अरुणाचल यात्रा
पहले सुवर्णसीरी वर्षा में भी पारदर्शी रहती थी। अब शायद सड़क आदि के कारण मिट्टी आने लगी है। बाढ़ भी आने लगी है। ज्यादा वर्षा से कभी-कभी भूस्खलन भी होता है। पर बहुत कम। मैदानी हिस्सा कम है, बाकी पहाड़ ही पहाड़ हैं। टोक्सिंग क्षेत्र में 12-13 हजार फीट ऊंचाई तक पहाड़ हैं। इधर बदलाव आ रहे हैं। लोगों की अपेक्षाएं बढ़ी हैं। अब घर भी अच्छा चाहते हैं। पुराने गांव ज्यादा आत्मनिर्भर थे। नमक पहले तिब्बत से लाते थे। पहले झूम में सिर्फ औजारों से काम चलता था। भेड़ की ऊन से कपड़े और कम्बल बनाते थे। अब तो हल बैल भी आ गए हैं। कहीं-कहीं खाद भी आ गई है।
आलोंग के पास सिओम नदी में सिपू नदी समाहित होती है। सुबह ए.के.चटर्जी तथा आलोंग अंचल समिति के सदस्य के.लोमी मिलने आए। उन्होंने चर्चा में बताया कि झूम के स्थान पर पाइन एप्पल तथा संतरे के बागों का विकास हो रहा है। स्थायी खेती की ओर बढ़ रहे हैं। 25 से 30 प्रतिशत झूम नियंत्रण में है। झूम से खेत बनाने के लिए 6 हजार रुपया प्रति हेक्टेयर देते हैं। इस कार्य में ग्रामीण विकास विभाग सहयोग कर रहा है। उन्होंने बताया कि आपतानी (जिरो) में धान के साथ मछली पालन भी होता है। धान नई प्रजाति का है। इसे पकने में 6 माह लगता है। इधर गोभी, पालक, टमाटर, गाजर भी होता है। इस सबसे झूम घट रहा है।
झूम में समय और मेहनत ज्यादा लगती है। झूम खेती करने से पहले जहां जंगल कटता है वहां पूजा करते हैं। वहां अपांग भी साथ ले जाते हैं। जंगल के देवता की पूजा करते हैं। देवता भी हमारे साथ हैं। यहां पर अगाम यानी धान के देवता की पूजा करते हैं। काम मिलकर करते हैं। आग लगाने के बाद साफ होने पर धान लगाने के दिन बड़ी पूजा होती है। मिथुन का बलिदान होता है। मिलकर सभी धान लगाते हैं। धान पकने पर पिमेंग पूजा होती है। नए धान को खाने के पूर्व अम्गन पूजा होती है। बुवाई की पूजा रिकविन कहलाती है। ये सभी पूजाएं हमारे सामुदायिक भवन में होती है, जिसे देयरे कहते हैं।
शदिया टाउन 1950 से पहले बताते हैं कि पासीघाट से भी बड़ा था, पूरे इलाके का केंद्र था। व्यापार का केंद्र था। दूर पहाड़ों से लोग नमक लेने यहां आते थे। लेकिन प्रकृति के सामने हम कितने असहाय हैं यह सब यहां देखा जा सकता है। एक झटके में सब कुछ समाप्त। आज यहां पर मात्र प्रलय का शिलालेख रह गया है, जिसे पढ़ने के लिए सूझ-बूझ की आंखे चाहिए। शदिया में वन विभाग वालों की अपनी वोट है। यहां पर भी ब्रह्मपुत्र उथली-पुथली है। इसे पार करने में ढाई घंटे लगे। यहां पर भी ब्रह्मपुत्र खंड-खंड में अनियंत्रित एवं उन्मुक्त भाव से बह रही है। यही हाल उसकी अन्य सहायक धाराओं का है।