पर्वतीय क्षेत्रों में जल स्रोत अभयारण्य का विकास

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प्रस्तावना

1. जल के बिना जीवन असम्भव है। जल पीने, घरेलू कार्य तथा सिंचाई इत्यादि हेतु आवश्यक है। इसका उपयोग ऊर्जा उत्पादन के लिये भी होता है। जल की कमी एवं दुरुपयोग से खाद्यान्न सुरक्षा, मानव स्वास्थ्य एवं विकास कार्यों पर बुरा असर पड़ता है।

2. भारतवर्ष की करीब एक तिहाई जनसंख्या को पर्याप्त मात्रा में शुद्ध जल उपलब्ध नहीं होता। अनुमान है कि आगामी पचास वर्षों में दुनिया की दो-तिहाई आबादी को जल समस्या से जूझना होगा एवं ऐसा भी कहा जाता है कि अगला विश्व युद्ध सम्भवतः जल के कारण होगा।

3. हिमालय विश्व का प्रमुख जल भण्डार है। प्रतिवर्ष 500 घन कि.मी. जल यहाँ से उत्पन्न होता है। तथापि यहाँ के निवासी वर्षा ऋतु के अलावा वर्ष भर जल का अभाव, दूषित जल का उपयोग एवं जल हेतु झगड़ने को मजबूर है। अनुमान है कि हिमालय क्षेत्र की वर्तमान घरेलू जल खपत (4500 लाख घन मीटर प्रति वर्ष) 3 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से बढ़ती हुई जनसंख्या हेतु आगामी समय में एक प्रमुख समस्या बन सकती है।

4. पर्वतीय क्षेत्र में नौले (भूमिगत जल एकत्र करने हेतु पत्थर की सीढ़ीनुमा दीवारों वाले 1-2 मीटर गहरे चौकोर गड्ढे) एवं धारे (चट्टान से धारा के रूप में जल प्रवाह) अनादिकाल से पेयजल के स्रोत रहे हैं। दुर्भाग्यवश हाल के दशकों में लगभग 50 प्रतिशत स्रोत या तो सूख गये हैं या उनका जल प्रवाह कम हो गया है।

5. जनसंख्या बहुल क्षेत्रों में गर्मियों में जल एकत्र करने हेतु लम्बी कतारें एवं कुछ इलाकों में महिलाओं एवं बच्चों द्वारा 5 कि.मी. से भी अधिक दूर स्रोतों से सिर पर रखकर जल लाना एक सामान्य बात है। हिमालय के कुछ पहाड़ी कस्बों में गर्मियों में प्रति घर लगभग 5-25 रु. मजदूरी में लगभग 20-25 लीटर पेयजल दूर स्रोतों से मँगाया जाता है।

6. जल समस्या से निबटने हेतु लोगों ने नौलों में ताला लगाकर रात भर के एकत्र जल का ग्राम समुदाय के मध्य बटवारा, छत के वर्षा जल को एकत्र करना, घरेलू अवशिष्ट जल को किचन गार्डन में उपयोग, इत्यादि उपाय किये हैं।

पेयजल समस्या के कारण

1. पर्वतीय क्षेत्र में पेयजल समस्या मुख्यतः जल स्रोतों के सूखने, पहाड़ी कस्बों की बढ़ती जनसंख्या को जल आपूर्ति, प्रति व्यक्ति जल उपयोग में वृद्धि, जल प्रदूषण, इत्यादि के कारणों से उत्पन्न हुई है। अप्रत्यक्ष रूप से जल स्रोतों के सूखने का कारण वर्षा के जल का भूमि में अवशोषित हुए बिना नदी-नालों से बाढ़ के रूप में बह जाना है। इस कारण भूमिगत जल स्रोतों के स्तर में वृद्धि नहीं हो पाती है, एवं निरन्तर प्रवाह के बाद वह सूख जाते हैं।

2. विगत वर्षों में वनों पर चारा, लकड़ी एवं बिछावन हेतु बढ़ता दबाव, पशुओं के खुरों से दबकर भूमि का कठोर होना, वनों की आग, भू-क्षरण, सड़क एवं भवन निर्माण, खनन आदि से हुई वृद्धि से भू-जल चक्र असन्तुलित हुआ है एवं क्षणभंगुर सूक्ष्म जलागमों की जलग्रहण क्षमता में कमी आई है।

