अगले मानसून तक सरकार सोई क्यों रहती है

7 Aug 2016
0 mins read

मानसून कई तरीकों से हमें बताता है कि देश में आर्थिक स्थिति किस ओर जाने वाली है। एक अच्छे मानसून का अर्थ है स्वस्थ फसल तथा किसानों के लिये अच्छा होना। सरकार इसलिये खुश होती है क्योंकि वह यह सुनिश्चित करके अपने कंधों से बोझ उतार देती है कि खाद्यान्न तथा खाद्य उद्योग अपने बूते पर आगे बढ़ेंगे। मगर जैसे कि मानसून आया और 2-3 दिन अच्छी बारिश हुई, इससे परेशानी उत्पन्न हो गई। दुख की बात है कि हमारे शहर सड़कों तथा गड्ढों में भरे पानी के लिये तैयार नहीं हैं, इससे हर कहीं गड़बड़ी फैल जाती है। क्यों हमारे नगर निगम विभाग, राजनीतिज्ञ तथा हमारे नौकरशाह इस ओर नहीं देखते? फ्लाईओवर तथा इमारतें गिर जाती हैं और ट्रैफिक जाम हो जाता है। हमने टी.वी. पर गुड़गाँव उच्चमार्ग देखा, लोगों को अपनी कारों में एक रात गुजारनी पड़ी। बेंगलूर, चेन्नई में बाढ़ आ गई। मुम्बई, जो हमारी वित्तीय राजधानी है, जहाँ प्रतिदिन हजारों की संख्या में पर्यटक आते हैं, व्यवसायी अपनी रोजी-रोटी चलाने का प्रयास करते हैं, विदेश से निवेशक आते हैं, हमारे पास उन्हें दिखाने के लिये क्या है? बच्चों के स्कूलों ने छुट्टियाँ घोषित कर दीं और अभिभावकों ने चैन की साँस ली क्योंकि वे अपने बच्चों को ट्रैफिक में फँसे नहीं देखना चाहते थे।

हर जगह पानी भरने के कारण सभी तरह की बीमारियाँ फैलती हैं। जैसे डेंगू ही काफी नहीं था, जलजनित और कई बीमारियाँ पनपने लगी हैं। सरीसृप अपने छिपने के ठिकानों से बाहर आने लगते हैं। हम किस सदी में रह रहे हैं और कैसे रह रहे हैं? इमारतें और फ्लाईओवर बारिश के पानी में बह रहे हैं, बिजली के खंभे खतरनाक हो सकते हैं। क्यों सरकार अगला मानसून आने तक सारा साल सोती रहती है या फिर वह इससे निटपने में सक्षम ही नहीं है? क्या यह हमारे सिस्टम में फैला भ्रष्टाचार है कि जब सड़कें बनाई जाती हैं, हम सस्ता सामान अथवा ड्रेनेज सिस्टम चाहते हैं या फिर हमें पता ही नहीं होता कि ये सब कैसे करना है?

गुड़गाँव उच्च मार्ग कुछ वर्ष पहले ही बना था, इसलिये यह सुनिश्चित क्यों नहीं किया गया कि इसमें मानसून के मद्देनजर अच्छा ड्रेनेज सिस्टम हो? क्या कारण है कि राजनीतिज्ञ नगर निगमों अथवा प्रभारी अधिकारियों को दंडित नहीं करते। वे अधिकारी जो उन सड़कों तथा फ्लाईओवर और इमारतों के निर्माण के प्रभारी थे, जो गिर गईं। ठेकेदारों, बिल्डरों तथा नगर निगम के प्रभारी अधिकारियों, सभी को जेल में डाल देना चाहिए। मेरे ड्राइवर का बेटा तीन घंटों तक जाम में फँसा रहा और उसे पानी में चलना पड़ा और फिर वह बुखार के साथ घर लौटा। मेरी पहचान का एक अन्य व्यक्ति गड्ढे में गिर गया था क्योंकि सड़क पर भरे पानी में से वह उसे देख नहीं पाया था मगर भाग्य से उसे बचा लिया गया।

एक सब्जी विक्रेता ने मुझे बताया कि कैसे उसके एक पड़ोसी को स्ट्रीट लैम्प के एक खुले तार से बिजली का झटका लग गया। इस सबके लिये कौन जिम्मेदार है? क्या सरकार को यह सुनिश्चित नहीं करना चाहिए कि अगले वर्ष हमें इसी समस्या का सामना न करना पड़े? कैसे प्रमुख शहर एक तरह से थम जाते हैं?

