तरल पहेली

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मेरे जन्म लेने के पहले से
जो बह रही है बिना रुके-
मेरे भीतर के भीतर और भीतर
वह नदी दुनिया में सबसे निराली है।
उसके बहाव को देखा नहीं मैंने एक बार भी
मेरे रुकने, सो जाने से
कोई वास्ता नहीं, उस बहने वाली का
है बंद भीतर मेरे ही
फिर भी नहीं जानती
किसका इलाका है नाम क्या?
चुपचाप बहने में लीन है,
बीसवीं सदी के विलयन के बावजूद।
और सब नदियाँ सागर की ओर बहती हैं
वह ऊपर से नीचे ऊपर की ओर
एक नहीं शत-शत धाराओं में।

बिना भँवर लहरों के भी
आता ज्वार,
तापमान, आसमान छूने लग जाता
रोक नहीं पाता मैं वेग, मैं बावरा।
और सभी नदियाँ तो
मैली-कुचैली, फँसी दलदल में
भूल चुकीं बहना, पर
उसका प्रवाह आज तक अबाधित है
निनादित, भरम, पोली डोरियाँ शिराओं में
जब-जब मैं बंद इस धारा के
उद्गम के बारे में सोचता हूँ
माँ याद आती है
कोख जननी की।

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