आधुनिक शिक्षा में पर्यावरण : वर्तमान संदर्भ

environment education
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इस दुनिया को सुंदर बनाने व भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए हमें आज से ही बच्चों को पर्यावरण की ऐसी शिक्षा देनी होगी कि वे भविष्य में पर्यावरण को अधिक संरक्षित कर सकें, जिससे दुनिया में एक सुखद व स्वच्छ पर्यावरण का निर्माण हो, सभी वन्य-जीव विचरण करें। जल, वायु शुद्ध हो, प्राकृतिक आपदाएं कम आएं। पर्यावरण संरक्षण की सोच सभी के अंदर विकसित हो। यही सोच हमारी सच्ची जीत होगी तथा एक सुदंर पर्यावरण के साथ सुंदर दुनिया का निर्माण होगा। आजादी के बाद देश में शिक्षा-सुधार के लिए विभिन्न आयोगों का गठन किया गया। इन सभी आयोगों ने शिक्षा में सुधार के लिए विभिन्न प्रकार के सुझाव दिए, परंतु पर्यावरण शिक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया। आज दुनिया के विकसित और विकासशील देशों को तीव्र विकास की रफ्तार ने जन-जीवन को उन्नत बनाया है। किंतु इस विकास के साथ प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन किया गया है। इस कारण से जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संकट पैदा हो रहा है।

वर्तमान संकट के लिए विभिन्न कारक उत्तरदायी हैं। जैसे वनों का काटना, अत्यधिक खनन, कीटनाशकों का प्रयोग, परमाणु प्रयोग, अत्यधिक वाहन, औद्योगिक कारखानों का जहरीला धुआं, अपशिष्ट व प्रदूषित पदार्थ, हानिकारक रसायनों का प्रयोग, भूमिगत जल की अधिक निकासी, वन्य-जीवों के शिकार बहित मल आदि के कारण पर्यावरण संकट पैदा हो गया। यदि दुनिया के विभिन्न देशों ने मिलकर तुरंत इसका उपाय नहीं किया व ध्यान नहीं दिया तो यह पृथ्वी एक मृत्यु का घर बन जाएगी। जीव-जंतु एवं वनस्पतियों की प्रजातियां विलुप्त हो जाएगी। अभी तक हजारों प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं।

वर्तमान के विभिन्न प्रकार के प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है। बढ़ती जनसंख्या। जनसंख्या की यह वृद्धि प्रति वर्ष औसतन 2 करोड़ व्यक्तियों की होती है। यहां इस पृथ्वी पर इस तीव्र जनसंख्या वृद्धि के सापेक्ष प्राकृतिक संसाधनों का विकास नहीं हो पा रहा है। इसी कारण मानव ने प्राकृतिक संसाधनों को बढ़ाने में रुचि नहीं दिखाई कि जनसंख्या तथा उपलब्ध संसाधनों के मध्य असंतुलन पैदा होने से पर्यावरण संकट पैदा हो गया।

मानव व पर्यावरण एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। प्राचीनकाल में हमारे देश में मानव-पर्यावरण के मैत्रीपूर्ण संबंधों के कारण प्राकृतिक वातावरण स्वस्थ था। रामायण में विभिन्न अध्यायों के नाम पर्वतों व वनों के नाम से रखे गए। वनों की सुंदरता का बहुत ही मनोहारी वर्णन किया व बताया गया है कि किस प्रकार से नदियों, वनों का मानव के जीवन में महत्व है। नदियों का जल कितना शुद्ध व पवित्र है। नदियों को गंगा माता व यमुना माता आदि की संज्ञा दी गई। इसका कारण नदियों को मां के समान महत्व देना व शुद्ध रखना था। रामायण में पंचवटी का वर्णन आता है। यह पंचवटी पांच विशेष औषधि वाले वृक्ष थे। प्राचीन सभ्यताएं नदी किनारे विकसित हुईं, जैसे मोहनजोदड़ो, सिंधु घाटी व मेसोपोटामिया की सभ्यता। प्राचीन भारत में वृक्षों को देवता के रूप में पूज्य मानते थे, जैसे-पीपल, बरगद, आम आदि। इन सभी वृक्षों की पूजा करने का कारण अंधविश्वास नहीं, वरन् इनसे प्राप्त होने वाले लाभ थे। पीपल के वृक्ष के नीचे घी का दीपक जलाते थे, क्योंकि 24 घंटे ऑक्सीजन देता है, जो मानव के लिए प्राणदायिनी गैस है। इस प्रकार के विभिन्न प्रसंग हमारे प्राचीन ग्रंथों में वर्णित हैं। महाकवि कालिदास ने प्राकृतिक वातावरण का बड़ा ही सुंदर एवं मनोहारी वर्णन किया है। इसमें आधुनिक भारत के प्राकृतिक कवि सुमित्रानंदन भी पीछे नहीं हैं, इसका कारण प्राचीनकाल में मनुष्य का प्रकृति प्रेम था।

