यजुर्वेद संहिता में ‘आपो देवता’

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(यजुर्वेद संहिता प्रथमोSध्यायः) मन्त्रदृष्टा ऋषिः – परमेष्ठी प्रजापति देवता – लिंगोक्त आपः (12) छन्दः – भुरिक् अत्यष्टि।

मन्त्रः
(12)पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ सवितुर्वः प्रसवः उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः।
देवीरापो अग्रेगुवो अग्रेपुवो ग्रS इममद्य यज्ञं नयताग्रे यज्ञपति सुधातुं यज्ञपतिं देवयुवम्।।2।।

यथार्थ प्रयुक्त आप दोनों (कुशाखण्डों या साधनों) को पवित्रकर्ता वायु एवं सूर्य रश्मियों से दोष रहित तथा पवित्र किया जाता है। हे दिव्य जल-समूह! आप अग्रगामी एवं पवित्रता प्रदान करने वालों में श्रेष्ठ हैं। यज्ञकर्ता को आगे बढ़ायें और भली प्रकार यज्ञ को सँभालने वाले याज्ञिक को, देवशक्तियों से युक्त करें।

विशेष- इस ‘कण्डिका’ में पवित्रछेदन, जल को पवित्र करने तथा उसे अग्निहोत्र-हवणी पर छिड़कने का विधान है।
मन्त्रदृष्टा ऋषिः परमेष्ठी प्रजापति। देवता – आपः लिंगोक्त पात्रसमूह (13) छन्दः – निचृत् उष्णिक, भुरिक् उष्णिक्।

मन्त्रः
(13) युष्मा इन्द्रोवृणीत वृत्र तूर्ये यूयमिन्द्रमवृणीध्वं वृत्र तूर्ये प्रोक्षिताः स्थ।
अग्नये त्वा जुष्टं प्रोक्षाम्यग्नीषोमाभ्यां त्वा जुष्टं प्रोक्षामि।
दैण्याय कर्मणे शुन्धध्वं देवयज्यायै यद्वो शुद्धाः पराजघ्नुरिदं वस्तच्छुन्धामि।।3।।

हे जल! इन्द्रदेव ने वृत्र (विकारों) को नष्ट करते समय आपकी मदद ली थी और आपने सहयोग दिया था। अग्नि तथा सोम के प्रिय आपको, हम शुद्ध करते हैं। आप शुद्ध हों। हे यज्ञ उपकरणों! अशुद्धता के कारण आप ग्राह्य नहीं हैं, अतः यज्ञीय कर्म तथा देवों की पूजा के लिए हम आपको पवित्र बनाते हैं।

विशेष- यह कण्डिका यज्ञीय संसाधनों पर जलसिंचन के पूर्व जल को संस्कारित करने, उपकरणों तथा हवि को पवित्र करने के लिए है। ‘जल’ रस तत्व है। आसुरी वृत्तियों (वृत्रासुर) का विनाश तभी हो सकता है, जब श्रेष्ठ प्रवृत्तियों में रस आये। रस तत्व के संशोधन के बिना आसुरी वृत्तियाँ नष्ट नहीं होती। इसलिए ‘रस रूप जल’ का सहयोग अनिवार्य है।

(21) मन्त्रदृष्टा ऋषिः – परमेष्ठी प्रजापति, देवता– सविता, हवि, आपः, छन्दः – गायत्री, निचृत्, पंक्ति।

मन्त्रः
देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेश्विनोर्बाहुम्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्।
सं वपामि समाप S ओषधीभिः समोषधयो रसेन।
स रेवतीर्जगतीभिः पृच्यन्ता सं
मधुमतीर्मधुमतीभिः पृच्यन्ताम्।।21।।

सविता द्वारा उत्पन्न प्रकाश में अश्विनी देव (रोग निवारक शक्तियों) की बाहुओं एवं पोषणकर्ता (पूषा) देव शक्तियों के हाथों से आपको विस्तार दिया जाता है। औषधियों को जल प्राप्त हो, वे रस से पुष्ट हों। गुण सम्पन्न औषधियाँ प्रवाहमान जल से मिलें। मधुरतायुक्त तत्व परस्पर मिल जायें।

विशेष- यह कण्डिका यज्ञ में सेवन योग्य औषधियों के प्रति है। इसके साथ पवित्र जल में पिसे चावलों को डालने तथा आग्नीध्र द्वारा उपसर्जनी जल मिलाने की क्रिया सम्पन्न होती है।
 

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