कोसी पर बराहक्षेत्र बांध के प्रस्ताव पर पहल

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जहां एक ओर कोसी समस्या के तकनीकी समाधान की कोशिशें चल रही थीं वहीं 1940 के दशक में राज्य के वित्त मंत्री अनुग्रह नारायण सिंह ने कोसी पीड़ितों को किसी सुरक्षित क्षेत्र में ले जाकर पुनर्वासित करने का प्रस्ताव किया। उनका मानना था कि कोसी की लगातार यातना भुगतने से बेहतर है कि लोग कहीं दूसरी जगह चले जायें। यह जगह या तो हजारीबाग जिले में रामगढ़ की पहाड़ियों में थी या फिर ऐसी जगहों में जहां से कोसी जा चुकी है।

इस प्रस्ताव में कोसी पर एक बड़े बांध की बात कही गई थी जो कि बराह क्षेत्र के पास बनना था। 1945 में बाढ़ के समय भारत के तत्कालीन वाइसराय लार्ड वैवेल ने कोसी क्षेत्र की बाढ़ का सर्वेक्षण किया जो कि दरभंगा महाराजा सर कामेश्वर सिंह तथा बिहार के तत्कालीन गवर्नर रदरपफोर्ड की कोशिशों से संभव हो सका। इस यात्रा के बाद 1946 में केन्द्रीय जल, सिंचाई और नौ-परिवहन आयोग के अध्यक्ष राय बहादुर अयोध्या नाथ खोसला को यह जिम्मा दिया गया कि वे इस योजना पर एक प्राथमिक रपट दें। उनके सहयोग के लिए भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग के दो अधिकारी, जे.बी. ओडेन और के.के. दत्त भी साथ थे। इस योजना का प्रारूप तैयार करने में संयुक्त राज्य अमेरिका के बांध विशेषज्ञ डॉ. जे. एल. सैवेज, वाल्टर यंग तथा भूवैज्ञानिक डॉ. एफ.एच. निकेल आदि का सहयोग भी मिला था जो कि अपने विषय की तत्कालीन हस्तियां समझी जाती थीं और अमेरिका के बोल्डर बांध, ग्रांड कुली तथा शास्ता जैसे बड़े बांधों के निर्माण का श्रेय इन लोगों को प्राप्त था।

जहां एक ओर कोसी समस्या के तकनीकी समाधान की कोशिशें चल रही थीं वहीं 1940 के दशक में राज्य के वित्त मंत्री अनुग्रह नारायण सिंह ने कोसी पीड़ितों को किसी सुरक्षित क्षेत्र में ले जाकर पुनर्वासित करने का प्रस्ताव किया। उनका मानना था कि कोसी की लगातार यातना भुगतने से बेहतर है कि लोग कहीं दूसरी जगह चले जायें। यह जगह या तो हजारीबाग जिले में रामगढ़ की पहाड़ियों में थी या फिर ऐसी जगहों में जहां से कोसी जा चुकी है। इस प्रस्ताव का जबर्दस्त विरोध हुआ क्योंकि मैदानों में रहने वाले लोग पहाड़ी जीवन शैली का नाम सुन कर ही घबराते थे, वहां जाने की बात तो बहुत दूर थी। बिहार सरकार ने प्रयोग के तौर पर कोसी मुक्त क्षेत्र गनपतगंज (मधेपुरा) में कुछ जमीन अधिगृहित करके लोगों को बसाने का काम शुरू किया था मगर योजना सफल नहीं हो पाई।

इस संबंध में अनुग्रह नारायण सिंह का बिहार विधान सभा में 30 मई, 1946 को दिया गया बयान महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा था कि, ‘‘ ... इस तरह के सुझाव आये हैं कि कोसी क्षेत्र में रह रहे लोगों को जबरन वहां से निकाल कर किसी दूसरी जगह बसा दिया जाये। गैर-सरकारी लोगों की मदद से इस तरह की एक कोशिश की भी गई जो कि कामयाब नहीं हुई। मैं ...नहीं जानता कि यह योजना सफल हो पायेगी या नहीं मगर इसकी संभावना पर निश्चित रूप से विचार किया जायेगा।’’ ऐसा लगता है कि बराहक्षेत्र में कोसी के बांध निर्माण के आने वाले प्रस्तावों के कारण यह विचार छोड़ दिया गया।

जहां कोसी को नियंत्रित करने के लिए सरकारी स्तर पर चर्चा गर्म थी वहीं आम लोगों की ओर से इस दिशा में माहौल बनाने की कोशिशें जारी थीं। दरभंगा जिला परिषद् के भूतपूर्व उपाध्यक्ष खुशी लाल कामत (86) ने एक बड़ी ही दिलचस्प घटना का जिक्र किया है। देखें बॉक्स, ‘वह किस्सा कहानी नहीं सुनना चाहते, उन्हें तथ्य और आंकड़े चाहिये।’

सरकार पर दबाव डालने की कड़ी में राजेन्द्र मिश्र के नेतृत्व में निर्मली (तत्कालीन जिला भागलपुर और वर्तमान सुपौल) में कोसी पीड़ितों का एक सम्मेलन 16-17 नवम्बर 1946 को हुआ जिसमें नारा दिया गया कि ‘कोसी की धारा बदल दो’, ‘कोसी को बांध दो’, ‘घर-घर में बिजली दो’। कोसी पीड़ितों का मानना था कि, “...एटम के जमाने में जब समुद्रों को सुखा कर उर्वर भूमि में बदला जा रहा है, हमारे कोसी के ताण्डव को बन्द करने का कुछ भी उपाय नहीं होता, खासकर जब हमारी अपनी सरकार भी बन चुकी है। ...लेकिन, बिना चीखे मां बच्चे की नहीं सुनती, जब तक हम कोसी के पीड़ित एक जबर्दस्त आंदोलन खड़ा नहीं करते, अपनी चीख, तड़प और चिग्घाड़ से आसमान को थर्रा नहीं देते, हमारे अच्छे दिन कभी वापस नहीं आएंगे।’

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