ऐसे बनाएं आरटीआई आवेदन…

30 Oct 2010
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पिछले अंक में हमने आपको बताया था कि आरटीआई के इस्तेमाल में आने वाली द़िक्क़तों से कैसे निपटा जा सकता है। इस अंक से हम लगातार आरटीआई आवेदन का एक प्रारूप प्रकाशित करेंगे, ताकि आप अपना आरटीआई आवेदन ख़ुद तैयार कर सकें। इसी कड़ी में इस बार का आवेदन नरेगा से संबंधित है। यह आवेदन नरेगा में हो रही (अगर ऐसा है तो) धांधली को सामने लाने या जॉब कार्ड बनवाने में मददगार साबित हो सकता है। हम अपने सुधी पाठकों से यह अपेक्षा करते हैं कि वे गांव-देहात में रहने वाले लोगों को भी इस कॉलम के बारे में बताएंगे और इसमें दिए गए आरटीआई आवेदन के प्रारूप को ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचाएंगे। क्योंकि सरकारी योजनाओं में पनप रहे भ्रष्टाचार से लड़ने की चौथी दुनिया की इस मुहिम में आपका साथ ही असली मायने रखता है।

क्या फाइल नोटिंग का सार्वजनिक होना अधिकारियों को ईमानदार सलाह देने से रोकेगा?


नहीं, यह आशंका ग़लत है। इसके उलट, हर अधिकारी को अब यह पता होगा कि जो कुछ भी वह लिखता है वह जन- समीक्षा का विषय हो सकता है। यह उस पर उत्तम जनहित में लिखने का दबाव बनाएगा। कुछ ईमानदार नौकरशाहों ने अलग से स्वीकार किया है कि आरटीआई उनके राजनीतिक व अन्य प्रभावों को दरकिनार करने में बहुत प्रभावी रहा है। अब अधिकारी सीधे तौर स्वीकार करते हैं कि यदि उन्होंने कुछ ग़लत किया तो उनका पर्दाफाश हो जाएगा। इसलिए, अधिकारियों ने इस बात पर जोर देना शुरू कर दिया है कि वरिष्ठ अधिकारी भी उन्हें लिखित में निर्देश दें।

क्या बहुत लंबी-चौड़ी सूचना मांगने वाले आवेदन को ख़ारिज किया जाना चाहिए?


यदि कोई आवेदक ऐसी जानकारी चाहता है जो एक लाख पृष्ठों की हो तो वह ऐसा तभी करेगा जब सचमुच उसे इसकी ज़रूरत होगी क्योंकि उसके लिए दो लाख रुपयों का भुगतान करना होगा। यह अपने आप में ही हतोत्साहित करने वाला उपाय है। यदि अर्ज़ी इस आधार पर रद्द कर दी गयी, तो प्रार्थी इसे तोड़कर प्रत्येक अर्ज़ी में 100 पृष्ठ मांगते हुए 1000 अर्जियां बना लेगा, जिससे किसी का भी लाभ नहीं होगा। इसलिए, इस कारण अर्जियां रद्द नहीं होनी चाहिए कि लोग ऐसे मुद्दों से जुड़ी सूचना मांग रहे हैं जो सीधे सीधे उनसे जुड़ी हुई नहीं हैं। उन्हें सरकार के अन्य मामलों के बारे में प्रश्न पूछने की छूट नहीं दी जानी चाहिए, पूर्णतः ग़लत है। आरटीआई अधिनियम का अनुच्छेद 6(2) स्पष्टतः कहता है कि प्रार्थी से यह नहीं पूछा जा सकता कि क्यों वह कोई जानकारी मांग रहा है। किसी भी मामले में, आरटीआई इस तथ्य से उद्धृत होता है कि लोग टैक्स/कर देते हैं, यह उनका पैसा है और इसीलिए उन्हें यह जानने का अधिकार है कि उनका पैसा कैसे ख़र्च हो रहा है और कैसे उनकी सरकार चल रही है। इसलिए लोगों को सरकार के प्रत्येक कार्य की प्रत्येक बात जानने का अधिकार है। भले ही वे उस मामले से सीधे तौर पर जुड़े हों या न हों। इसलिए, दिल्ली में रहने वाला व्यक्ति ऐसी कोई भी सूचना मांग सकता है जो तमिलनाडु से संबंधित हो।

सरकारी रेकॉर्ड्स सही रूप में व्यवस्थित नहीं हैं।


आरटीआई की वजह से सरकारी व्यवस्था पर अब रेकॉर्ड्स सही आकार और स्वरूप में रखने का दवाब बनेगा। अन्यथा, अधिकारी को आरटीआई क़ानून के तहत दंड भुगतना होगा।

सवाल-जवाब


8-14 मार्च के अंक में मैने पढा कि आरटीआई से संबंधित जानकारियों के लिए हम आपसे संपर्क कर सकते हैं। मैं मोकामा का रहने वाला हूं और यह जानना चाहता हूं कि मैं अपनी शिकायत कहां भेज सकता हूं और क्या कोई बच्चा भी अपनी शिकायत दाखिल कर सकता है?

अविनाश किरण, मोकामा, पटना।

आप अपना आरटीआई आवेदन (जिसमें आपकी समस्या से जुड़े सवाल होंगे) संबंधित सरकारी विभाग के लोक सूचना अधिकारी (पीआईओ) के पास स्वयं जा कर या डाक के द्वारा जमा करा सकते हैं। आरटीआई क़ानून के मुताबिक़ प्रत्येक सरकारी विभाग में एक लोक सूचना अधिकारी को नियुक्त करना आवश्यक है। यह ज़रूरी नहीं है कि आपको उस पीआईओ का नाम मालूम हो। यदि आप प्रखंड स्तर के किसी समस्या के बारे में सवाल पूछना चाहते है तो आप क्षेत्र के बीडीओ से संपर्क कर सकते हैं। केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों के पते जानने के लिए आप इंटरनेट की भी मदद ले सकते है। और हां एक बच्चा भी आरटीआई क़ानून के तहत आरटीआई आवेदन दाख़िल कर सकता है।

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