3. पेयजल योजनाओं को जन आक्रोश एवं तोड-फोड़ द्वारा भी क्षति पहुँचती है। पेयजल विभाग जल आपूर्ति पर 7.40 रु. प्रति 1000 लीटर खर्च करके मात्र 2.70 रु. कर वसूल करता है। जो कि पेयजल योजनाओं के रख-रखाव हेतु अपर्याप्त है।

4. जनता की भागीदारी के अभाव एवं बदलते सामाजिक परिवेश में हमारी जल संरक्षण एवं प्रबंध की क्षमता एवं परम्परागत ज्ञान का भी ह्रास हो रहा है। अतः उपरोक्त परिस्थितियों के मध्य नजर जल स्रोतों का संरक्षण एवं विकास आवश्यक है।

जल स्रोत अभयारण्य का विकास

पेयजल वृद्धि हेतु इस तकनीकी के अन्तर्गत वर्षा जल का अभियान्त्रिक एवं वानस्पतिक विधि से स्रोत के जल समेट क्षेत्र में अवशोषण किया जाता है। भूमि के ऊपर वनस्पति आवरण एवं कार्बनिक पदार्थों से युक्त मृदा एक स्पंज की तरह वर्षा के जल को अवशोषित कर लेती है। अतः जल समस्या के समाधान का मुख्य कार्य बिन्दु यह है कि हम सूक्ष्म जलागमों एवं स्रोतों के जल ग्रहण क्षेत्रों में वर्षा के जल का भूमि में अवशोषण होने में वृद्धि करें, जिससे कि तहलटी के भू-जल स्रोतों में वृद्धि हो सके।

1. अभियांत्रिक उपाय

- जल स्रोतों के जल समेट क्षेत्र की पहचान हेतु भौगोलिक एवं जल धारण करने योग्य चट्टानी संरचनाओं का भू-गर्भीय सर्वेक्षण। सामान्यतः जल स्रोत के ऊपर पहाड़ों की चोटियों से घिरी भूमि जल समेट क्षेत्र बनाती है।

- जल समेट क्षेत्र की पत्थर/काँटेदार तार/ कटीली झाड़ियों अथवा समीप के ग्राम समुदाय के सहयोग से सुरक्षा। ताकि जल समेट क्षेत्र में पशुओं द्वारा चराई एवं मनुष्य द्वारा छेड़छाड़ न हो।

- जल समेट क्षेत्र में कन्टूर रेखाओं पर 30-60 से.मी. गहरी व 30 से.मी. चौड़ी नालियों की खुदाई एवं भूगर्भीय दृष्टि से जल अवशोषण हेतु उपयुक्त स्थानों (परत, जोड़, दरार, भ्रंश) पर गड्ढों की खुदाई। सामान्यतः बलुई दोमट मिट्टी में जल अवशोषण तीव्र गति से होता है।

- जल समेट क्षेत्र में छोटी-छोटी नालियों के मुहानों को पत्थर व मिट्टी से बन्द करना एवं उपयुक्त जगह पर बरसाती जलधाराओं से बहते जल को एकत्र करने हेतु मिट्टी व पत्थर के छोटे तालाब बनाना।

- सीढीदार खेतों को ढाल के विपरीत दिशा में ढालू बनाना व उनकी मेड़ का लगभग 15 से.मी. ऊँची करना एवं जमीन को समतल करना।

2. वानस्पतिक उपाय

- जल समेट क्षेत्र के ऊपरी ढालदार हिस्से में कमत गहरी जड़ों वाले स्थानीय वृक्ष तथा तलहटी क्षेत्र में झाड़ियों एवं घास का रोपण करना। स्थान विशेष की जलवायु के अनुसार रोपित की जाने वाली वनस्पतियाँ भिन्न हो सकती है।

- बिना वनस्पति आवरण वाले स्थानों को अनुपयोगी खरपतवार या चीड़ की पत्तियों से ढकना ताकि मृदा जल का वाष्पीकरण कम हो एवं वर्षा जल को भूमि में अवशोषण हेतु उपयुक्त अवसर मिले।

3. सामाजिक उपाय

- ग्राम समुदाय की सहमति से जल समेट क्षेत्र में आगजनी, पशु चराई, लकड़ी व चारे हेतु वनस्पतियों के दोहन एवं खनन इत्यादि वर्जित करना। यह उपाय सामाजिक घेरबाड़ के रूप में कार्य करेगा।

