ऐसे तो 200 साल में भी नहीं साफ होगी गंगा

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को लगाई फटकार, तीन सप्ताह के भीतर गंगा सफाई की चरणबद्ध योजना पेश करने का दिया निर्देश

प्रदूषित गंगानई दिल्ली (भाषा)। गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करने का नरेंद्र मोदी सरकार का महत्वाकांक्षी चुनावी वायदा बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की जांच के दायरे में आया, जिसने कहा कि ऐसा लगता है कि अभी तक किए गए उपाय दो सौ साल बाद भी देश की पवित्रतम नदी को स्वच्छ नहीं बना सकेंगे।

शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि तीन सप्ताह के भीतर गंगा नदी की सफाई की ‘उसका प्राचीन गौरव बहाल करने’ के लिए ‘चरणबद्ध योजना’ पेश की जाए। न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति आर. भानुमती की खंडपीठ ने कहा कि आपकी कार्य योजना देखने के बाद तो ऐसा लगता है कि दो सौ साल बाद भी गंगा साफ नहीं होगी। महत्वाकांक्षी परियोजना का मूल्यांकन करके आपको गंगा का प्राचीन गौरव बहाल करने के लिए कदम उठाने हैं।

न्यायाधीशों ने कहा कि यह महत्वाकांक्षी परियोजना है। कृपया कोशिश करें कि अगली पीढ़ी नदी को अपने मूल रूप में देख सके। हमें नहीं मालूम कि हम देख सकेंगे या नहीं। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस कार्य योजना के प्रति ‘नौकरशाही वाला नजरिया’ गंगा नदी को स्वच्छ बनाने की प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी परियोजना को पूरा करने में मददगार नहीं होगा।

कोर्ट ने सरकार से कहा कि ‘कलात्मक दृष्टिकोण की बजाए- पावर प्वाइंट प्रजेन्टेशन’ तैयार किया जाए। कोर्ट ने कहा कि दूसरे देशों से मिलने वाली वित्तीय सहायता को लेकर चिंतित नहीं है परंतु उसकी चिंता है कि 2500 किमी लंबी नदी की सफाई परियोजना पर काम करने के बारे में आम आदमी को कैसे समझाएंगे। न्यायाधीशों ने जल संसाधन, नदी विकास और गंगा नवीनीकरण मंत्रालय के हलफनामे के अवलोकन के बाद सालिसीटर जनरल रंजीत कुमार से कहा कि हम समितियों की बारीकियों में नहीं जाना चाहते। लेकिन गंगा की सफाई की प्रक्रिया को लेकर आम आदमी की क्या अपेक्षा है। उसे कम से कम यह तो पता होना चाहिए कि सरकार कैसे काम कर रही है।

पीठ ने कहा कि आपने नौकरशाही जैसा स्पष्टीकरण दे दिया है। हम आम आदमी की भाषा में समझना चाहते हैं कि परियोजना पर कैसे काम किया जाए। कोर्ट ने सॉलिसीटर जनरल से कहा कि इस मामले में पूरक हलफनामा दाखिल किया जाए। कोर्ट ने कहा कि पावर प्वाइंट प्रजेन्टेशन चरणबद्ध कार्य योजना को समझने में मददगार होगा। शीर्ष अदालत ने सरकार से विशेष रूप से कहा कि गंगोत्री से नीचे 135 किमी की नदी के पारिस्थितिकी दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र के लिए उठाए जा रहे कदमों के बारे में अवगत कराया जाए क्योंकि 2003 की अधिसूचना के बाद से कोई कदम उठाया ही नहीं गया है।

अदालत ने सुनवाई 24 सितंबर के लिए स्थगित करते हुए कहा कि सरकार के मौजूदा हलफनामे में इस मसले पर सिर्फ मोटी रूपरेखा पेश की गई है और चरणबद्ध योजना के बगैर नदी को साफ करना मुश्किल होगा। शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में इस तथ्य का भी जिक्र किया कि सॉलिसीटर जनरल पूरक हलफनामा दाखिल करने के लिए तैयार हैं जिसमें सरकार गंगा नदी की सफाई के लिए चरणबद्ध तरीके से किए जाने वाले संभावित कदमों का विवरण देगी।

कोर्ट ने कहा कि सरकार से अपेक्षा है कि वह परियोजना पर चरणबद्ध तरीके से अमल का लक्ष्य निर्धारित करे। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि औोगिक इकाइयां कानून का पालन नहीं करती हैं तो हम कानूनी प्रक्रिया से सरकार की मदद करने में संकोच नहीं करेंगे। सरकार ने कहा है कि 29 बड़े शहरों, 23 छोटे शहरों व 48 नगरों से गुजरने वाली गंगा को प्रदूषण मुक्त कराने के चुनाव पूर्व वायदे को पूरा करने के लिए वह कृतसंकल्प है।

अदालत ने मांगी पीपीटी


गंगा की सफाई की प्रक्रिया को लेकर आम आदमी की क्या अपेक्षा है। उसे कम-से-कम यह तो पता होना चाहिए कि सरकार कैसे काम कर रही है। आपने नौकरशाही जैसा स्पष्टीकरण दे दिया है। हम आम आदमी की भाषा में समझना चाहते हैं कि परियोजना पर कैसे काम किया जाए। 2500 किलोमीटर लंबी नदी की सफाई परियोजना पर काम करने के बारे में आम आदमी को कैसे समझाएंगे। आप कलात्मक भाषा में बात न करें। अदालत ने महान्यायवादी से कहा कि इस मामले में पूरक हलफनामा दाखिल किया जाए। पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन (पीपीटी) चरणबद्ध कार्य योजना को समझने में मददगार होगा।

चरणबद्ध तरीके से हो काम


सरकार से अपेक्षा है कि वह परियोजना पर चरणबद्ध तरीके से अमल का लक्ष्य तय करे।

गंगा एक्शन प्लान नाकाम


मैगसेसे पुरस्कार विजेता एमसी मेहता ने 1985 में गंगा के किनारे लगे कारखानों और शहरों से निकलने वाली गंदगी को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। तब सरकार ने गंगा एक्शन प्लान बनाया। अप्रैल 1985 में प्लान की शुरुआत हुई और बीस सालों में 1200 करोड़ खर्च हुए। गंदे और जहरीले पानी को साफ करने के लिए शहरों व कारखानों में संयंत्र लगे। इस कवायद से कुछ क्षेत्रों में हालत तो सुधरी लेकिन गंगा में गंदे पानी के गिरने को कम नहीं किया जा सका।

खामी भरी योजना


गंगा को बहाव को बढ़ाने पर कोई ध्यान नहीं दिया। ग्लेशियरों व झरनों से आने वाले पानी को कानपुर से पहले ही नहरों में निकाल लिया जाता है। जमीन का पानी गंगा की धारा बनाए रखता था। पर नंगे पहाड़ों से कट कर आई मिट्टी ने गंगा की गहराई कम कर दी, अब तो गंगा के स्रोत भी बंद हो गए।

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