1993 की बागमती की बाढ़

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बागमती नदी घाटी में आने वाली प्रायः हर बड़ी बाढ़ अब पिछले सारे रिकार्डों को तोड़ने का ही काम करती है। यह तो स्वाभाविक ही है कि तटबन्धों के बीच कैद हो जाने के बाद नदी की पेंदी में गाद बैठेगी और उसका जल स्तर ऊपर उठेगा। ऐसी परिस्थिति में अलग-अलग वर्षों में अगर नदी में एक ही प्रवाह आये तो भी नदी का उच्चतम बाढ़ लेवल ऊपर की ओर उठता ही जायेगा और नदी पहले से ज्यादा खतरनाक होती जायेगी। बागमती में बाढ़ 1995, 1996, 1998, 2001 तथा 2002 में भी काफी परेशानी पैदा करने वाली थी।

1993 में बागमती नदी में बाढ़ दो किस्तों में आयी थी। पहली बार बाढ़ का ताण्डव 21 जुलाई से देखा गया जबकि दूसरा दौर अगस्त के दूसरे सप्ताह में देखने में आया जिससे जुलाई में हुई तबाही दोगुनी हो गयी। बारिश के मौसम की शुरुआत में इस साल बाढ़ आने के कोई आसार नहीं थे और 15 जुलाई तक स्थिति प्रायः सामान्य बनी हुई थी। अगर कहीं कोई चर्चा थी तो वह सूखे की होती थी। उसके बाद अचानक, नेपाल में जोर से बारिश शुरू हुई जिससे बागमती, अधवारा, कमला-बलान और गंडक नदियों के बहाव क्षेत्र में स्थिति काफी गंभीर हो गयी। वर्षापात इतना तेज और एकाएक हो गया कि बागमती के तराई वाले भाग में एक दिन के अन्दर जलस्तर में 10 मीटर की वृद्धि हुई। नेपाल में भारतीय दूतावास के प्रथम सचिव ए. आर. घनश्याम द्वारा निदेशक-विदेश मंत्रालय, नई दिल्ली, कमिश्नर (बी./एन.) जल संसाधन मंत्रालय, नई दिल्ली और सचिव, जल-संसाधन विभाग (बिहार सरकार) को भेजे गए एक फैक्स संवाद (दिनांक 21.7.1993) के अनुसार ‘‘पिछले तीन दिनों में नेपाल के पूर्वी प्रक्षेत्र में कई नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में भारी बारिश हुई जिसकी वजह से बाढ़ और भू-स्खलन की घटनाओं में त्रिभुवन राजपथ पर भारत द्वारा बनाये गए मैंसे पुल और पृथिवी राजपथ पर मा एखू पुल समेत 8 पुल बह गए।

इन दोनों पुलों के ध्वस्त हो जाने की वजह से काठमाण्डू का तराई के साथ सम्पर्क समाप्त हो गया है। आधिकारिक सूचना के अनुसार 50 लोग मारे गए हैं और जान-माल के नुकसान की खबरें अभी भी आ रही हैं।’’ संवाद में आगे कहा गया, ‘‘...जल विज्ञान विभाग की सूचना के अनुसार त्रिशूली और बागमती नदियां अपने सामान्य स्तर से 8 से 10 मीटर की ऊँचाई पर बह रही हैं और त्रिशूली तथा बागमती के पूर्वी किनारे के बीच में भारी नुकसान उठाना पड़ा है। पूरब-पश्चिम राजपथ के दक्षिण में गौर बाजार जैसे कुछ कस्बे आज सुबह 5 से 6 फीट पानी में डूबे हुए हैं। पंदारे में भारत की सहायता से निर्मित एक रज्जु मार्ग और वर्षा नापने का एक केन्द्र बह गया है। कुलेखानी जल विद्युत गृह का पेनस्टॉक पाइप बह जाने के कारण बिजली की आपूर्ति में अतिरिक्त कटौती हुई है... मौसम विभाग के विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले 48 घन्टों में बारिश और भी ज्यादा होगी जिससे नुकसान बढ़ सकता है।’’

