नरेगा ने मन मोहा मध्य प्रदेश का

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राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) की मध्यप्रदेश में सफलता के कारण

विकास संवाद केन्द्र के प्रमुख सचिन जैन मानते हैं कि चुनाव प्रचार के दौरान नरेगा के बारे में किए गए अध्यान में यह लक्ष्य उभर कर सामने आया कि योजना में भ्रष्टाचार भी काफी है। आधे से ज्यादा जॉबकार्ड धारकों के खाते नहीं खुले हैं। पोस्ट ऑफिस भी मजदूरी के पैसे का पूरा भुगतान नहीं कर रहा है। कानून के मुताबिक लोगों को काम भी नहीं मिल रहा है। डिण्डोरी जिले में 152 से अधिक बैगा आदिवासियों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है।

मध्य प्रदेश में नरेगा योजना पूरी तरह से नौकरशाहों के हाथ में है। मुख्य सचिव सशक्त समिति के अध्यक्ष हैं। जॉब कार्ड खरीदे जाने के भी कई मामले हैं। छतरपुर जिले की राजनगर तहसील के कन्हैया अहिरवार की तकलीफ यह है कि वर्ष 2008 में उसे पुलिया निर्माण के काम में लगाया गया लेकिन मजदूरों का भुगतान आज तक नहीं हुआ। सिवनी जिले के कुई विकास खंड में ठेकेदार कार्ड किराए पर लेकर योजना में काम कर रहे हैं। कई स्थानों पर जॉब कार्ड सरपंच के कब्जे में होने की शिकायतें भी मिलती रही हैं। मजदूरी की दर भी अलग-अलग है। कई लोग शिकायत करते हैं कि पूरे सौ दिन भी काम नहीं मिल पाता।

नरेगा के बढ़ते कदम (मध्य प्रदेश)

वर्ष 2008-2009

योजना में शामिल जिले 50
केन्द्र से प्राप्त राशि 3815 करोड़ 26 लाख 73 हजार रु.
राज्य का अंश 505 करोड़ 99 लाख 86 हजार रु.
उपलब्ध राशि 4809 करोड़ 87 लाख 22 हजार रु.
व्यय राशि 3551 करोड़ 86 लाख 71 हजार रु.
जॉबकार्ड धारक परिवार 1 करोड़ 12 लाख 29 हजार 546 रु.
रोजगार प्राप्त परिवार 52 लाख 4 हजार 924 रु.
वितीय वर्ष में पूर्ण कार्य 1 लाख 82 हजार 864 रु.

वर्ष 2007-2008

योजना में शामिल जिले 31
केन्द्र से प्राप्त राशि 2605 करोड़ 87 लाख 89 हजार रुपये
राज्य का अंश 289 करोड़ 50 लाख 84 हजार रुपये
उपलब्ध राशि 3302 करोड़ 38 लाख 14 हजार रुपये
व्यय राशि 2892 करोड़ 67 लाख 23 हजार रुपये
जॉबकार्ड धारक परिवार 72 लाख 38 हजार 784 रुपये
रोजगार प्राप्त परिवार 43 लाख 46 हजार 916 रुपये
वित्तिय वर्ष में पूर्ण कार्यो की संख्या 1 लाख 36 हजार

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