- जल को फोरों सीमेंट व अन्य कारगर तथा सस्ती टंकियों में संचित करना, नलों के जोड़ों एवं टोंटी से रिसने वाले जल की बर्बादी रोकना, नलों को जमीन के अन्दर गहरे गाढ़ना, जल वितरण को समयबद्ध करना एवं पेयजल का सिंचाई एवं अन्य कार्यों हेतु उपयोग पर रोक लगाना।

- पेयजल उपयोग अधिकार सम्बन्धी कानून एवं विश्व स्वास्थ्य संगठन के जल उपयोग मानकों का आम जनता को ज्ञान करना।

पर्वतीय क्षेत्रों के जलागमों में जल स्रोतों की प्रचुरता है अतः सूक्ष्म जलागम स्तर पर जल स्रोत अभ्यारण्य विकास कार्य किये जाने जरूरी है, ताकि स्रोतों से गृष्म ऋतु में जल वृद्धि हो सके। पेयजल उपलब्धता हेतु बहुआयामी सोच एवं क्रियान्वयन की जरूरत है। जल संसाधन प्रबन्ध के साथ-साथ जल का तर्कसंगत उपयोग एवं लाभान्वित जनता की सहभागिता द्वारा ही जल स्रोतों का दूरगामी संरक्षण सुनिश्चित होगा। जल स्रोत अभयारण्य विकास हेतु स्रोतों के जल समेट क्षेत्र में विवादास्पद भूमि स्वामित्व का हल करके समुचित भूमि उपयोग लागू करना आवश्यक है। जल संसाधन प्रबन्ध में व्याप्त अंधविश्वास, अनुमान एवं भ्रम का जो बोलबाला सार्वजनिक सोच में है उसमें सुधार आवश्यक है। वास्तव में इस बेहद जटिल इकोतंत्र की कार्यविधि से निबटन हेतु जन सामान्य का सहयोग अनिवार्य है।

एक हे. पर्वतीय क्षेत्र में जल स्रोत अभयारण्य विकास की लागत (गढ़वाल में एक प्रयोग पर आधारित)

कार्य विवरण

अनुमानित लागत (रु

.)

कन्टूर की दिशा में नालियों (250 की खुदाई)

 5000

मिट्टी/पत्थर के तालाब/गली बन्द करना

2500

तार बाड़

25000

तीव्र ढालों में गड्ढे खुदाई (250)

400

पौधों की कीमत

1250

गोबर की खाद

100

वृक्षारोपण

300

सिंचाई/खर-पतवार उखाड़ना

500

कुल लागत

35050

यदि तार बाड़ की जगह सामाजिक सुरक्षा उपाय किये जायें तो कुल लागत मात्र रु. 10050/- आयेगी।

विस्तृत जानकारी हेतु कृपया संस्थान की गढ़वाल इकाई, श्रीनगर (गढ़वाल) में कार्यरत डा. जी.सी.एस. नेगी एवं वरूण जोशी तथा संस्थान मुख्यालय, कोसी-कटारमल, अल्मोड़ा में ई. किरीट कुमार से सम्पर्क करें।

अनुश्रवण, मूल्यांकन एवं प्रभाव आँकलन

जल स्रोत के जल समेट क्षेत्र के संरक्षण, व स्रोत रख-रखाव हेतु किये गये विभिन्न कार्यों के साथ यह अति आवश्यक है कि इन कार्यों का समय-समय पर अनुश्रवण, मूल्यांकन किया जाय ताकि जल समेट क्षेत्र में किये गये कार्यों से जल स्रोत के जलप्रवाह में आ रहे गुणात्मक परिवर्तन का आंकलन किया जा सके। साथ ही कार्यस्थल की माँग के अनुरूप इस क्षेत्र में नई तकनीकों का समावेश भी किया जा सके। जल स्रोत के जल समेट क्षेत्र में किये गये कार्यों का अनुश्रवण, मूल्यांकन एवं प्रभाव आंकलन गाँव की सभागिता से किया जाना अति आवश्यक है ताकि ग्रामवासी अपने जल स्रोत के जल प्रवाह में हो रहे गुणात्मक वृद्धि का आँकलन स्वयं कर सकें।