यह सारा का सारा पानी नेपाल में तबाही मचाता हुआ भारत की ओर बढ़ा जहाँ उसे बागमती नदी के बाईं ओर मेजरगंज से रुन्नी सैदपुर तक 73 कि.मी. लम्बा तथा दाहिने किनारे पर 56 कि. मी. लम्बा तटबन्ध मिलता है। बैरगनियाँ का रिंग बांध उस समय मात्र 6.7 किलोमीटर लम्बा था। बागमती परियोजना का काम बन्द कर दिये जाने के कारण यह तटबन्ध अधूरे थे इसलिए बिहार का जल-संसाधन विभाग भी यह मानता था कि इन तटबन्धों से मिलने वाली सुरक्षा भी अधूरी थी। बागमती के बहते पानी ने पहले तो 21 जुलाई की सुबह सीतामढ़ी जिले के मेजरगंज प्रखंड में सात स्थानों पर इन तटबन्धों को तोड़ा फिर उसी दिन मूसाचक और नन्दवारा समेत तीन स्थानों पर बैरगनियां रिंग बांध को तोड़ा। इन दरारों की लम्बाई क्रमशः 765 मीटर और 366 मीटर थी। नतीजा यह हुआ कि लगभग पूरा मेजरगंज और बैरगनियाँ प्रखंड अभूतपूर्व बाढ़ की चपेट में आ गए। बेलवा में तटबन्ध पहले से ही खुला हुआ था जो कि पहले से भी ज्यादा फैल गया और अब बेलसंड, परिहार, तरियानी, पिपराही और शिवहर प्रखंड बागमती के निशाने पर थे। तटबन्ध क्षतिग्रस्त होने के कारण कुल 1.25 लाख हेक्टेयर क्षेत्र पर पानी फैला जबकि इन तटबन्धों के निर्माण के फलस्वरुप 2.90 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को बाढ़ से सुरक्षा मिलने वाली थी।

बिहार राज्य के दूसरे सिंचाई आयोग (1994) की रिपोर्ट के अनुसार बाढ़ के पानी की तीव्रता इतनी ज्यादा थी कि 24 जुलाई के दिन ढेंग के पास नदी के पानी का स्तर क्रमशः 73.00 मीटर और डुब्बाघाट में पानी का लेवल 61.86 मीटर देखा गया। यानी इस साल ढेंग पुल पर पानी का लेवल अब तक के सर्वाधिक लेवल 71.80 मीटर (1987) से लगभग 4 फुट अधिक था जबकि डुब्बाघाट पर इसने 1978 में देखे गए अपने सर्वाधिक लेवल की बराबरी कर ली थी। नतीजा हुआ कि जब बैरगनियाँ रिंग बांध में दरार पड़ी तो उसके 24 गाँव बाढ़ के पानी में डूब गए। बसबिट्टा के आस-पास बागमती का तटबन्ध जो ढेंग पुल के उत्तर में टूटा वह सारा पानी मेजरगंज और रीगा होते हुए सीतामढ़ी पहुँच गया और फिर लखनदेई और मनुस्मारा में भी घुस गया तथा उन इलाकों को डुबाया जहाँ से होकर यह नदियाँ बहती हैं। 20 जुलाई की दोपहर से अधवारा समूह की नदियों में भी बाढ़ आ गई और शाम होते-होते परिहार, सुरसंड और सोनबरसा प्रखंड पूरी तरह से बाढ़ की चपेट में आ गए और सड़कों तथा रेल लाइन पर बने पुलों को भारी नुकसान पहुँचा। बैरगनियाँ को ढेंग से जोड़ने वाली रेल लाइन हवा में झूल गयी। 22 जुलाई को राहत और बचाव कार्यों के लिए सीतामढ़ी में सेना को उतारना पड़ गया था।

