कुंभनहान, भाग -2

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सतुआ और पिसान बाँधकर कुंभ नहाने
नर-नारी घर पुर तजकर प्रयाग आए थे;
संगम की धारा में अपने पाप बहाने
की इच्छा रखने वालों का हल लाए थे।
तितली के भी पेड़ तले अशंक छाए थे।
गीत नारियाँ गंगा मैया के गाती थीं,
और नरों ने योग यज्ञ के फल पाए थे
कथा-कहानी कहते-सुनते थे। आती थीं
पछुआ की लहरें, पूरब को बढ़ जाती थीं,
कोई इन पर पल को ध्यान नहीं देता था;
अंतर्हित इच्छाएँ अभिव्यक्ति पाती थीं
काय-क्लेश में देखा जीवन रस लेता था।

देखा कोटि संख्य जनता सामने पड़ी है,
गंगा-यमुना की धारा के साथ अड़ी है।

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