जल स्रोत के समेट क्षेत्र में किये गये कार्यों का गुणात्मक एवं मात्रात्मक प्रभाव धीरे-धीरे दीर्घ अवधि में दिखाई देता है। अतः जल समेट गाँव में कार्य करने से पूर्व गाँव की सामाजिक, आर्थिक एवं प्राकृतिक संसाधनों की स्थिति का विस्तृत अध्ययन करते हैं इसके साथ-साथ अनुश्रवण, मूल्यांकन एवं प्रभाव आँकलन के लिए सूचकों का निर्धारण करते हैं। सूचक प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार के हो सकते हैं। जल समेट क्षेत्र में किये गये उपचार कार्यों का अनुश्रवण प्रत्यक्ष सूचकों के आधार पर किया जाता है। उपचार कार्य पूर्ण होने के उपरान्त प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष सूचकों के आधार पर मूल्यांकन एवं प्रभाव आँकलन किया जाता है। किसी एक गाँव में विकसित किया गया जल स्रोत अभयारण्य माॅडल तभी सफल माना जाएगा जबकि उक्त कार्य से प्रेरणा लेकर निकटवर्ती गाँव अपने प्रयासों (बिना बाहरी आर्थिक सहायता के) द्वारा अपने गाँव के जल स्रोतों के संरक्षण एवं संवर्धन का कार्य प्रारम्भ करेंगे।

अनुश्रवण, मूल्यांकन एवं प्रभाव आँकलन

अ) सामान्य जानकारी

गाँव का नाम -

ब्लॉक -

तोक का नाम -

जिला -

परिवारों की संख्या -

जल स्रोत समेट का क्षे.फ. -

जल स्रोत का प्रकार -

गाँव से स्रोत की दूरी -

ब) जल समेट गाँव का अध्ययन

- जल समेट क्षेत्र के अन्तर्गत भूमि उपयोग की स्थिति।

- अधिवास, सड़क, सामाजिक, धार्मिक व सरकारी संस्थाओं की स्थिति।

- निजी भूमि के अन्तर्गत सिंचित, असिंचित कृषि भूमि, परती भूमि व फलोद्यान की स्थिति।

- सामूहिक भूमि के अन्तर्गत आरक्षित वन, वन पंचायत, सिविल सोयम वन, चारागाह, निजी वन की स्थिति व प्रबन्धन।

- जल समेट क्षेत्र में भू-स्खलन/भू-क्षरण की स्थिति।

- मिट्टी की गहराई, मिट्टी में पानी की अवशोषण क्षमता।

- जल समेट क्षेत्र में वनस्पति सम्पदा की स्थिति, वृक्ष, झाड़ी घास, प्रजातियों का घनत्व।

- जल समेट क्षेत्र में अवैध कटान, पशु चरान, घास लकड़ी-चारा, खनन आदि का दबाव।

- भूमि में कार्बनिक पदार्थों की स्थिति।

- ठोस कचरे व प्रदूषण की स्थिति

- जल स्रोत का प्रवाह व उपयोग की स्थिति।

- गाँव में जल उपलब्धता व खपत की स्थिति।

स) सूचकों का निर्धारण

- स्रोत से जल प्रवाह की दर लीटर/मिनट।

- जल स्रोत के पानी की गुणवत्ता व प्रदूषण का स्तर।

- प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता।

- पेयजल जनित रोगों की संख्या व प्रकार।

- पेयजल इकट्ठा करने में लगा समय।

- गाँव में शौचालयों की संख्या।

- गाँव में कम्पोस्ट गड्ढों की संख्या।

- गाँव में सोख्ता गड्ढों की संख्या।

- जल समेट क्षेत्र में वनस्पति प्रजातियों का घनत्व।

- जल समेट क्षेत्र में नुकसान/दबाव की स्थिति।

- जल समेट क्षेत्र की भूमि में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा।

- जल समेट क्षेत्र में कूड़ा-करकट, मल त्याग की स्थिति।

- जल स्रोत की सफाई, प्रबन्धन व रख-रखाव।

- ग्रामवासियों में पेयजल सम्बन्धी जागरूकता का स्तर।

द) जल समेट क्षेत्र में किये गये उपचार

उपचार

  

संख्या/प्रकार

विवरण

सामाजिक

 

 

अभियान्त्रिक

 

 

वानस्पतिक

 

 

स्रोत रख-रखाव

 

 

ग्रामवासियों का सहयोग

उपचार

  

अंशदान

श्रमदान

सामाजिक

 

 

अभियान्त्रिक

 

 

वानस्पतिक

 

 

स्रोत रख-रखाव

 

 

जल समेट क्षेत्र के उपचार में आई समस्यायें

- जल समेट क्षेत्र का अध्ययन व नियोजन।

- तकनीकी ज्ञान।

- ग्रामवासियों का सहयोग।

य) प्रभाव आँकलन

- जल स्रोत के प्रवाह दर में परविर्तन - लीटर/मिनट

उपचार के पूर्व-

उपचार के बाद (5 वर्षों तक वर्ष में 2 बार)

