तुम्हारे कितने नाम हैं ब्रह्मपुत्र

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तुम्हारे कितने नाम हैं ब्रह्मपुत्र

तिब्बत के जिस बर्फ से ढके अंचल में

तुम्हारा जन्म हुआ वहीं से निकली हैं

शतद्रू और सिन्धु की धाराएं

सगर तल से सोलह हजार फीट की ऊंचाई पर

टोकहेन के पास संगम होता है तीनों हिम प्रवाहों का

तिब्बती में कहते हैं-

कूबी सांगपो, सेमून डंगसू और मायून सू

यह संगम कैलाश पर्वत श्रेणी के दक्षिण में होता है

यहां तुम्हारा नाम रखा जाता है ‘सांगपो’

सांगपो का अर्थ है शुद्ध करने वाला

संसार की समस्त नदियों का काम ही है शुद्ध करना

तुम्हारे कितने नाम हैं ब्रह्मपुत्र

असम में प्रवेश करते समय तुम्हारा नाम है दिहांग

रंगदैघाट पर लुइत और दिवंग के साथ

मिलन होते ही तुम कहलाते हो ब्रह्मपुत्र

बांग्लादेश में प्रवेश करते ही नाम बदलकर

हो जाता है जमुना

गंगा के साथ मिलन होने के बाद पद्मा

और मेघना के साथ मिलन होने के बाद मेघना

तुम्हारे कितने नाम हैं ब्रह्मपुत्र

संस्कृत साहित्य ने तुम्हें पुकारा लौहित्य कहकर

तुम्हारी ही महिमा के कारण महाभारत में

बंगाल की खाड़ी को पुकारा गया लौहित्य सागर के नाम से

आहोम राजाओं ने तुम्हारा नाम रखा ‘नाम दाउ की’

थाई भाषा में तुम कहलाए ‘नक्षत्र देवता की नदी’

ग्रीक विद्वानों ने तुम्हारा नाम रखा ‘डायराडानेस’

तुम्हारे कितने नाम हैं ब्रह्मपुत्र।

मांझी का एकालाप

मैं लौटना चाहता हूं अपनी नाव में

मुझे यकीन है वहीं पहुंचकर भूल सकता हूं

दुनियादारी की खरोचें अन्याय के आघात

संवेदनहीन भीड़ की हिंसक निगाहें

वहीं पहुंचकर रुक सकती है मेरी रूलाई

मैं लौटना चाहता हूं अपनी नाव में

जलधारा धो डालेगी मेरे विषाद को

मेरी तनी हुई नसें ढीली हो जाएंगी

जब मैं निहारूंगा जानी-पहचानी नदी को

जब जलधारा में आगे बढ़ती जाएगी मेरी नाव

जब मैं जल का स्पर्श करूंगा

एक अलग ही दुनिया में खुद को पाऊंगा

कोई बनावट नहीं हे नदी के प्यार में

नदी मेरे जीवन का स्पर्श करती है

जिस तरह रेत का स्पर्श करती है लहरें

नदी मुझे देती है अपनी बांहों का सहारा

फिर बची नहीं रह जाती दुख की अनुभूति

मैं लौटना चाहता हूं अपनी नाव में।

चर्चित युवा कवि

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