एक निर्जन नदी के किनारे

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मैं जानता हूं
तुम कुछ नहीं सोचती मेरे बारे में
तुम्हारी एक अलग दुनिया है
जादुई रंगों और
करिश्माई बांसुरियों की

एक सुनसान द्वीप पर अकेले तुम
आवाज देती हो
जल-पक्षियों को
एक निर्जन नदी के किनारे में
कभी अंजलि भरता हूं
बहते पानी से
कभी बालू पर लिखता हूं वे अक्षर
जिनसे तुम्हारा नाम बनता है

जमा होती गई हैं मुझमें
तुम्हारी कई-कई आकृतियां
भंगिमाएं चेहरे की
रोशनी से छलछलाती तुम्हारी आंखे

मैं जुटाता हूं तुम्हारे लिए
रंगों और फूलों की उपमा
ढेर सारे सपनों के बीच निर्द्वंद्व
बेफिक्र खड़ी तुम
हंसती हो सब कुछ पर।

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