- जल समेट क्षेत्र से वर्षा के जल का सतही बहाव-लीटर/वर्ष

उपचार के पूर्व-

उपचार के बाद (5 वर्ष तक)

- जल समेट क्षेत्र से वर्षा के जल का सतही बहाव-लीटर/वर्ष

उपचार के पूर्व-

उपचार के बाद-(5 वर्ष तक)

- जल समेट क्षेत्र से भू-क्षरण की दर में परिवर्तन -

उपचार के पूर्व -

उपचार के बाद -

- पानी की गुणवत्ता में अन्तर -

उपचार के पूर्व -

उपचार के बाद -

- वानस्पतिक छत्रक की स्थिति - प्रति हे. पेड़, झाड़ी, घास की प्रजातियों का घनत्व

उपचार के पूर्व -

उपचार के बाद -

- भूमि में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा - कि.ग्रा. / हेक्टेयर

जल समिति की क्रियाशीलता

       

कार्य

विवरण

मासिक बैठक

 

 

 

कोष निर्माण

 

 

 

स्रोत रख-रखाव

 

 

 

जल समेट क्षेत्र में दबाव व नुकसान की स्थिति

       

दबाव का प्रकार

स्थिति

पशु चराई

 

 

 

आग

 

 

 

लकड़ी, पतेल, चारा पत्ती संग्रहँ

 

 

 

मल मूत्र व कूड़ा करकट

 

 

 

- गाँव में प्रति व्यक्ति/ली. पानी की उपलब्धता

उपचार से पूर्व -

उपचार के बाद -

- पानी जनित होने वाले रोगों की स्थिति -

उपचार से पूर्व -

उपचार के बाद -

- सागवाड़े के सिंचित क्षेत्रफल में वृद्धि नाली -

उपचार से पूर्व -

उपचार के बाद -

र) संस्था द्वारा अपनायी गयी विस्तार नीति

ल) ग्रामवासियों द्वारा अन्य स्रोतों के संरक्षण का स्वप्रयास

- क्या पेयजल के अतिरिक्त जल का उपयोग अन्य कार्यों में होने लगा है?

- क्या गाँव में जल संरक्षण, भण्डारण एवं उपयोग की संस्कृति विकसित हुई है?

- क्या ग्रामवासियों ने अपने प्रयासों द्वारा अन्य जल स्रोतों के संरक्षण का प्रयास प्रारम्भ किया है?

सन्दर्भ सूची

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9. शाह, एस. एल. 1996 आइडेंटीफिकेशन एण्ड मैनेजमेंट आॅफ स्प्रिंग सेंस्चुरीज इन खुलगाड माइक्रोवाटर-कनसेप्ट मेथोडोलॉजी एण्ड लर्निंग लैंसन्स, पेपर प्रजेन्डेड इन सेमिनार, शेरपा, लखनऊ।

