पुस्तक परिचय : ‘अमृत बन गया विष’
यह भूजल की कहानी है: अमृत का विष में परिवर्तित होने की कहानी। जिसमें हैंडपम्प से निकले हुए पानी को पीने की आम दिनचर्या भी एक जानलेवा बीमारी का स्रोत बन जाता है। यह एक ‘प्राकृतिक’ दुर्घटना नहीं है - जहाँ भूगर्भ में उपस्थित प्राकृतिक संखिया (आर्सेनिक) और फ्लोराइड पीने के पानी में अपने आप आ गया हो। यह कहानी है जान-बूझकर किए गए विषाक्तीकरण का। जिसे रूप दिया है सरकार की गलत नीतियों, ट्यूबवेल की बीमारी और कम्पनियों या बहुपक्षीय अभिकरणों ने। इनका मकसद था स्वच्छ पानी का सम्भरण, और इन्होंने इसके लिये जमीन के अन्दर दोहन करना शुरू किया। नतीजा: भूगर्भ का रसातल यानी जहर आम लोगों की जिन्दगी में आ समाया।
इन बीमारियों के कारण जो भी हों, यह निश्चित है कि वे भूगर्भ के पानी से जुड़े हुए हैं। संखिया-पीड़ित इलाकों में किए गए शोध से पता चलता है कि संखिया (आर्सेनिक) की सांद्रता जमीन में गहराई के साथ-साथ बढ़ता है - यह सांद्रता 100-125 फीट में सबसे अधिक हो जाता है। जैसे-जैसे गहराई 400 फीट तक जाती है, सांद्रता भी कम होता जाता है।
यह कहानी कई साल पहले शुरू होती है। 1960 और 1970 के दशकों में, जब सरकार और भूगर्भ से जुड़ी एजेंसियों ने सभी को स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने के लिये योजनाओं की शुरुआत की। उन्होंने समझा, और सही समझा - कि पानी में उपस्थित जीवाणु ही विश्वभर में बच्चों की मौत का सबसे बड़ा कारण है। उन्होंने यह माना कि सतही पानी - जो कि सैकड़ों तालाबों, नदियों और अन्य पानी संकलन के साधनों में मौजूद है - दूषित हो चुका है। इसलिये उन्होंने जमीन में दोहन के नए तकनीकों में पूँजी लगाना शुरू किया। ड्रिल, बोरपाइप, ट्यूबवेल और हैंडपम्प जन-स्वास्थ्य मिशन के लिये महत्त्वपूर्ण उपकरण हो गए। पानी का तल (लेवल) गिरने लगा। और भी गहरे गड्ढे खोदे गए। और यहाँ पर कहानी में एक मोड़ आया।
स्वच्छ पानी की तलाश का सरकार का इरादा तो नेक था, मगर एक मायने में उसकी प्रतिक्रिया बड़ी ही कठोर और आपराधिक रही। खबर आ रही थी कि शायद ये ‘अनोखी’ बीमारियों का वजह पीने का पानी ही था - मगर सरकार इन खबरों को नकारती रही। वह लोगों को गलत जानकारी देती रही और उन्हें उलझन में डालती रही। अपने निष्क्रियता के लिये उसने विज्ञान का इस्तेमाल किया। कहानी के इस उपकथानक में सरकार की असमर्थता के कई उदाहरण मौजूद हैं - जहाँ उसने समस्या को समझने, उसके कारण निश्चित करने और उसका निदान ढूँढ़ने में लापरवाही की। इस उपकथानक का ही अंत होता है भयावह और जानलेवा बीमारियों से।
भूजल में संखिया के संदूषण पर एक ब्रीफिंग पेपर अमृत बन गया विष (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) | |
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