अलीराजपुर-एक परिचय

3 Jul 2015
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स्वास्थ्य विभाग के स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा फ्लोरोसिस बीमारी के गम्भीरता के बारे में और न ही इस बीमारी के रोकथाम के लिये स्थानीय समुदाय के साथ सामूहिक प्रयास किये जाते हैं। गरीबी के कारण लोग कैल्शियम, लौह तत्व, विटामिन सी जैसे पौष्टिक आहार युक्त भोजन का उपयोग नहीं कर सकता है। इसी गरीबी के कारण लोग फ्लोराइड युक्त जल को शुद्धिकरण यन्त्र से अपने पेयजल को शुद्ध नहीं कर पाता है। मसलन लोग पानी की बगैर जाँच किये किसी भी प्रकार के पानी पेयजल के रूप इस्तेमाल करता है। अलीराजपुर जिला पश्चिमी मध्य प्रदेश में स्थित है। इस जिले की सीमाएँ गुजरात व महाराष्ट्र राज्य की सीमाओं को छूती हैं। अलीराजपुर जिले में प्राथमिक रूप से भील, भीलाला, बारेला, मानकर, धाणक व कोटवाल जनजाति के लोगों की बहुलता है। 17 मई 2008 को जिले का गठन हुआ, जो 2,68,958 हेक्टेयर क्षेत्र में यह फैला हुआ है। जिले की कुल आबादी 7,28,677 है। यहाँ 87 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति, 4 प्रतिशत अनुसूचित जाति एवं 9 प्रतिशत अन्य जाति के लोग रहते हैं। जनजातीय लोगों की आजीविका खेती व जंगल आधारित है। प्राकृतिक सम्पदाओं से भरा पूरा यह पूरा इलाक़ा अब सूखी नदियों और वन विहीन पहाड़ों में तब्दील हो चुका है।

इलाके की नदियाँ रेतमाफिया के कारण खत्म हो रही हैं। वन सम्पदा जो कि यहाँ के आदिवासी जीवन का आधार हैं उसे यहाँ के भ्रष्ट वन अधिकारियों की मिली भगत से जंगल माफियाओं ने नष्ट कर दिया। इस प्रकार यहाँ के आदिवासियों की वनोपज आधारित आजीविका खतरे में पड़ गई और वे साहूकारों के चंगुल में फँस गए। ऐसी स्थिति में उनके लिये छोटे-छोटे आकार के खेतों से गुजारा करना अपर्याप्त है। इसलिये क्षेत्र के हजारों-हजार परिवार रोज़गार की तलाश में गुजरात राज्य में पलायन कर जाते हैं। वैसे वे रोज़गार की तलाश में अनेक जगहों पर पलायन करते हैं जिनसे इन परिवारों के बच्चे बुनियादी शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं से वंचित हो जाते हैं।

काम की जगह पर मज़दूर परिवार के छोटे बच्चों व गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण तक नहीं हो पाता है।

अधोसंरचना


1. जिले का गठन – 17 मई 2008 (झाबुआ से पृथक)
2. क्षेत्रफल - 268958 हेक्टेयर, 2165 वर्ग किमी (36 वर्ग मील)
3. जनसंख्या - 728677 (2011 के अनुसार)(जनजाति 87 प्रतिशत, अनुजाति 4 प्रतिशत , अन्य 9 प्रतिशत)
4. ग्रामीण जनसंख्या - 671596
5. शहरी जनसंख्या - 57081
6. जनसंख्या घनत्व - 229 वर्ग किमी (590 वर्ग मील)
7. विधानसभा क्षेत्र - 1. अलीराजपुर 2. जोबट
8. तहसील - 1. अलीराजपुर 2. जोबट 3.चन्द्रषशेखर आजाद नगर 4. सोण्डवा
9. विकास खण्ड - 1. आलीराजपुुर 2. सोण्डवा 3. जोबट 4. उदयगड़ 5. चन्द्र शेखर आजादनगर6. कट्ठीवाड़ा
10. नगर पालिका - 1. अलीराजपुर
11. जिला पंचायत - 1. अलीराजपुर
12. नगर पंचायत - 1. चन्द्र शेखर आजाद नगर 2. जोबट
13. जनपद पंचायत - 1. अलीरारजपुुर 2. सोण्डवा 3. जोबट 4. उदयगड़ 5. चन्द्र शेखर आजाद नगर 6. कट्ठीवाड़ा
14. ग्राम पंचायत - 288
15. ग्रामों की संख्या - 551
16. पुलिस अनुभाग - 1. अलीराजपु 2. जोबट
17. पुलिस थाना - 12
18. पुलिस चौकी - 10
19. महाविद्यालय - 1. अलीराजपुर 2. जोबट
20. स्वास्थ्य केन्द्र - जिला स्वास्थ्य केन्द्र 01 , सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र 05 , प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र 12 , उप स्वास्थ्य केन्द्र 159,

वन सम्पदा


आदिवासी एवं वन अलग-अलग विषय नहीं है, बिना जंगल के आदिवासी नहीं और बिना आदिवासी के बिला जंगल अधूरे हैं। आदिवासी समुदाय आज भी अपनी सीमाओं लगे नए पौधों व नई कोमल घास जो बारिश में उगे हैं कि पूजा से पहले उसके इस्तेमाल पर प्रतिबन्ध लगाता है। यहाँ तक कि घर के मवेशी नए पत्ते व नई घास का चारा खाकर आते हैं उनके गोबर का इस्तेमाल भी नहीं कर सकते हैं।

नए पौधों व नई घास की पूजा को ‘निल्फी’ ‘दिवासा’ के नाम से जाना जाता है। इसे त्यौहार के रूप में मनाते है। यह पूजा आदिवासी समाज के रीति रीवाज का हिस्सा है।

हमारे देश में न्यूनतम समय में अधिकतम दोहन करने के लिये अंग्रजों नें ‘भारतीय वन अधिनियम 1927’ बनाया था। औपनिवेशिक वन नीति का व्यापारिक एवं औद्योगिक झुकाव आजाद भारत में भी यथावत रखने के कारण बड़े पैमाने पर वन एवं वन सम्पदा नष्ट होती गई।

खनिज सम्पदा


जिले में डोलोमाइट के पत्थर बहुत ही ज्यादा मात्रा में है। इन पत्थरों को खदानों से निकाला जाता है। इन पत्थरों को पीसने के कारखाने भी मौजूद है।

जल संसाधन


अलीराजपुर जिले की सबसे बड़ी नदी नर्मदा है। नर्मदा नदी का उद्गम स्थल मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में है। समुद्री तट से 1057 मीटर की ऊँचाई से शहडोल जिले अमरकंटक से निकली इसकी कुल लम्बाई 1312 किमी है। यह आलीराजपुर जिले होती हुई भड़ूच (गुजरात) में मिलती है।

जनजातीय लोग


जिले की आबादी के 87 प्रतिशत लोग जनजातीय हैं। भील, भिलाला, मानकर, धाणक उपजातियाँ हैं। जनजातीय लोग दूर दराज पहाड़ों में बसे हैं। इनकी बसाहट भिन्न है। वे अपने-अपने खेतों पर मकान बनाकर रहते है जो पूरे गाँव के क्षेत्रफल में दूर-दूर तक फैले हुए होते हैं। जिसके कारण सरकार बिजली, पानी जैसी बुनियादी सुविधा उपलब्ध नहीं करवा पाती।

रीति रिवाज


यहाँ के जनजातीय लोगों का रीति रिवाज और धार्मिक मान्यता का किसी धर्म से मेल नहीं है। मूर्ति पूजा का चलन नहीं हैं। वे पहाड़, झरना और बाबादेव की पूजा करते हैं।

फसलें


जुवार, बाजरा, मक्का, कुलथिया आदि खरीफ एवं गेहूँ, मक्का रबि की यहाँ की मुख्य फसलें हैं।

सामूहिकता


आदिवासी समाज में ढास और पड़जिया की बहुत ही अच्छी परम्परा है। ढास एवं पड़जिया के दौरान सारे गाँव के लोग मिलकर किसी भी व्यक्ति के बड़े-से-बड़े काम को (जैसे मकान बनाना, खेत से फसल एकत्र करना आदि) बगैर पैसा लिये कर देते हैं। बदले में सिर्फ खाना खिलाना पड़ता है। आदिवासी समाज की यह परम्परा एक मिसाल है।

जाति प्रथा


जनजातीय लोगों में भी जाति के आधार पर ऊँच-नीच व छुआ-छूत की मान्यता है। भील, मानकर, धाणक, कोटवाल, चमार, मेंहतर जाति के लोगों को निचा मानते है। वे इन जाति के लोगों के हाथों से बना खाना नहीं खाते। भिलाला व पटलिया जाति के लोग अपने को ऊँचा मानते हैं।

