भूकम्प पूर्वानुमान और हम (Earthquake Forecasting and Public)

4 min read


यह सही है कि हम आज भी भूकम्प से जुड़ी कई बातें नहीं जानते हैं और तमाम वैज्ञानिक व तकनीकी उपलब्धताओं के बाद भी पूरे आत्मविश्वास के साथ यह कह पाने की स्थिति में नहीं है कि कब, कहाँ और कितना बड़ा भूकम्प आयेगा। परन्तु ऐसा भी नहीं है कि हम भूकम्प से जुड़े खतरों के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं। हम निश्चित ही भूकम्प से जुड़ी कई ऐसी बातें जानते हैं जिनका उपयोग कर के हम भूकम्प से हो सकने वाली क्षति को काफी कम कर सकते हैं।

यहाँ यह समझना जरूरी है कि आपदा से जुड़े किसी भी पूर्वानुमान की सफलता के लिये तीन पक्षों की जानकारी आवश्यक हैः

(क) आपदा कहाँ घटित होगी?
(ख) आपदा कब घटित होगी?
(ग) आपदा कितनी बड़ी होगी?

इन पक्षों पर हमें जितनी ज्यादा और सटीक जानकारियाँ उपलब्ध होंगी, आपदा को लेकर हमारा पूर्वानुमान भी उतना ही प्रभावी होगा। ऐसा होने की स्थिति में हम निश्चित ही जान-माल बचाने के लिये काफी कुछ कर सकते हैं।

‘‘भूकम्प कहाँ आ सकता है?’’
इस प्रश्न के उत्तर में विगत में आये भूकम्प के आंकड़ों के आधार पर हमने भूकम्प संवेदनशील क्षेत्र चिन्हित किये हैं। पर किसी क्षेत्र विशेष में आने वाले अगले भूकम्प का अभिकेन्द्र कहाँ होगा, हम यह बता सकने की स्थिति में नहीं हैं। जो हम बता सकते हैं वह मात्र इतना है कि चिन्हित क्षेत्र भूकम्प के प्रति संवेदनशील है और भविष्य में भूकम्प से प्रभावित हो सकता है।

हो सकता है हमारे द्वारा चिन्हित कई उच्च भूकम्प संवेदनशील क्षेत्रों में हमारे जीवनकाल में कोई विनाशकारी भूकम्प आये ही नहीं।

साथ ही यह भी सत्य है कि हमारा यह आकलन उपलब्ध आंकड़ों पर निर्भर है और कोई भी पूरे विश्वास के साथ यह नहीं कह सकता कि हमारे द्वारा चिन्हित अपेक्षाकृत कम संवेदनशील क्षेत्रों में कभी भूकम्प आयेगा ही नहीं।

ऐसे स्थानों पर भूकम्प आने के बाद हम अपने द्वारा किये गये आकलन पर पुनर्विचार व सुधार अवश्य करते हैं। ऐसा हमने 2001 में भुज (गुजरात) में आये भूकम्प के बाद किया भी था।
2001 के भुज भूकम्प से पहले भूकम्प संवेदनशीलता के आधार पर देश के भू-भाग को 05 भागों में बाँटा गया था; जोन I, II, III, IV व V। भुज भूकम्प के बाद किये गये आकलन के आधार पर जोन I को समाप्त कर दिया गया और पुनर्विचार के बाद देश को भूकम्प संवेदनशीलता के अनुसार 04 भागों में बाँटा गया; जोन II, III, IV व V।

इसी के साथ भुज भूकम्प के बाद भारतीय मानक ब्यूरो ने भवन निर्माण रीति संहिताओं में भी बदलाव किये। अतः वर्तमान में उपयोग में लायी जाने वाली रीति संहिता के अनुसार 2002 से पहले उस समय प्रयुक्त रीति संहिता के अनुरूप बने भवन भी भूकम्प की स्थिति में असुरक्षित हो सकते हैं।