हमारे मूलभूत ढाँचे के साथ क्या गलत है, हमारे ठेकेदारों तथा मजदूरों के साथ क्या गलत है? क्या कमी है कि बेंगलूर को एक बार फिर उसी समस्या से गुजरना पड़ा और अभी भी वहाँ सबने मिलकर काम नहीं किया। मुझे सचमुच हैरानी है कि क्यों? मुम्बई में किसी भी समय शिवसेना तथा उसके जैसे लोग विद्रोह कर देते हैं और रैलियाँ निकालते हैं या फिर हड़ताल पर चले जाते हैं। क्यों नहीं वे अपने घर को व्यवस्थित करते और सुनिश्चित बनाते कि ऐसी समस्याएं नहीं आएं।

मध्यम वर्ग के युवा तथा बुजुर्ग लोगों की सैकड़ों कारें सड़क पर फँस गईं। वे हमेशा के लिये क्षतिग्रस्त हो गईं क्योंकि पानी उनके इंजन तक पहुँच गया और इसके लिये कोई बीमा भी नहीं है। ट्रकों में भरे खाद्यान्न तथा रोजमर्रा की जरूरत की चीजें खराब हो गईं। हम चाहते हैं कि वर्षा हो, मगर हम मूलभूत ढाँचा भी चाहते हैं और इसे हमें सरकार ने उपलब्ध करवाना है। जब एंकर टेलीविजन पर राजनीतिक दल के किसी प्रवक्ता से इस बारे में प्रश्न पूछते हैं तो हमें आम तौर पर यही सुनने को मिलता है कि ओह यह तो कांग्रेस का राज्य है अथवा जद (यू) शासन का अथवा आम आदमी पार्टी का।

जरूरत है कि केन्द्र राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम करें, न कि गड़बड़ के लिये एक-दूसरे को दोष दिया जाए, राजनीति को इससे बाहर रखा जाना चाहिए। प्रत्येक राज्य में मनुष्य बसते हैं, मगर विभिन्न दल शासन करते हैं। आप उन्हें किसी भी कीमत पर यूँ फँसने नहीं दे सकते। जनता को यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि उन्हें उनका हिस्सा मिल रहा है क्योंकि आखिरकार वे करदाता हैं।

राजनीतिज्ञों तथा नौकरशाहों के बीच नौकरशाह भाग्यवान होते हैं। वे किसी चीज के लिये जवाबदेह नहीं होते। कार्पोरेटर तथा ठेकेदार धन बनाने के लिये आपस में हाथ मिला लेते हैं। परेशानी जनता को भुगतनी पड़ती है। दोष राजनीतिज्ञों को दिया जाता है और गालियाँ निकाली जाती हैं, मगर असल दोषी नगर निगम, ठेकेदार तथा पुलिस कर्मी हैं, जिन्हें वास्तव में जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। राजनीतिज्ञों को उन्हें दंडित करना चाहिए और परिणाम देने चाहिए। आखिरकार मानव जीवन दाँव पर लगे हैं क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में भोजन की बर्बादी तथा बेआरामी होती है। परमात्मा मुझे माफ करें, मैं हैरान होती हूँ कि क्या हो यदि इस गड़बड़झाले में कोई ठेकेदार, बिल्डर अथवा राजनीतिज्ञ अपना कोई पारिवारिक सदस्य गँवा दे?

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading