भूकम्प (संदर्भः 1991 का उत्तरकाशी भूकम्प)

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सहमी-सी गंगा की धार
कांपे है बदरी-केदार

बादल घिर-घिर के आये
फैले जहरीले साये।
ऐसा तो देखा पहली बार रे।

कहीं-कहीं मांजी के आंसू पोंछ रही है बहना,
अपने दुख दर्दों को बाबा भूल गये हैं कहना।

बच्चों के सिर से परिवारों की छत टूट गई है,
आंसू डूबी नावों में अब है बस्ती को रहना।

प्रश्नों के गहरे साये,
उसमें है नींद समायें।

ऐसा तो देखा पहली बार रे।
सूने गांव मातम की चादर ओढ़े पड़े हुए हैं,
गहरी खाई वाले बूढ़े सहमे खड़े हुए हैं।

घायल सीढ़ीदार खेत हैं तन-मन पड़ी दरारें
छड़ी पेड़ की छिन गई पर्वत औंधे गिरे पड़े हुए हैं।

बाघिन-सी सर्दी आये
मृत्यु जल में समाये

ऐसा तो देखा पहली बार रे

कम्बल-आटा पैसा आया आश्वासन भी आये,
मन-मकान के अंदर बर्फीले कोड़े बरसाये।

कुछ हो आये दूर गांव तक, कुछ ने नापी सड़के,
आया क्या भूकम्प यहां पर चले कैमरे तन के।

कम्बल तो कम बंटवाये।
ज्यादा फोटो खिंचवाये

ऐसा तो देखा पहली बार रे।

बाजीगर की नजर पड़ी है नए, तमाशों पर,
राजनीति की रोटी सेंकी कुछ ने लाशों पर।

कुछ ने अपनी लाशें-ढूंढी कुछ ने ढूंढे गहने,
कुछ ने अपने वोट तलाशे बिखरी लाशों पर।

हमने पैकेट गिरवाये,
कोई खाये न खाये।

ऐसा तो देखा पहली बार रे।

सिंदूर पुंछी मांगों सी सूनी पगडंडी गांवों की,
गुमसुम आंखों वाली सूनी पगडंडी गांवों की।

पैंतालिस पलों में टूटी-सांसों की पायलिया,
सदियों के माथे पर कविता है ताजे घावों की।

खबरों की छत लहराये,
फिर भी वो बच न पाये।

ऐसा तो देखा पहली बार रे।

अंधियारे के बीच बो दिये, जाने क्या होगा,
अंधियारे के पेड़ उगेंगे, जाने क्या होगा।

इस पहाड़ से उस पहाड़ तक काले जंगल होंगे,
हरी नदी का रंग लाल है जाने क्या होगा।

सपने रंगीन दिखाये,
पीले चेहरे मुरझायें

ऐसा तो देखा पहली बार रे।

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