इस प्राकृतिक असंतुलन के कारण विभिन्न प्रकार की समस्याओं जैसे-गरीबी, कुपोषण,बेरोजगारी, निरक्षरता, रहन-सहन का गिरता स्तर, खाद्यान्न संकट, अस्वच्छता, भयंकर बीमारियां, सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार, तलाक, मानसिक तनाव, हिंसा, पारिवारिक विघटन, मूल्यों का पतन आदि का आविर्भाव हुआ है। इन सभी के लिए प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण असंतुलन जिम्मेदार है।

इस पर्यावरण असंतुलन के कारण विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदाएं आ रही हैं। जैसे-सुनामी, भूकंप, बाढ़, वनाग्नि, वन्य-जीवों का विनाश, घातक गैसों का बढ़ना व घातक बीमारियां पैदा होना। भारत में भोपाल गैस घटना एक त्रासदी बन गई थी। इस घटना में घातक गैस के रिसाव द्वारा 1984 से लेकर आज तक वहां पर रहने वाले लोगों पर घातक प्रभाव पड़ा व उनकी आने वाली पीढ़ी पर जन्म से ही इसका प्रभाव दिखाई दे रहा है। भारत में सुनामी के कारण कई राज्यों में धन-जन की अपार हानि हुई। अभी भूकंप के कारण जो सुनामी आई, उसमें अधिक धन-जन की हानि हुई। जापान देश के फुकुशिमा परमाणु संयंत्र से बड़ी मात्रा में रेडियोधर्मी विकिरण व रेडियोधर्मी पदार्थों का रिसाव होने के कारण सब्जी, फल, जल, वायु सभी प्रदूषित हो गए। ताजा आंकड़ों के अनुसार इस घटना में 28 मार्च 2011 तक मरने वालों की संख्या लगभग 10,489 हो गई व 16,600 लोग आज भी लापता हैं। यह घटना प्राकृतिक है, जिसने मानव-जीवन को कई रूप में प्रभावित किया। पूरा देश संकट में पड़ गया और इसके परिणाम आने वाली पीढ़ी को भोगने पड़ेंगे।

आज पर्यावरण की समस्या किसी एक देश की समस्या नहीं, अपितु विश्व की एक प्रमुख समस्या है। इसके कारण ही जलवायु परिवर्तन हो रहा है। इसके लिए कोई एक विकासशील या विकसित देश जिम्मेदार नहीं, बल्कि सभी देश समान रूप से जिम्मेदार हैं। देखा जाए तो पर्यावरण को अधिक नुकसान पहुंचाने में विकसित देशों का अधिक योगदान रहा है। इन विकसित देशों ने विकास की दौड़ में आगे बढ़ने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन किया। आज विकासशील देश विकसित देशों के कदमों पर चलकर पर्यावरण असंतुलन बढ़ा रहे हैं।

