hindon river
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संपर्क मार्ग को हिंडन बाढ़ क्षेत्र से बाहर करने का आदेश

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करहैड़ा.. उत्तर प्रदेश, जिला गाज़ियाबाद के मोहननगर चौराहे के निकट बसा हुआ एक बड़ा गांव है। अब यह गाज़ियाबाद नगर निगम क्षेत्र में शामिल कर लिया गया है। दो बरस पहले जब करहैड़ा को मेरठ बाइपास से जोड़ने के लिए पुल बनाने के लिए मिट्टी डालने की शुरुआत ही हुई थी, तभी उन्होंने समझ लिया था कि यह पुल हिंडन के प्रवाह को एक ओर से संकरा करेगा; दूसरी ओर से करहैड़ा को डुबोयेगा; साथ ही नदी की भूमि को भी संकुचित कर देगा। दरअसल आपत्ति पुल को लेकर कभी नहीं थी। पुल की लंबाई 180 मीटर है। पुलखंभों पर टिका होता है। इसे लेकर आपत्ति का तो प्रश्न ही नहीं। आपत्ति आगे एक भरवा ढलान रोड के जरिए इसे मेरठ बाइपास से जोड़ने को लेकर थी। “करहैड़ा पुल इस तरह बन रहा है कि इससे हिंडन नदी का प्राकृतिक प्रवाह संकुचित होगा; साथ ही नदी की जगह भी। वर्तमान शिकायत यही है। उत्तरदाताओं ने साफ तौर पर माना कि पुल का संपर्क मार्ग नदी के उच्चतम स्तरीय बाढ़ क्षेत्र में आता है। जाहिर है कि इससे नदी का प्राकृतिक प्रवाह बाधित होगा। समाधान साधारण है कि पुल के किसी ओर अतिरिक्त खंभों का निर्माण किया जाए। पुल अभी निर्मित हो ही रहा है। निर्माण पूरा नहीं हुआ है। खंभे कितने हों, इसका निर्धारण हम यह पुल बनाने वाले इंजीनियरों पर छोड़ते हैं, लेकिन वह यह सुनिश्चित करने वाला हो कि संपर्क मार्ग बाढ़ क्षेत्र में न आता हो। इन्हीं निर्देशों के साथ याचिका का निपटारा करने की जरूरत है। उत्तरदाता उक्त निर्देशों का पालन करें।’’

बीती 15 मई को आया यह फैसला है करीब दो साल चले ‘विक्रांत बनाम यूनियन ऑफ इंडिया’ मामले का। विक्रांत शर्मा पेशे से एडवोकेट और मन से नदी को मां तथा पानी को अपने जीवन से भी जरूरी मानने वाले युवा हैं। फैसले के लिए करहैड़ा के लोगों ने विक्रांत को बाक़ायदा 16 मई को एक बैठक कर सम्मानित किया। विक्रांत कहते हैं - “मेरे बाबा करहैड़ा में हेडमास्टर थे। हिंडन प्रदूषण मुक्ति की कई यात्राएं मैने करहैड़ा से ही शुरू की। इस तरह मुझ पर करहैड़ा के अन्न और नमक का कर्ज है। मैं तो सिर्फ कर्ज की फर्ज अदायगी कर रहा हूं; असल श्रेय तो मेरी उस छोटी सी पुरानी मारुति कार को दें,जो मुझे हर सुनवाई पर समय से पहुँचाती रही; दीपक और कौस्तुक जैसे हम उम्र वकीलों को दें, जिन्होंने सरकारी पक्ष के दिग्गज वकीलों के सामने न हथियार डाले और न बिके; रक्षक व भारतेन्दु, जिन्होंने हमेशा हौसला अफजाई की; तेवतिया, संजय, धमेन्द्र, हीरेन्द्र जैसे साथी, जो ढाल बनकर खड़े रहे; करहैड़ा के लोग,जिन्होंने कभी मेरा भरोसा नहीं तोड़ा... असल श्रेय इन्हें जाता है।’’ वह ‘हरनंदी कहिन’, वाटर पोर्टल, जलबिरादरी और कभी-कभी अपनी कलम से सहयोग करने वाले मेरे जैसे साथियों को भी धन्यवाद कहना नहीं भूलते। विक्रांत की इसी विनम्रता और बड़प्पन ने एक मामूली से दिखने वाले इस नौजवान के सिर पर जीत का बड़ा सेहरा बांध दिया है।

हिंडन नदी जहां भरवा पुल बनाया जा रहा था

अखबारों में किसी ने इसे सिंचाई विभाग और जी डी ए की जीत की तरह पेश किया है और किसी ने गांव की जीत की तरह। सच यह है कि यह फैसला हिंडन नदी की जीत है। यह सुनिश्चित करता है कि बाढ़ क्षेत्र में कोई ऐसा निर्माण न हो, जिससे बाढ़ की तीव्रता बढ़े.. बाढ़ और उग्र हो जाए। यह फैसला यह भी सुनिश्चित करता है कि नदी के प्रवाह और नदी की भूमि को संकुचित करने का हक किसी को नहीं। यह फैसला उनकी आंखें भी खोलने वाला है जो ‘रिवर फ्रंट डेवलपमेंट’ के नाम नदी किनारे के सभी प्रमुख शहरों में नदियों के प्रवाह को संकुचित करने और शेष बची नदी भूमि के व्यावसायिक उपयोग की योजना बनाए बैठे हैं। अहमदाबाद यही करके अपनी पीठ ठोंक रहा हैं। गोमती नदी पर लखनऊ इसी सपने की तैयारी में है। आज देश भर में नदियों की भूमि और बाढ़ क्षेत्र में अतिक्रमण और बसावट की बाढ़ है। निजी ही नहीं, खुद सरकारें भी कई जगह यही कर रही हैं। उन सभी के लिए यह फैसला एक सबक है।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल ने पुल का काम आगे बढ़ने से रोकी

हिंडन नदी पर पुल बनने से संकट में होता करहैड़ा गांव

विक्रांत शर्मा

लोगों को संबोधित करते विक्रांत शर्मा

लोगों को संबोधित करते अरुण तिवारी

एनजीटी द्वारा दिए गए फैसले पर विचार विमर्श करते अरुण तिवारी व अन्य

विक्रांत शर्मा पेशे से वकिल हैं

वह स्थान जहां हिंडन नदी पर पुल बन रहा था

एनजीटी द्वारा दिए गए फैसले को देखने के लिए अटैचमेंट देखें।

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