नमामि गंगे

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शिव अलकों की पावन शोभा
अमृत धारा गंगे
मोक्षदायिनी पतितपाविनी
त्रिपथगामिनि गंगे

शैलसुता तुम त्रिविध ताप से
करती थीं उद्धार
सदा निर्मला बहती थी
अब हो विरल धार गंगे

जीवनदायिनी तुमसे बनता था
स्वर्णिम प्रभात
भारत भू की अटल आस्था
अब बदरंग हुई गंगे

मनुज की अमिट लालसा ने
लूटा गंगे तुमको
परेशान सी रहती है अब
यह सुर-सरिता गंगे

नामशेष होती जाती हो
विद्यापति की कविता
कूल किनारे ढूँढ रहे तेरा
पावन आँचल माँ गंगे

लहरों की मंगल ध्वनि ने
गौरवगान गुंजाया था
आज व्यथा के गहन भार से
सिसक रही हो गंगे

याद है माँ तुमने किस किसको
विजयमाल पहनाया था
थोथे नारों से गूँज रहे
उजड़े तट हे नामामि गंगे

भागीरथ तप का प्रताप
स्वयं एक इतिहास हो गंगे
सहमी सहमी लहरों में बहती
हो मलिन आज गंगे
 

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