कुप्रथा


समाज में किसी भी व्यक्ति की मौत होती है तो उनकी धारणा है कि इसे डाकण ने खा लिया। वे मृत्यु का कारण बीमारी व प्राकृतिक न मानते हुए उसे डाकण के मत्थे मढ़ देते हैं। कहते हैं कि डाकण ने इसका कलेजा खा लिया है। किसी भी प्रकार की बीमारी को वह डाकण की करतूत मानते है। यहाँ तक की अपने पालतू जानवरों की मृत्यु का कारण भी डाकण को मानते हैं।

डाकण कौन है? वे गाँव की किसी भी बुजुर्ग महिला या विचित्र महिला को डाकण मानते हैं। जिस महिला पर डाकण की शंका होती है उसकी निर्मम हत्या तक कर दी जाती है।

पलायन


पलायन इस जिले की मुख्य समस्या है। गाँव में रोज़गार नहीं मिलने के कारण पूरे जिले के आदिवासी लोग पास के गुजरात राज्य में पलायन कर जाते हैं। गाँव में आदिवासी लोगों के पास आजीविका के छोटे-छोटे खेत है। इन खेतों से वर्षभर के लिये अपने परिवार का भोजन खर्च नहीं निकल पाता है। इन कारणों से पूरे जिले के आदिवासी लोग अपने परिवार सहित छोटे-छोटे बच्चों के साथ आजीविका के लिये बड़े शहरों की ओर कूच कर जाते हैं। पलायन के कारण बच्चे शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। महात्मा गाँधी रोज़गार गारंटी योजना भी इन परिवारों को रोक नहीं पाई है।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत लोगों को मिलने वाला सस्ते अनाज की कालाबाजारी हो जाती है। जिससे लोगों को कम कीमत में अनाज नहीं मिल पाता है।

गाँव में भयानक गरीबी है। गरीब परिवार सन्तुलित आहार नहीं खा पाता है।

एकीकृत महिला एवं बाल विकास परियोजना द्वारा 6 माह से 3 वर्ष के बच्चे, गर्भवती एवं धात्री महिलाओं को पूरक पोषण आहार (बाल आहार) बालवाड़ी के माध्यम से वितरित किया जाता है। इस पूरक पोषण आहार का बालवाड़ी व आँगनवाड़ी केन्द्रों में वितरण नहीं हो रहा है। शालाओं में मिलने वाला मध्यान्ह भोजन भी नहीं मिल पाता है।

उपरोक्त इन कारणों से जिले में कुपोषण की संख्या अत्यधिक है। एकीकृत महिला एवं बाल विकास परियोजना के आँकड़ों के मुताबिक जिले में लगभग 4500 से अधिक बच्चे कुपोषित है।

फ्लोरोसिस रोकथाम के सरकारी प्रयास राष्ट्रीय एवं राज्यव्यापी कार्यक्रम के तहत 34 ग्रामों में सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराना, फ्लोरोसिस नियन्त्रण व लोगों के स्वास्थ्य सुधार के लिये एक अभियान चलाने के लिये एक योजना तैयार की गई। सन् 1993-1994 को शहर के कुछ शिक्षित लोगों को योजना के बारे में पता चला। स्थानीय स्तर पर इस अभियान की जानकारी गिनती के लोगों तक सीमित रही।

1. लोक स्वास्थ्य यान्त्रिकी विभाग (फ्लोराइड नियन्त्रण) सन् 1998 में झाबुआ जिले में फ्लोराइड नियन्त्रण के लिये एक डिवीजन की स्थापना की गई। जिसका कार्यालय अलीराजपुर तहसील मुख्यालय में बनाया गया। तब अलीराजपुर झाबुआ जिले की तहसील था। फ्लोराइड रहित पानी मुहैया कराने के लिये अलीराजपुर ब्लॉक के 34 ग्रामों को शुद्ध पेयजल वितरण के लिये परियोजना की शुरुआत की गई। परियोजना के तहत अलीराजपुर से 40 किलो मीटर दूर ग्राम बेहड़वा में हथिनी नदी से पाइप लाइन के जरिए प्रभावित गाँवों में पेयजल वितरण करने की परियोजना शुरू की गई। दो फिल्टर प्लांट, पहला बेहड़वा एवं दूसरा खरपई में बनाया गया है। पाणी में फ्लोराइड की मात्रा की जाँच के लिये एक लेबोरेटरी है। इस लैब से आज तक एक भी गाँव से पानी का सैम्पल लेकर जाँच नहीं हो पाई है।

शासन की अदूरदर्शिता के कारण इस महत्त्वाकांक्षी परियोजना का लाभ प्रभावित आदिवासी परिवारों को नहीं मिल पाया। ग्रामीण आदिवासियों की असंगठित आवाज शासन प्रशासन के नुमाइन्दों द्वारा अनसुनी कर दी जाती है।

