इस शोध प्रबन्ध के तथ्य संकलन और विश्लेषण के आधार पर यह तथ्य उभर कर आता है कि कला का रूप पर्यावरण पर आश्रित रहा है। मध्य प्रदेश की समशीतोष्ण जलवायु ने यहाँ की प्राकृतिक सम्पदा को समृद्ध बनाया। यहाँ का पर्यावरण ही चित्रकारों के हृदय में कला भाव जगत करने में सफल रहा। यहाँ की प्राकृतिक विविधता ने चित्रकारों को अभिव्यक्ति के नवीन आयाम दिये। चित्रकारों ने प्रकृति के विभिन्न रूपों को आत्मसात कर दृश्य चित्रों के माध्यम से दृश्यात्मक रूप में संरक्षित किया। चित्रकला के इतिहास में उन दृश्य चित्रकारों ने दृश्य चित्रण प्रकृति और स्वप्रेरणा से ही सृजित किये। जो इस बात को प्रकट करते हैं कि कला और पर्यावरण को कभी अलग नहीं किया जा सकता है। वे एक दूसरे के पूरक हैं। चित्रकारों ने इसे विविध माध्यमों से व्यक्त कर पर्यावरण संरक्षण के प्रति कला जगत और जन-सामान्य को चिन्तन के लिये अग्रसर किया।
वर्तमान में आधुनिक कलाकार स्टूडियों में बैठकर स्वान्तः सुखाय को महत्व देते हुए अमूर्त चित्रण करते रहते हैं और चित्रकार आकृति और रंग संयोजन में उलझकर रह जाता है। कभी-कभी वह कृति दशकों की समझ से परे हो जाती है। इससे आन्तरिक ज्ञान स्तर-दर-स्तर ज्ञान कुंठित होने की सम्भावना रहती है। चित्रकार स्टूडियों में बैठ कार्य करता रहता है और प्रकृति (पर्यावरण) अपनी जगह अलग संकुचित होती रहती है। अतः उसे स्टूडियों से बाहर निकलना पड़ेगा। जब वह प्रकृति की ओर उन्मुख होगा, तभी पूर्ण ऊर्जा के साथ कला सृजन के सौन्दर्य से अवगत होगा। यह दृश्य चित्रण जैसी पारम्परिक कला से ही सम्भव है।
नवीन सम्भावनाएँ
प्रस्तुत शोध प्रबन्ध से दृश्य कला के क्षेत्र में शोधार्थियों को नवीन आयाम मिलेंगे। मध्य प्रदेश की दृश्य कला (दृश्य चित्रण) समाज को नवीन परिवेश प्रदान कर वृक्षों, नदियों, भूमि आदि के संरक्षण की ओर प्रेरित करेगी। समाज में पर्यावरण को बचाये रखने और कला से जोड़ने की सही सूचना प्रदान करेगा। श्री अमृतलाल वेगड़ जी कोलाज और साहित्य के माध्यम से पर्यावरणीय कार्य कर रहे हैं जो एक प्रेरणा स्रोत हैं। दृश्य चित्रण द्वारा तत्कालीन सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक स्मृतियों को संजोकर रखा जाएगा। अतः ये सिर्फ कृतियाँ ही नहीं बल्कि अमूल्य दस्तावेज भी हैं, जिन्हें भविष्य में शोधार्थी अपने शोध के लिये उपयोग कर सकेंगे।
यह शोध प्रबन्ध केवल दृश्य चित्रों की तकनीक एवं महत्व को ही प्रदर्शित नहीं करता। बल्कि यह जनमानस को अमूल्य दस्तावेजों के संरक्षण के लिये भी प्रेरित करता है। दृश्य चित्रण को पर्यावरण के साथ सम्बन्धित कर और अधिक उपयोगी बना दिया गया है। अतः इस शोध प्रबन्ध से आने वाले शोधार्थी भी लाभान्वित हो सकेंगे।
वर्तमान में आधुनिक कलाकार स्टूडियों में बैठकर स्वान्तः सुखाय को महत्व देते हुए अमूर्त चित्रण करते रहते हैं और चित्रकार आकृति और रंग संयोजन में उलझकर रह जाता है। कभी-कभी वह कृति दशकों की समझ से परे हो जाती है। इससे आन्तरिक ज्ञान स्तर-दर-स्तर ज्ञान कुंठित होने की सम्भावना रहती है। चित्रकार स्टूडियों में बैठ कार्य करता रहता है और प्रकृति (पर्यावरण) अपनी जगह अलग संकुचित होती रहती है। अतः उसे स्टूडियों से बाहर निकलना पड़ेगा। जब वह प्रकृति की ओर उन्मुख होगा, तभी पूर्ण ऊर्जा के साथ कला सृजन के सौन्दर्य से अवगत होगा। यह दृश्य चित्रण जैसी पारम्परिक कला से ही सम्भव है।
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प्रस्तुत शोध प्रबन्ध से दृश्य कला के क्षेत्र में शोधार्थियों को नवीन आयाम मिलेंगे। मध्य प्रदेश की दृश्य कला (दृश्य चित्रण) समाज को नवीन परिवेश प्रदान कर वृक्षों, नदियों, भूमि आदि के संरक्षण की ओर प्रेरित करेगी। समाज में पर्यावरण को बचाये रखने और कला से जोड़ने की सही सूचना प्रदान करेगा। श्री अमृतलाल वेगड़ जी कोलाज और साहित्य के माध्यम से पर्यावरणीय कार्य कर रहे हैं जो एक प्रेरणा स्रोत हैं। दृश्य चित्रण द्वारा तत्कालीन सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक स्मृतियों को संजोकर रखा जाएगा। अतः ये सिर्फ कृतियाँ ही नहीं बल्कि अमूल्य दस्तावेज भी हैं, जिन्हें भविष्य में शोधार्थी अपने शोध के लिये उपयोग कर सकेंगे।
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