अब धरा की प्यास बुझाएँगे

अब नर्मदा के पानी से बहेगी विकास की गंगा
आदिवासी बाहुल्य अलीराजपुर जिले की भौगोलिक स्थिति मैदानी सहपहाड़ी है। जिले में कुल 288 पंचायते एवं 556 ग्राम हैं। इनमें से 5 वनग्राम हैं। जिले की कुल जनसंख्या लगभग 8 लाख है। क्षेत्र में मुख्यतः 6 स्थानीय नदियाँ प्रवाहित हैं, परन्तु अप्रैल मई में इन नदियों का जल स्तर सूख जाता है, जिससे मात्र 35,100 हेक्टेयर यानी 11 प्रतिशत भू-भाग ही सिंचित हो पाता है। वर्तमान में लगभग 2 लाख 80 हजार हेक्टेयर क्षेत्र असिंचित है। क्षेत्र के निवासियों की मुख्य आजीविका कृषि एवं वनोपज पर आधारित है, लेकिन सिंचाई के संसाधनों के अभाव में आज भी यह क्षेत्र पिछड़ा हुआ है किन्तु विधायक नागरसिंह चौहान के भागीरथी प्रयासों के चलते अब जल्द ही न केवल जिले के शतप्रतिशत भाग पर हरियाली लहराए बल्कि जिले भर की ग्रामीण क्षेत्रों की पेयजल समस्या का समाधान भी हमेशा-हमेशा के लिए हो जाएगा।

असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो, क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो। जब तक न सफल हो नींद चैन को त्यागो तुम, संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो। कुछ किए बिना ही जय जय कार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। महान कवि हरिवंशराय बच्चन की इन पंक्तियों को हकीकत कर दिखाया है अलीराजपुर विधायक नागरसिंह चौहान ने, आजादी के बाद से महज पानी के अभाव में विकास से अछूता बैठे आदिवासी बाहुल्य अलीराजपुर जिले के जनों के कंठ तरने के बाद उन्होंने जिले की धरा की तृष्णा (प्यास) को तृप्त करने के लिए लगभग 600 करोड़ रुपए की लागत से निर्मित होने वाली नर्मदा संजीवन उद्वहन को प्रदेश सरकार से स्वीकृति दिलवाकर अपनी पहचान पानी वाले भैया के रूप में विकसित कर ली है।

दृढ़ निश्चय से बाधा होती है दूर
दृढ़ निश्चय के साथ यदि कुछ करने की ठान लें तो बाधाएँ स्वतः ही समाप्त हो जाती है और एक दिन सफलता प्रयासकर्ता के कदम चूमती है, कुछ लोग भले ही इस बात को महापुरूषों के सुविचार मात्र मानते हो लेकिन परिश्रम को अपना धर्म मानने वाले इसे चरितार्थ भी कर दिखाते हैं, कुछ ऐसा ही कर दिखाया है अलीराजपुर विधायक नागरसिंह चौहान ने। विधायक चौहान ने न केवल च.शे. आजाद परियोजना से लगभग 22 करोड़ रुपए की लागत से पाईप लाइन का जाल बिछाकर जिला मुख्यालय के रहवासियों की जल संकट समस्या का स्थाई रूप से समाधान कर दिया बल्कि हाल ही में म.प्र शासन से लगभग 100 करोड़ रुपए की लागत से निर्मित होने वाली माँ नर्मदा संजीवन उद्वहन परियोजना को स्वीकृति प्रदान कर जिले की धरा की प्यास को भी बारह महीने तृप्त रखने का सार्थक प्रयास किया है।

पहले के जनप्रतिनिधि करते यह प्रयास तो अब तक बदल जाती तकदीर:
म.प्र की पश्चिमी सरहद पर गुजरात व महाराष्ट्र के पास बसा आदिवासी बाहुल अलीराजपुर जिला आजादी के बाद से ही विकास की बाट जोह रहा है, शूरवीरों व मेहनतकश लोगों की धरा मनाने जाने वाले अलीराजपुर के निवासियों अर्थव्यवस्था पूर्ण रूप से कृषि पर आधारित है किन्तु सिंचाई संसाधनों के अभाव में जिले के मेहनत किसान केवल खरीफ फसलों का ही लाभ ले पाते हैं, इस दौरान इन्द्र देव बरसने में कंजूसी कर जाएँ तो धरती का सीना चीरकर अनाज पैदा करने वाले किसान पेट भरने लायक अनाज से भी मोहताज हो जाते हैं, नतीजतन किसानों को मजदूर की भूमिका में आकर समीपस्थ राज्यों में रोजगार की तलाश में पलायन करने को बाध्य होना पड़ता है, लगभग आजादी के बाद से ही जिले में चल रही पलायन प्रथा न केवल आदिवासियों की संस्कृति प्रभावित हो रही है, कभी मेहनत किसानों के रूप में पहचाने जाने वाले अलीराजपुर अंचल की पहचान मजदूर जिले के रूप में विकसित हो चुकी है, बावजूद इसके पूर्व में आदिवासियों को तकदीर और तस्वीर बदलने का वचन देकर दिल्ली-भोपाल (सांसद-विधायक) पहुँचे जनप्रतिनिधियों ने उन्हें फसलों को सिंचने जितना पानी तक नहीं लाकर दिया, यदि पूर्व के जनप्रतिनिधियों द्वारा अंचल के किसानों को सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध करवा दिया जाता तो अंचल के किसान भी पंजाब व समीपस्थ धार जिले के पाटीदारों की तरह सम्पन्न होते।

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