मध्यप्रदेश की उत्तर-पश्चिमी दिशा में बसे सात जिलों में सहरिया आदिवासी रहते हैं। सहरिया आदिवासी समुदाय को भारत सरकार ने पिछड़ी हुई आदिम जनजातियों की श्रेणी में शामिल किया है। आज इसी समुदाय के बीच से खाद्य असुरक्षा के कारण लोगों की असामयिक मौतों के मामले लगातार आने लगे हैं। मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले के कराहल आदिवासी के पूर्वजों के सबसे करीबी रिश्तेदार जंगल थे। जीवन के तीज-त्यौहार, विश्वास, आजीविका सब कुछ जंगल से जुड़े हुये थे। पचास साल पहले तक जंगल ही हमारे परिवार को पालता था। 1960 के दशक में विकास के नाम पर सरकार ने जंगल का जरूरत से ज्यादा दोहन शुरू किया। वनाच्छादित यह इलाका 20 साल में जंगल विहीन हो गया। 1980 के बाद इस इलाके में पत्थर की खदानों के लिये जमीन की खुदाई शुरू हो गई। अब जमीन की सतह पर भी मिट्टी नहीं रही और सतह के नीचे आधार भी नहीं रहा। जंगल से लेकर जमीन तक का भारी दोहन ठेकेदारों ने किया सरकार ने उनके हितों के मद्देनजर ही नीतियां बनाई। पहले जंगल खत्म किया गया। फिर जंगल के संरक्षण के नाम पर आदिवासियों को अतिक्रमणकारी कहकर संबोधित किया जाने लगा और लक्ष्य बना उन्हें जंगल से निकालने की कवायद होने लगी।
ऐसे में ही आजीविका का सवाल धीरे-धीरे महत्वपूर्ण होने लगा। विकास की जिस परिभाषा को राज्य अपना रहा है उससे संसाधनों पर अधिकार और स्थाई आजीविका का अधिकार समाज के एक खास वर्ग को मिला है और समाज का दो तिहाई हिस्सा असुरक्षित अजीविका के जाल में फंसता गया। पिछले 25 वर्षों का अनुभव बताता है कि आजीविका के ऐसे स्रोत (जैसे - कृषि, वन उत्पादन और पशुपालन, मछली पालन) जिनसे बड़े स्तर पर लोगों को रोजगार मिलता था, नीतिगत रूप से उन स्रोतों पर से सरकार का ध्यान द्वितीयक क्षेत्र (जैसे उद्योग और सेवा क्षेत्र) पर केन्द्रित हुआ। इस क्षेत्र में कागजी मुद्रा का विस्तार तो नजर आया किन्तु रोजगार के अवसर बहुत तेजी से कम हुये। मध्यप्रदेश की स्थापना 1956 में हुई थी, इस दौरान सकल राज्य घरेलू उत्पाद तीन गुना बढ़ गया पर बेरोजगारी का स्तर सात फीसदी से बढ़कर 23 फीसदी हो गया ।
मध्यप्रदेश में शहरी क्षेत्र में 63.3 प्रतिशत परिवार ऐसे हैं जिनमें प्रतिव्यक्ति कुल खर्च रुपये 775.00 प्रतिमाह होता है। एक आंकलन के अनुसार इस राशि से केवल पेट भरने लायक भोजन की व्यवस्था की जा सकती है। स्वास्थ्य, शिक्षा एवं मानवीय विकास की अन्य जरूरतों को इस राशि में पूरा नहीं किया जा सकता है। ग्रामीण इलाकों में तो 93.9 प्रतिशत ऐसे परिवार हैं जिन पर 775.00 रुपये की राशि से भी कम व्यय हो रहा है।
मध्य प्रदेश में प्रति व्यक्ति प्रतिमाह का खर्च (1000 व्यक्तियों में से शहरी | ||||||||||||
0 से 300 |
300 से 350 |
350 से 425 |
425 से 500 |
500 से 575 |
575 से 665 |
665 से 775 |
775 से 915 |
915 से 1120 |
1120 से 1500 |
1500 से 1925 |
1925 से ज्यादा |
कुल |
37 |
36 |
109 |
135 |
102 |
110 |
104 |
94 |
92 |
84 |
42 |
55 |
1000 |
स्रोत: भारत में रोजगार और बेरोजगारी की स्थिति, NSSO रिपोर्ट क्रंमांक 560, वर्ष 2004
मध्य प्रदेश में प्रति व्यक्ति प्रतिमाह का खर्च (1000 व्यक्तियों में से) | ||||||||||||
0 से 225 |
225 से 255 |
255 से 300 |
300 से 340 |
340 से 380 |
380 से 420 |
420 से 470 |
470 से 525 |
525 से 615 |
615 से 775 |
775 से 950 |
950 से ज्यादा |
कुल |
69 |
54 |
111 |
103 |
129 |