विडम्बना

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बदलियों में पानी घट रहा
नदियों में प्रवाह
बातें भी अब कहाँ रहीं
अथाह
(उथलापन बार-बार दिखता
चरित्र है!)

घाटों पर निरापद न रही
प्यास
उतार पर है आँख का पानी

बेआब झील
एक पूरा शहर उदास करती है!

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