इस पूरे मसले को लेकर बिहार विधान मंडल में अच्छी-खासी बहस हुई। जल-संसाधन विभाग को 18 से 20 जुलाई के बीच नेपाल में हुई भारी वर्षा का समाचार मिल चुका था और राज्य के जल-संसाधन मंत्री ने बिहार विधान सभा को भविष्य में आने वाले खतरे के प्रति आगाह कर दिया था। यह एक अलग बात है कि उनके बिहार विधान सभा को सूचना देने के पहले जो नुकसान होना था वह हो चुका था। विधान परिषद में डॉ. पद्माशा झा ने बागमती घाटी में बाढ़ से हुए नुकसान पर भारी टोका-टाकी के बीच अपना मंतव्य रखा और सरकार से मांग की कि व्यापक पैमाने पर राहत कार्य चलाया जाए। उन्हें एक बार बीच में टोकने वालों को धमकाना भी पड़ा ‘‘...यदि इस तरह से बोलियेगा तो सीतामढ़ी में घुसने नहीं दूँगी।’’ तटबन्धों के चिथड़े उड़ जाने पर डॉ. महाचन्द्र प्रसाद सिंह का प्रश्न था, ‘‘...हम ताल नहीं ठोंकते थे, लेकिन लालू प्रसाद जी और माननीय जगदानन्द सिंह जी ताल ठोंकते थे कि हर तटबन्ध को मजबूत करेंगे। टूटेगा तो इंजीनियर के विरुद्ध कार्यवाही करेंगे... इसलिए हम पूछना चाहते हैं कि तटबन्ध को आप मजबूत करने की स्थिति में थे या नहीं? ...किसको जवाबदेही आपने दी थी कि तटबन्ध को कौन नहीं टूटने देगा? कौन-सा इंजीनियर था?’’ उस समय लालू प्रसाद यादव राज्य के मुख्यमंत्री और जगदानन्द जल-संसाधन मंत्री थे।

इस बहस में केन्द्र सरकार को नेपाल सरकार से बातचीत और समझौता न करने के लिए उलाहना भी दिया गया। रघुवंश प्रसाद सिंह का कहना था, ‘‘...ये जो भारत-नेपाल का समझौता है वह जब तक होगा नहीं, बाढ़ से बर्बादी नहीं रुक सकती और कहते हैं कि भारत सरकार से लोग मांग करते हैं तो बिहार की जो सम्पदा है खान-खनिज की, उसकी मालिक है भारत सरकार लेकिन बिहार की जो प्राकृतिक आपदा है, अब बाढ़ का समय आता है, सुखाड़ का समय आता है, उसका मालिक है बिहार, जहाँ वित्तीय संकट है ...इसलिए मैं भारत सरकार से मांग करता हूँ कि अंतर्राष्ट्रीय नदियों पर नियंत्रण के लिए भारत-नेपाल के बीच में समझौता होना चाहिये।’’ उधर अब्दुल बारी सिद्दीकी बाढ़ नियंत्रण क्षेत्र में पैसों की बर्बादी और व्यवस्था में व्याप्त व्यापक भ्रष्टाचार पर चिन्तित थे। उनका कहना था, ‘‘...सरकार अरबों रुपये फ्लड कन्ट्रोल के नाम पर, बांध बनाने के नाम पर, कोसी सुरक्षा के नाम पर खर्च कर चुकी है। इसकी भी समीक्षा होनी चाहिये कि अरबों रुपये खर्च होने के बावजूद ये आम समस्या, हर वर्ष की समस्या प्राकृतिक विपदा के रूप में हमारे देश में क्यों बनी है? ...अरबों रुपये, करोड़ों रुपये जो बाढ़ सुरक्षा के लिए खर्च हुए वह किनके पॉकेट में करोड़ों-लाखों रुपया गया?’’

इस पूरी बहस का जवाब देते हुए राज्य के जल-संसाधन मंत्री का कहना था, ‘‘...लेकिन हमारी समझ है, नेपाल में समस्या है और हल कर रहे हैं बिहार के भीतर। रोग कुछ है, हम क्यूरेटिव मेडिसिन कर ही नहीं रहे हैं, हम तो सिम्पटॉमिक मेडिसिन का उपाय कर रहे हैं। मतलब कि बाढ़ आ जाए तो पानी थोड़ा बांध के भीतर से बहते हुए समुद्र में चला जाए, पानी बरस रहा है नेपाल में, पानी जा रहा है समुद्र में और बीच में पड़ता है बिहार। महोदय, मैं जानता हूँ कि जब आप कहते हैं कि बाढ़ से बचाने के लिए आप ने क्या किया, तो बाढ़ से बचाने के लिए जो 40 साल में हमारे एम्बैन्कमेन्ट बने हैं, हम उसी को ठीक करते हैं।’’ 1993 में ही झंझारपुर के पास कमला नदी का दायाँ तटबन्ध सोहराय गाँव के पास टूट गया था। उस घटना का हवाला देते हुए जल-संसाधन मंत्री का कहना था, ‘‘...पहले सरपंच ने खबर दी थी कि रिसाव हो रहा है।

