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पुस्तक परिचय : 'बरगी की कहानी'
प्रस्तावना
बरगी की कहानी (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें) | |
क्रम | अध्याय |
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कहाँ गये चावल गेहूँ, दलहन-तिलहन के दाने ।
कागज का रुपया रोया, सुनना पड़ता है ताने।
हर सीढ़ी छोटी पड़ती है, भाव चढ़े मनमाने।
सबरी कलई उतर गई है, सभी गये पहचाने।
कहाँ गये चावल गेहूँ, दलहन-तिलहन के दाने । - बाबा नागार्जुन
कागज का रुपया रोया, सुनना पड़ता है ताने।
हर सीढ़ी छोटी पड़ती है, भाव चढ़े मनमाने।
सबरी कलई उतर गई है, सभी गये पहचाने।
कहाँ गये चावल गेहूँ, दलहन-तिलहन के दाने । - बाबा नागार्जुन