वर्तमान शिक्षा-पुस्तकों में ‘पर्यावरण’ पर एक या दो अध्याय पढ़कर या पढ़ाने से काम चलने वाला नहीं है। हम विकसित देशों की विकास की झूठी दौड़ में शामिल हो रहे हैं। यह हमारे जीवन के लिए एक अभिशाप बन जाएगी। यह विकास की अंधी दौड़,, मानव-जीवन के साथ प्राकृतिक वातावरण के विनाश की दौड़ है। आज की शिक्षा में जरूरत है कि वर्तमान व आने वाले भविष्य को पर्यावरण संरक्षण के प्रति बालक को जागरूक करने की व खुद जागरूक होने से काम चलेगा और इसे बताना होगा कि विश्व की सभी नदी का जल कितना साफ था। आज पीने लायक ही नहीं। पहले घातक बीमारियां कम थीं, आज पहले की अपेक्षा कहीं ज्यादा हैं। पर्यावरण के प्रति जागरूक करने व इसके प्रदूषित करने से रोकने के उपायों पर गंभीरता से अपनाने की जरूरत है। समाज के सभी लोगों को इस कार्य के लिए जागरूक करना होगा, साथ ही वैज्ञानिकों, भूगोल वेत्ताओं, पर्यावरणविद्, समाजशास्त्री व राजनीतिज्ञयों, अर्थशास्त्रियों तथा प्रशासक व नीति नियोक्ताओं आदि सभी को इस दिशा में सहयोग करना होगा।

पर्यावरण संरक्षण के लिए व्यक्तिगत व सामूहिक रूप से कार्य करने, समाज में पर्यावरण के प्रति जागरुकता पैदा करने व समाज के लोगों की भागीदारी तय करने की, सेमिनार, प्रतियोगी परीक्षाएं, पोस्टर्स, लेखन कार्यक्रम, नाटकों, व रैलियों के माध्यम से लोगों में पर्यावरण के प्रति चेतना पैदा की तथा राष्ट्रीय कार्यक्रम बनाए जाएं। जो लोग पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं, उन्हें दंडित किया जाए व जो लोग पर्यावरण के संरक्षण में सहयोग कर रहे हैं, उन्हें पुरस्कृत किया जाए। नगर-निगम द्वारा उन कॉलोनियों का अधिक विकास किया जाए, जो कॉलोनीवासी अधिक वृक्ष लगाने व पर्यावरण की सुरक्षा पर ध्यान दें रहे हैं। प्रत्येक घर के सामने दो वृक्ष अवश्य लगाए जाएं। हरी-भरी ग्राम पंचायत को पुरस्कार दिया जाए। जो व्यक्ति पर्यावरण में विशेष योगदान दे, उसे राज्य-राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया जाए। इसके लिए स्थानीय लोगों की सहभागीता सुनिश्चित की जाए व पर्यावरण के प्रति जन-चेतना पैदा की जाए, तभी पर्यावरण संरक्षण योजनाओं का कार्यन्वयन संभव है। पर्यावरण को सुधारने के लिए औपचारिक चेतना से काम चलने वाला नहीं है। वर्तमान शिक्षा पद्धति में शैक्षणिक परिवर्तन होने के साथ पर्यावरण समस्याओं के बारे में बालक को सम्यक् ज्ञान होना चाहिए। समाज के सभी वर्गों व विश्व के सभी देशों को इस कार्य के प्रति रुचि दिखानी होगी व इस दिशा में सुधारात्मक कदम बढ़ाने होंगे।

इस दुनिया को सुंदर बनाने व भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए हमें आज से ही बच्चों को पर्यावरण की ऐसी शिक्षा देनी होगी कि वे भविष्य में पर्यावरण को अधिक संरक्षित कर सकें, जिससे दुनिया में एक सुखद व स्वच्छ पर्यावरण का निर्माण हो, सभी वन्य-जीव विचरण करें। जल, वायु शुद्ध हो, प्राकृतिक आपदाएं कम आएं। पर्यावरण संरक्षण की सोच सभी के अंदर विकसित हो। यही सोच हमारी सच्ची जीत होगी तथा एक सुदंर पर्यावरण के साथ सुंदर दुनिया का निर्माण होगा।

संदर्भ


पत्रिकाएं, समाचार-पत्र आदि।

सहा. प्रोफेसर, बी.एड.विभाग गांधी स्मारक, पी.जी. कॉलेज सुरजनगर, जयनगर (मुरादाबाद)

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