आजादी के 68 साल बाद भी सिर पर पानी ढो रहीं महिलाएँ

9 Jan 2015
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मिलेनियम सिटी के आधा दर्जन गाँवों में भीषण पेयजल संकट



पेयजल समस्या का समाधान न करने पर आन्दोलन करने की दी धमकी


सूर्य की पौ फटने से पहले पीने के पानी के लिए महिलाएँ सिर पर मटका टोकनी लेकर कोसों दूर भटकती रहती हैं। बावजूद इसके भी उनकी समस्या का कोई स्थाई समाधान नहीं हो पा रहा है। समस्या के निदान के लिए ग्रामीण सन्तरी से लेकर मुख्यमन्त्री तक अपनी गुहार लगा चुके हैं। फिर भी पेयजल की विकट समस्या उनके सामने खड़ी है।

फर्रुखनगर। देश को आजाद हुए करीब 68 साल हो गए हो लेकिन आज भी मिलेनियम सिटी के नाम से विख्यात गुड़गाँव जिले के गाँव सुल्तानपुर, खेड़ा झांझरौला, फर्रुखनगर आदि दर्जनों गाँवों की ढणियों में बसे ग्रामीण पीने के पानी की बूँद-बूँद को तरस रहे हैं। सरकार भले ही मलभूत सुविधा मुहैया कराने के दावे करती हो लेकिन सच्चाई कोसों दूर है।

सूर्य की पौ फटने से पहले पीने के पानी के लिए महिलाएँ सिर पर मटका टोकनी लेकर कोसों दूर भटकती रहती हैं। बावजूद इसके भी उनकी समस्या का कोई स्थाई समाधान नहीं हो पा रहा है। समस्या के निदान के लिए ग्रामीण सन्तरी से लेकर मुख्यमन्त्री तक अपनी गुहार लगा चुके हैं। फिर भी पेयजल की विकट समस्या उनके सामने खड़ी है।

सुल्तान सिंह सैनी, रतन सिंह, विजय, भूपसिंह, देशराज, केहर सिंह, रामदास सुखबीर, श्रीपाल, ब्रह्म सिंह यादव, दिनेश यादव, अनिल यादव आदि का कहना है कि उनकी समस्या का जल्द समाधान नहीं हुआ तो वह धरना प्रदर्शन के लिए मजबूर हो सकते हैं।

ढाणी ख्वासपुर निवासी महेश यादव युवा अध्यक्ष भारतीय किसान संघ गुड़गाँव का कहना है कि ढाणियों में रहने वाले ग्रामीण पेयजल के लिए संघर्ष करते आ रहे हैं। महिलाएँ अपना कामकाज छोड़कर अल सुबह ही परिवार, पशुओं व दैनिक जीवन के उपयोग हेतु पानी लाने की जुगत में मौसम की परवाह न करते हुए सिर पर मटका टोकनी लेकर जुट जाती हैं। उनका एक ही उद्देश्य होता है कि कहीं परिवार के लिए पीने का पानी कम न पड़ जाए।

ढाणियों में पीने के पानी की पाइप लाइन डालने के लिए वह कई बार स्थानीय विधायकों व मन्त्रियों से मिले हैं लेकिन उन्हें केवल आश्वासन ही मिले हैं। सुल्तानपुर की ढाणी निवासी बाबू राम चौहान का कहना है कि उनकी ढाणी में करीब दो दर्जन से अधिक घर हैं नेता लोग चुनाव के समय वोट माँगते वक्त तो बहुत सारे वायदे करते हैं लेकिन बाद में उन वायदों की अनदेखी की जाती है।

सन्दीप चौहान का कहना है कि पानी की समस्या के समाधान के लिए वर्षों से ग्रामीण लगे हैं। लेकिन अभी तक उनकी समस्या का निदान नहीं हुआ है। नेताओं को उनकी विकट समस्या से कोई सरोकार नहीं है। वह तो मात्र चुनाव के समय ही घड़ियाली आँसू बहाकर वोट बटोरने का कार्य करते हैं। सोनू सैनी ढांणी बेसर की फर्रुखनगर का कहना है कि कहने को तो सरकार किसान व ग्रामीणों के उत्थान की बात करती है चुनाव जीतने के बाद नेता कभी खेतों में रहने वाले लोगो के बीच पहुँचकर उनसे उनका हाल नहीं पूछते कि वह किस कदर समस्याओं से संघर्ष कर रहे हैं।

उन्हें तो बस वोटों तक ही स्वार्थ सिद्धी होत है। नरेन्द्र सैनी का कहना है कि सरकार विभिन्न योजनाओं के तहत् ग्रामीणों को पेयजल मुहैया कराने के लिए भले ही प्रयासरत हो लेकिन ढाणियों में रहने वाले लोगों के लिए बिजली, सड़क, पेयजल आदि के बारे में कभी कोई योजना नहीं बनाई है। अगर कोई योजना है भी तो वह ढाणियों में रहने वाले लोगों तक नहीं पहुँच पाता है। स्वाति सैनी का कहना है कि महिलाओं के कंधे पर परिवार की अनेकों जिम्मेदारियाँ हैं वह त्याग की प्रतिमूर्ति होती हैं। वह अपने भले बुरे की परवाह किए बिना ही परिवार के सदस्यों के लिए घरेलू कार्यों के साथ-साथ पीने के पानी के लिए कई किलोमीटर दूर से पानी ला रही है।

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