आखिर 2019 में कैसे साफ होगी गंगा

6 May 2018
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गंगा जल की स्थिति यह है कि यह हरिद्वार के बाद कोलकाता तक स्नान करने लायक भी नहीं है। यद्यपि भारत सरकार के सम्बन्धित मंत्रालय का कहना है कि उनका अधिकांश समय योजनाओं को बनाने व प्रारम्भ करने में लगा है। लेकिन प्रधानमंत्री ने स्वयं झाड़ू उठाकर स्वच्छता अभियान चलाने के साथ गंगा पर दिये अपने तेज-तर्रार वक्तव्यों से गंगा सफाई का जो वातावरण बनाया था, वह अब नजर नहीं आ रहा है।

नये भारत के निर्माण में लगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब पिछला लोकसभा चुनाव जीता तो उन्होंने बनारस में कहा कि गंगा ने उन्हें यहाँ बुलाया है। लोग इसे सुनकर बहुत भावुक भी हुए और अनेक लोगों को यह आवाज किसी आकाशवाणी से कम महसूस नहीं हुई थी। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के समय गंगा संरक्षण परियोजना की खामियों को गिनाकर देश के सामने गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिये नये सपने देखे गये, जिसके फलस्वरूप नमामि गंगे परियोजना प्रारम्भ की गई।

इस परियोजना के साथ जल संसाधन मंत्रालय चलाने की जिम्मेदारी उमा भारती को दी गई थी, जिन्होंने पिछली यूपीए सरकार के सामने गंगा पर बाँधों और बैराजों का प्रबल विरोध किया था। इससे देश के पर्यावरण प्रेमियों, बाँध प्रभावितों, गंगा के प्रति आस्थावान लाखों लोगों को विश्वास होने लगा कि गंगा सचमुच अपनी पूर्व की स्थिति में लौट आएगी।

उमा भारती के ढाई साल के कार्यकाल के बाद नमामि गंगे परियोजना के लिये प्रस्तावित 20 हजार करोड़ में से 5 हजार करोड़ तक खर्च होने की सूचना जब मीडिया सामने ले आया तो राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने पूछा कि इतना खर्च होने के बाद 2500 किलोमीटर लम्बाई में कोई भी जगह बता दो, जहाँ गंगा साफ हो गई हो। इसका कारण यह भी था कि अक्टूबर, 2015 में गंगा का जल प्रवाह 31,000 क्यूसेक से घटकर 4000 क्यूसेक होने से सीवेज और औद्योगिक प्रदूषण की मार झेल रही गंगा कैसे साफ हो सकती थी।

इस दौरान उमा भारती ने कहा था कि वर्ष 2018 तक गंगा साफ हो जाएगी। उनके द्वारा गंगा सफाई का यह लक्ष्य रखने के तुरन्त बाद ही नितिन गडकरी को नमामि गंगे, जल संसाधन व नदी विकास मंत्रालय सौंपा गया। अब जल संसाधन राज्य मंत्री सत्यपाल सिंह कह रहे हैं कि 2019 तक गंगा साफ हो जाएगी।

गंगा जल की स्थिति यह है कि यह हरिद्वार के बाद कोलकाता तक स्नान करने लायक भी नहीं है। यद्यपि भारत सरकार के सम्बन्धित मंत्रालय का कहना है कि उनका अधिकांश समय योजनाओं को बनाने व प्रारम्भ करने में लगा है। लेकिन प्रधानमंत्री ने स्वयं झाड़ू उठाकर स्वच्छता अभियान चलाने के साथ गंगा पर दिये अपने तेज-तर्रार वक्तव्यों से गंगा सफाई का जो वातावरण बनाया था, वह अब नजर नहीं आ रहा है।

लोग सरकार की तरफ देख रहे हैं कि उनके बगल से बह रही गंगा कब साफ होगी? यह कार्य केवल नौकरशाहों तक सिमट गया है। सच्चाई यह है कि जिन कम्पनियों और विभागों को सफाई का जिम्मा मिला है, वे जब कभी सक्रिय होते हैं, तो उसी दिन गंगा सफाई का एक ‘इवेंट’ अखबारों की सुर्खियों में आ जाता है।

