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चौपड़ों की ‘छावनी’

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नीलकण्ठेश्वर महादेव मंदिर का यह चौपड़ा, जलसंचय परम्परा की यह अद्भुत कहानी इस टीस के साथ सुना रहा है कि गाँव में मेहनत से बचने व जल संरक्षण परम्परा की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं देने के चलते करीब 300 ट्यूबवेल जमीन से अंधाधुंध पानी का दोहन कर रहे हैं। जबकि किसी जमाने में यह ‘बहादुर चौपड़ा’, अकेले ही इन खेतों को रबी मौसम में भी सिंचित कर देता था......!

“होलकर स्टेट में नियम था कि किसी भी गाँव को बसाने के पहले तालाब बनाया जाए। तालाब बनाने के बाद ही वहाँ गाँव स्थापित करने की अनुमति दी जाती थी। ....और ऐसा हुआ भी।”
“आज भी 20 एकड़ क्षेत्र में सिंचाई होती है। कुछ लोग इस पद्धति से रबी की फसल ले रहे हैं। सिंचाई की यह पद्धति अभी भी दो स्तरीय है। जरूरत पड़ने पर जल निकासी मार्गों के लेबल से पानी नीचे रहने पर चड़स के सहारे सिंचाई की जाती है।”

मध्य  प्रदेश में जल संरक्षण की परम्परा

(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।)

1

जहाज महल सार्थक

2

बूँदों का भूमिगत ‘ताजमहल’

3

पानी की जिंदा किंवदंती

4

महल में नदी

5

पाट का परचम

6

चौपड़ों की छावनी

7

माता टेकरी का प्रसाद

8

मोरी वाले तालाब

9

कुण्डियों का गढ़

10

पानी के छिपे खजाने

11

पानी के बड़ले

12

9 नदियाँ, 99 नाले और पाल 56

13

किले के डोयले

14

रामभजलो और कृत्रिम नदी

15

बूँदों की बौद्ध परम्परा

16

डग-डग डबरी

17

नालों की मनुहार

18

बावड़ियों का शहर

18

जल सुरंगों की नगरी

20

पानी की हवेलियाँ

21

बाँध, बँधिया और चूड़ी

22

बूँदों का अद्भुत आतिथ्य

23

मोघा से झरता जीवन

24

छह हजार जल खजाने

25

बावन किले, बावन बावड़ियाँ

26

गट्टा, ओटा और ‘डॉक्टर साहब’

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