वक्त पानी के मुद्दे पर समाज जागरूक नहीं हुआ तो धीरे-धीरे पानी भी निजी हाथों में चला जाएगा और बूँद-बूँद पानी की कीमत हमसे वसूली जाएगी। इसलिये यह समय सावधान रहने का है।
 

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