अतः आवश्यक है कि 2002 से पहले बने सभी भवनों की भूकम्प सुरक्षा पर पुनर्विचार किया जाये और आवश्यकता होने पर इनको वर्तमान प्रावधानों के अनुरूप बनाने के लिये इनका सुदृढ़ीकरण किया जाये। ऐसा महत्त्वपूर्ण भवनों और ऐसी संरचनाओं के लिये तो किया जाना ही चाहिये जहाँ प्रायः बड़ी संख्या में लोग एकत्रित होते हों। विशेष रूप से भूकम्प संवेदनशील क्षेत्रों में तो इसे अवश्य ही अनिवार्य करना चाहिये।

‘‘भूकम्प कब आयेगा?’’
इस प्रश्न का वर्तमान में हमारे पास कोई सीधा जवाब नहीं है। हम जानते हैं कि चिन्हित क्षेत्र भूकम्प के प्रति संवेदनशील हैं और वहाँ कभी भी भूकम्प आ सकता है। परन्तु वास्तव में कब, किस साल, किस दिन या किस समय भूकम्प आयेगा, हम यह बता पाने की स्थिति में नहीं हैं।

बहुत सम्भव है कि कई भूकम्प संवेदनशील क्षेत्रों में हमारे जीवनकाल में भूकम्प आये ही नहीं।

‘‘कितना बड़ा होगा आने वाला भूकम्प?’’
सभी प्रश्नों में से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है यह और इसी का उत्तर चेतावनी मिलने के बाद हमारी व प्रतिवादन के लिये उत्तरदायी संस्थाओं की प्रतिक्रिया का स्तर निर्धारित करेगा। अब जब तक परिमाण का पता न हो, कल फलाँ जगह भूकम्प आयेगा का तो कोई मतलब नहीं है। ऐसे तो लोग चेतावनी पर ध्यान देना ही बन्द कर देंगे। अब विडम्बना ही तो है कि हम इस बारे में भी बस कयास ही लगा सकते हैं। सच में इस प्रश्न का भी हमारे पास कोई ठीक-ठाक जवाब नहीं है।

जरा सोचिये! क्यों न कितना ही बड़ा भूकम्प आ जाये। क्या होगा यदि कोई अवसंरचना ध्वस्त ही न हो?


ऐसी स्थिति में तो हम इसे महज एक सामान्य घटना की तरह लेंगे, न कि आपदा के रूप में। शायद तब हम उस घटना को याद भी न रखें।


ठीक उसी तरह जैसे कि अन्टार्कटिका जैसे निर्जन स्थान पर आये बड़े से बड़े भूकम्प की कोई बात नहीं करता।

कहीं धरती न हिल जाये

(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें)

क्रम

अध्याय

1

पुस्तक परिचय - कहीं धरती न हिल जाये

2

भूकम्प (Earthquake)

3

क्यों आते हैं भूकम्प (Why Earthquakes)

4

कहाँ आते हैं भूकम्प (Where Frequent Earthquake)

5

भूकम्पीय तरंगें (Seismic waves)

6

भूकम्प का अभिकेन्द्र (Epiccenter)

7

अभिकेन्द्र का निर्धारण (Identification of epicenter)

8

भूकम्प का परिमाण (Earthquake Magnitude)

9

भूकम्प की तीव्रता (The intensity of earthquakes)

10

भूकम्प से क्षति

11

भूकम्प की भविष्यवाणी (Earthquake prediction)

12

भूकम्प पूर्वानुमान और हम (Earthquake Forecasting and Public)

13

छोटे भूकम्पों का तात्पर्य (Small earthquakes implies)

14

बड़े भूकम्पों का न आना

15

भूकम्पों की आवृत्ति (The frequency of earthquakes)

16

भूकम्प सुरक्षा एवं परम्परागत ज्ञान

17

भूकम्प सुरक्षा और हमारी तैयारी

18

घर को अधिक सुरक्षित बनायें

19

भूकम्प आने पर क्या करें

20

भूकम्प के बाद क्या करें, क्या न करें

India Water Portal Hindi
hindi.indiawaterportal.org