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परिशिष्ट

क. जल अभयारण्य विकास हेतु संदर्भ संस्थायें

कन्हाई लाल

चिराग

शीतला, पोस्ट मुक्तेश्वर, जिला नैनीताल

जगत सिंह मेहता

चिया

ओक घर, ईस्ट पोखरखाली, जिला अल्मोड़ा

ए.के. मिश्रा

कसार ट्रस्ट

पोस्ट उडेरा, जिला बागेश्वर

कल्याण पाॅल

ग्रासरूट

पोस्ट बैग-3, रानीखेत, जिला अल्मोड़ा

सच्चिदानंद भारती

दूधातोली लोक विकास संस्थान

उफरैखाल, जिला पौड़ी गढ़वाल

डा. जी.सी.एस नेगी/डा. वरूण जोशीवैज्ञानिक

जी.वी.पंत इन्सिट्यूट आॅफ इन्वार्यमेंट एण्ड डेवलपमेंट

कोसी कटारमल, अल्मोड़ा

निदेशक

राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान

जल विज्ञान भवन, रुड़की

यशपाल विष्ट

परती भूमि विकास समिति

एच आई जी 2/5 इंदिरापुरम एम डी डी ए कालानीजनरल महादेव सिंह मार्ग, देहरादून-248171

डाॅ ललित पांडे

उत्तराखंड सेवा निधि

पर्यावरण शिक्षा संस्थान जाखन देवी, माल रोड, अल्मोड़ा

डा.रवि चोपड़ा

लोक विज्ञान संस्थान

252, बसन्त विहार, फेज-1, देहरादून

सिरिल आर. रैफल

श्री भुवनेश्वरी महिला आश्रम

अंजनी सैंण, टिहरी गढ़वाल

डा. अनिल पी. जोशी

हेस्को

ग्राम-घिसरपड़ी, मेहुवालादेहरादून

डा. शेखर पाठक

पहाड़

परिक्रमा तल्ला डांडा, नैनीताल

निदेशक

विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान

अल्मोड़ा

मुख्य परियोजना निदेशक

जलागम प्रबन्ध निदेशालय

इन्दिरा नगर, फाॅरेस्ट कालोनी, देहरादून

निदेशक

केन्द्रीय मृदा एवं जल संरक्षण

अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान, 218, कौलागढ़ रोड़ देहरादून

ख. जल स्रोत अभयारण्य विकास में परती भूमि विकास समिति की सहयोगी संस्थाओं की सूची

परती भूमि विकास समिति, नई दिल्ली के देहरादून कार्यालय द्वारा उत्तरांचल में स्वयंसेवी संस्थाओं की क्षमता वृद्धि के लिये एक कार्यक्रम चलाया जा रहा है। वर्ष 2001 में उत्तरांचल के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत 10 स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ 7 दिवसीय प्रशिक्षण चिराग संस्था के ढ़ोकाने प्रशिक्षण केन्द्र पर आयोजित किया गया। इस प्रशिक्षण कार्यशाला में प्रत्येक संस्था से आये दो प्रतिभागियों को निम्न तकनीकों पर प्रशिक्षित किया गया:

1. जल स्रोत अभयारण्य विकास

2. निजी भूमि में चारा उत्पादन

3. चारे का प्रतिरक्षण एवं समुचित उपयोग

प्रशिक्षण के उपरान्त प्रत्येक संस्था को इस पैकेज का अपने कार्यक्षेत्र में सफल प्रदर्शन करने हेतु 18,000 रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान की गई। प्रत्येक संस्था के साथ द्विवर्षीय अनुबंध किया गया तथा अनुबन्ध में तय किया गया है संस्था उक्त तकनीकों को अपने कार्यक्षेत्र में विकसित करने के उपरान्त इन तकनीकों के लाभ व प्रभाव का आँकलन करेगी तथा अनुभवों का आपस में आदान-प्रदान करेगी। प्रशिक्षण में भाग लेने वाली संस्थाओं की सूचि निम्न है:

Shri Mahanand Singh Bisht

Secretary

Jakheshwar Shikshan Sansthan

Malla Nagpur

Gopeshwar Distt. Chamoli-243401

Shri Vipin Raturi

Secretary

Mahila Nav Jagran Samiti

Block Road, Chamba

Distt. Tehri Garhwal 249125

Shri Dev Kumar Malasi

Secretary

Parvatiya Gramin Vikas Evam Sewa Samiti

Malasi Bhawan, Near Convent School,

Padampur Sukhron

Kotdwara Distt. Pauri Garhwal 246149

Sushri Pushpa Joshi

Secretary

Kasturba Mahila Utthan Mandal

C/O Lakshmi Ashram

Kausani Distt. Almora

Shri Puram Singh Dhauni

Secretary

General Rural Advancement Society

(GRAS)

Dak Bungalow Road,

Lohaghat Distt. Champawat-262524

Dr. Mohan Panwar

Secretary

Dalion Ka Dagadiya (Friends of Trees)

P.Box No. 44, Uniyal Bhawan, Amrakunj

Srinagar Distt. Pauri Garhwal-246174

Mr. Rajesh Thadani

Coordinator

CHIRAG

Village Sitla, PO. Mukteshwar

Distt. Nainital

Ms. Renu Thakur

Secretary

Association for Rural Planning & Action

(ARPAN)

Village Helpiya, P.O. Askote

Askote Distt. Pithoragarh

Ms. Kiran Purohit “Jaideep”

Secretary

Nanda Devi Mahila Lok Vikas Samiti

Mandir Marg

Gopeshwar Distt. Chamoli-246401

Shri B.M. Kandpal

Secretary

SIMAR

VPO Shantipuri No.1 Via Kichha,

Distt. Udham Singh Nagar

साभार:

गो.ब. पंत, हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान कोसी-कटरामल, अल्मोड़ा।

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