उस दिन सब हमारे एक्जिक्यूटिव इंजीनियर को, हमारे असिस्टेन्ट इंजीनियर को, हमारे जूनियर इंजीनियर को उन्होंने कहा कि टूट जायेगा तटबंध, हम को बोरा दें, हम लोग अपने से काम कर लेंगे। आश्चर्य है महोदय! इतने हरामखोर हमारे पदाधिकारी थे कि तटबन्ध को टूट जाने दिया इसलिए, लेकिन लोगों को बोरा तक मुहैया नहीं किया पैसे से, साधन से और वह तटबंध मानवीय भूल के कारण ही टूट गया और नतीजा था, आपने कहा था कि मुख्यमंत्री और जल-संसाधन मंत्री ने कहा था कि यदि तटबन्ध टूटेगा तो हम सबको तोड़ डालेंगे और मैं आपको सूचना देना चाहता हूँ कि आपके सदन में आने के पहले मैं सभी अफसरों को सस्पेंड कर के आया हूँ।’’ उधर जगन्नाथ मिश्र ने विधान सभा में सरकार की खिंचाई करते हुए कहा, ‘‘...सिंचाई मंत्री ने पहले कहा था कि कोई तटबन्ध नहीं टूटेगा, इस साल भी ऐलान किया था कि कोई तटबन्ध नहीं टूटेगा लेकिन अनेक स्थानों पर टूट गया है बागमती का, गंडक का, फिर हमारा कमला बलान का टूट गया है और आगे भी इन पर दबाव जारी है। जितने तटबन्ध हैं सब पर दबाव जारी है। किसी क्षण टूट सकता है। इसलिए ऐलान मत कीजिये, घोषणा मत कीजिये और काम करिये तथा तटबन्धों की हिफाजत करिये...।’’

यह एक अलग बात है कि अफसरों को सस्पेंड कर देने से और नेपाल में समस्या का समाधान खोजने से उन 15.10 लाख लोगों का कोई भला नहीं होने वाला था जो सीतामढ़ी जिले में इस बाढ़ की चपेट में आये थे जिनकी 8 लाख हेक्टेयर पर लगी खड़ी फसल को इस बाढ़ ने धो दिया था। इस बाढ़ ने 1,35,600 परिवारों को बेघर किया और 38 मनुष्यों और 34 जानवरों को अपने साथ ले गयी। बागमती नदी घाटी में आने वाली प्रायः हर बड़ी बाढ़ अब पिछले सारे रिकार्डों को तोड़ने का ही काम करती है। यह तो स्वाभाविक ही है कि तटबन्धों के बीच कैद हो जाने के बाद नदी की पेंदी में गाद बैठेगी और उसका जल स्तर ऊपर उठेगा। ऐसी परिस्थिति में अलग-अलग वर्षों में अगर नदी में एक ही प्रवाह आये तो भी नदी का उच्चतम बाढ़ लेवल ऊपर की ओर उठता ही जायेगा और नदी पहले से ज्यादा खतरनाक होती जायेगी। बागमती में बाढ़ 1995, 1996, 1998, 2001 तथा 2002 में भी काफी परेशानी पैदा करने वाली थी। 1998 तथा 2001 में क्रमशः राहत की मांग करने और राहत लेने के लिए आये हुए लोगों पर सीतामढ़ी समाहरणालय और मुजफ्फरपुर के औराई प्रखंड के मुख्यालय पर पुलिस ने गोलियाँ भी बरसाईं। इस प्रसंग पर भी हम आगे चर्चा करेंगे।

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