स्वच्छता का धर्म

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बहुत-से गाँव बड़े गंदे होते हैं। अगर गाँव गंदे हों, तो गाँव के लोग नरक में ही रहते हैं। हम गाँव जाते हैं, तो कई गाँवों में नाक बंद करके ही प्रवेश करना पड़ता है, क्योंकि लोग गाँव के बाहर खुले में पाखाना करते हैं। सारी बदबू हवा में फैलती है और उससे बीमारी फैलती है। मल पर मक्खियाँ बैठती हैं और फिर वही मक्खियाँ खाने की चीजों पर भी बैठती हैं। वही खाना जब हम खाते हैं, तो उससे बीमारी होती है। इसी का नाम नरक है। यह नरक हमारा ही पैदा किया हुआ होता है।

वास्तव में मनुष्य के मैले का अच्छा उपयोग हो सकता है। खेत में एक खुरपा लेकर जाना चाहिए। वहाँ एक गड्ढा बनाना चाहिए। उस पर शौच के लिए बैठना चाहिए। बाद में उस पर मिट्टी और घास-फूस डाल देना चाहिए। इससे बदबू नहीं फैलेगी, मक्खियाँ नहीं बैठेंगी और बीमारी भी नहीं फैलेगी। इसके अलावा उससे सुन्दर खाद भी बनेगी, तो फसल अच्छी होगी।

चीन और जापान में मनुष्य के मैले को खाद के लिए बहुत अच्छा उपयोग किया जाता है। साल भर में उससे एक मनुष्य के पीछे छह रुपये की फसल बढ़ेगी। अगर मनुष्य के मल-मूत्र का अच्छा उपयोग होगा और किसी गाँव में पाँच सौ मनुष्य हैं, तो तीन हजार रुपये की फसल बढ़ेगी। आज तो तीन हजार रुपये की बीमारी पैदा की जाती है। बीमारी बढ़ती है, तो पैसे भी जाते हैं और शरीर का भी क्षय होता है। इसलिए गाँव में स्वच्छता खूब होनी चाहिए।

गाँव में स्वच्छता रखेंगे, तो गाँव में धर्म रहेगा। जिस गाँव में स्वच्छता होगी, वहाँ सरस्वती बसेगी। जहाँ गंदगी होती है, वहाँ विद्या आती ही नहीं। सरस्वती का आसन श्वेत कमल है। वह मैले स्थान में कभी नहीं बैठती।

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