चारों ओर घोर बाढ़ आई है

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पृथ्वी गल गई है
पेड़ों की पकड़ ढीली हो गई है
आज ककरिहवा आम सो गया
सुगौवा को देखे तो
शाखा का सहारा मिला गिरकर भी बच गया
पानी ही पानी है
खेतों की मेड़ों पर दूब लहराती है
मेढ़क टरटों-टरटों करते हैं
उनका स्वरयंत्र फूल आया है
बगले आ बैठे हैं जहाँ-तहाँ
मछलियाँ चढ़ी हैं खूब

बौछारें खा-खाकर
दीवारें सील गई
इनमें अब रहते भय लगता है
दक्खिन के टोले में
रामनाथ का मकान
बैठ गया
यह तो कहो पसु-परानी बच गए
अब कल क्या खाएँगे
सुनते हैं, उत्तर की ओर, रामपुर में
पानी पैठ गया है
लोग ऊँची जगहों में जा-जाकर ठहरे हैं
कुछ पेड़ों पर चढ़े
इधर-उधर देखते हैं
वर्षा का तार अभी नहीं थमा
यह कैसा दुर्दिन है।

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