पाप और परंपरा

Published on
1 min read

ऐसा है एक नदी बह रही है
कोलतार की
चिता और गर्भ के बीच के धुँधलके में
और मेरे सर पर गट्ठर है कपास का।
‘बचाओ’ चिल्लाने से पहले
मैंने ऊँगलियाँ भर देखी थीं
डूबते पिता की
घाटी के पास उस चीख का
कोई लेखा नहीं!
ऐसा है जिस जगह मेरे पैर हैं
वहाँ दीमक घर हैं ताजे बने हुए
लगातार हवा घूँसे मार रही है
मेरी पीठ पर।
सँभलने के लिए जब मैं
‘शाखा’ पकड़ता हूँ
हाथ में चिमगादड़ आ जाता है
ऐसा है मेरी पसलियों के ठीक नीचे
खंदक है
और मेरी देह गर्म रहती है
ऊपर लटकी हुई स्लेट पर
पढ़ा जाता कोई शब्द नहीं
और नदी है कि बही चली जा रही है
कोलतार की।

संबंधित कहानियां

No stories found.
India Water Portal - Hindi
hindi.indiawaterportal.org