दुर्योधन का दरबार

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महाभारत के समय दुर्योधन का दरबार राजधानी में ही था। सीमित था एक जगह। लेकिन आज यह दरबार भारत में गाँव-गाँव पहुँच गया है। महा विशेषण भारत से हट कर मानो दरबार के साथ लग गया है- महादरबार। क्या होता था उस दरबार में? वहाँ बड़े लोग जूआ खेलते थे और वहाँ होता था द्रोपदी का चीरहरण। श्रेष्ठीजन वहाँ बैठकर यह सब तमाशा देखते थे। आज के नए-नए लोकतंत्रों में, शासन में भी दुष्शासन उपस्थित है हर जगह और इसलिये गाँव-गाँव में दुर्योधन का दरबार सजा बैठा है। उसे सुशासन में बदलना हो तो क्या करना पड़ेगा- इसे बता रहे हैं -आचार्य राममूर्ति

पुराने जमाने में एक ही रहस्य था- भगवान। उसकी तलाश ऋषि मुनि करते थे। और बहुत कुछ तलाश कर ली थी लोगों ने। इतने बड़े-बड़े ग्रंथ रच दिए। लेकिन आज दो रहस्य और हैं। कितना बड़ा रहस्य है यह बाजार। आज एक रुपया लेकर जाइए तो एक किलो चावल मिलेगा। कल जाइए तो एक सौ ग्राम कम मिलेगा। पूछिए, उस व्यापारी से, क्या हुआ?

सर्वोदय जगत के अनन्य विचारक आचार्य राममूर्ति ने जमीन में, समाज में भी उत्तम विचार बोने का काम आजीवन किया। अंतिम दिनों तक वे बिहार में खादीग्राम (मुंगेर) को केन्द्र बनाकर महिला शांति सेना के गठन और मार्गदर्शन में सक्रिय बने रहे।
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