इस दौरान देशभर के गंगा प्रेमियों की भावनाओं के साथ न्यायालयों की भूमिका बहुत प्रेरणादायी रही है। इसी का उदाहरण है कि नैनीताल हाईकोर्ट की एक बेंच ने अप्रैल, 2018 के प्रथम सप्ताह में स्वतः संज्ञान लेकर कहा कि ऋषिकेश, हरिद्वार की गन्दगी सीधे गंगा में बहाई जा रही है।

कोर्ट ने रजिस्ट्रार को इस सम्बन्ध में एक जनहित याचिका मुख्य न्यायाधीश के समक्ष पेश करने को कहा है। इससे पूर्व भी इसी अदालत में 20 मार्च, 2017 के आदेश में कहा कि गंगा, हिमनद, पेड़-पौधे जीवित प्राणी हैं। अतः इनकी सुरक्षा भी मनुष्यों जैसी होनी चाहिए, जिस पर विकास का हवाला देकर उत्तराखण्ड की सरकार ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ दिया था।

एनजीटी ने गंगा पर प्रदूषण रोकने के लिये फरवरी, 2016 से पॉलीथिन समेत सभी तरह के प्लास्टिक पर प्रतिबन्ध लगाने के आदेश भी दिये थे। प्लास्टिक पर रोक के लिये आवश्यक है कि बाहर से आ रहे सामान की पैकिंग प्लास्टिक मुक्त हो। क्या यह आज की बाजारवादी व्यवस्था की सोच में बदलाव के बिना सम्भव हो सकता है?

गंगोत्री से गंगा सागर तक 57 स्थानों पर गंगा जल की गुणवत्ता को परखने के लिये निगरानी केन्द्र बने हुए हैं। इसके बावजूद हरिद्वार, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल की श्रेणी एक व दो के अन्तर्गत पड़ने वाले 50 शहरों से 2601 एमएलडी सीवर गंगा में जाता है। इसमें से केवल 1192 एमएलडी को ही ट्रीटमेंट किया जा रहा है। दूसरी ओर आँकड़े यह भी बताते हैं कि इन राज्यों में 51 सीवर ट्रीटमेंट संयंत्रों की क्षमता केवल 602 एमएलडी की है।

सीवर के अलावा भी 138 गन्दे नाले हैं, जिनसे रोज 6087 एमएलडी गन्दा पानी गंगा में प्रवाहित हो रहा है। वैसे देखा जाए, तो ये नाले अधिकांश जलस्रोतों तालाबों, झरनों, जंगलों के बीच से ही आते हैं, जो बस्तियों से गुजरने के बाद गन्दा नाला बन जाते हैं।

कहा जा रहा है कि गंगा किनारे के लगभग 5000 गाँव खुले में शौचमुक्त हो गये हैं, जिसकी पड़ताल आँकड़ों में नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर करने की आवश्यकता है। इसी तरह गंगा किनारे के शहरों में 764 कारखाने हैं, जिनमें केमिकल, चमड़ा, पल्प, शुगर, कपड़ा, धुलाई, ब्लीचिंग आदि का काम होता है। ये प्रतिदिन 1113 एमएलडी पानी का इस्तेमाल करते हैं और इसके बदले लगभग 500 एमएलडी विषैला कचरा गंगा में उड़ेलते हैं। ठोस कचरा प्रबन्धन का अभाव बना हुआ है। इसमें ऐसा कोई आदेश नहीं आया है, जिससे ऐसे उद्योगों को बन्द किया गया हो या उसे गंगा के किनारे से हटाकर दूसरी जगह लगाया गया हो।

निर्मल गंगा के नाम पर इलाहाबाद, बनारस, ऋषिकेश, हरिद्वार, कन्नौज, पटना आदि के स्नान घाटों को देखने में चकाचक किया जा सकता है। जलमार्ग बन जाएँगे परन्तु सीधे गंगा में जा रहे गन्दे नालों को साफ रखने और उद्योगों का कचरा रोकने के लिये तो समाज और उद्योगपतियों को सावधान करना होगा।

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