सभी प्रभावित गाँवों में पानी की सप्लाई नहीं हो रही है। स्टेट हाईवे नम्बर 26 पर ग्राम नानपुर ब्लाक मुख्यालय पर पानी सप्लाई की जा रही है। इसी हाईवे पर ग्राम फाटा के पटेल फलिया की पाँच टंकियो में दो दिनों के अन्तराल में पानी का वितरण हो रहा है। इसी गाँव में भयड़िया फलिया, चैंगड़ फलिया, मसाणिया फलिया एवं निंगवाल फलिया में पानी का वितरण नहीं हो रहा है। ग्राम बेगड़ी में लगभग 5000 लीटर की क्षमता वाली एक पानी की टंकी निर्माण आस-पास के प्रभावित गाँव में पेयजल वितरण के लिये बनाई गई है, लेकिन उस टंकी में आज तक पानी नहीं पहुँचा है।

सरकारी आँकड़ों के अनुसार 34 गाँव फ्लोराइड प्रभावितों की सूची में शामिल हैं। जिले के कट्ठीवाडा, चन्द्र शेखर आजाद नगर (भाबरा) एवं जोबट ब्लाक के कई सारे गाँवों के पानी में फ्लोराइड की मात्रा मौजुद है। इन गाँवों में शासकीय रिकार्ड में अभी भी पानी सप्लाई होना बताया गया है। 34 ग्रामों में समूह नल जल प्रदाय योजना के संचालन संधारण कार्य करने के लिये विभाग में दो निजी वाहन टाटा 407 एवं पिकअप अटैच किये गए हैं। इन 34 गाँवों में से नानपुर गाँव में ही पानी का सप्लाई हो रहा है। बाकी किसी एक भी गाँव में पीने का पानी नहीं पहुँच रहा है।

सन् 2009 में इस लोक स्वास्थ्य यान्त्रिकी फ्लोरोसिस नियन्त्रण अनुभाग को खत्म कर दिया गया। वर्तमान लोक स्वास्थ्य यान्त्रिकी विभाग जिला इस कार्य को संचालित कर रहा है। जिले में लोक स्वास्थ्य यान्त्रिकी विभाग तीन अनुभागों में विभाजित है। अलीराजपुर, जोबट एवं चन्द्रशेखर आजाद नगर (भाबरा) के रूप में विभाजित है।

जिले में लोक स्वास्थ्य यान्त्रिकी विभाग ने फ्लोरोसिस बीमारी की रोकथाम के लिये स्थानीय समुदाय के साथ अभियान के रूप में नहीं चलाया जा रहा है। राज्यव्यापी अभियान भी नहीं चल रहा है। युक्त पानी के शुद्धीकरण के लिये कोई भी कार्यक्रम नहीं चलाया गया। फ्लोराइड प्रभावित इन गाँवों में आज भी शासकीय हैण्डपम्पों को बन्द नहीं किया गया है।

2. स्वास्थ्य विभाग


जिले में कार्यरत जिला स्वास्थ्य केन्द्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र एवं उप-स्वास्थ्य केन्द्र द्वारा फ्लोरोसिस नियन्त्रण व लोगों के स्वास्थ्य सुधार के लिये समुदाय के साथ किसी भी प्रकार का कार्य नहीं किया गया। जिला स्वास्थ्य केन्द्र अलीराजपुर के सिलिकोसिस एवं फ्लोरोसिस बीमारी के प्रभारी डाक्टर से मुलाकात करने पर उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य विभाग से फ्लोरोसिस की रोकथाम के लिये कोई भी कार्य नहीं किया जा रहा है।

स्वास्थ्य विभाग के पास फ्लोराइड से प्रभावित गाँवों की अपनी सूची नहीं है और न ही प्रभावितों का सर्वेक्षण का आँकड़ा है। जिला अस्पताल ने एक प्रस्ताव तैयार कर सरकार को भेजा है। जिसमें फ्लोरोसिस की रोकथाम के लिये अलग से काम करने वाले कर्मचारियों को नियुक्ति प्रस्तावित है एवं पानी का सैम्पल टेस्ट के लिये प्रयोगशाला के स्थापना की माँग की गई है। अभी तक प्रस्ताव पास नहीं हुआ है।

जिले की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की वास्तविकता


क्रमांक

पद का नाम

स्वीकृत पद

कार्यरत

रिक्त

1.

डॉक्टर्स

51

36

15

2.

प्रथम श्रेणी डाक्टर

50

07

43

3.

ए.एन.एम. नियमित

156

154

02

4.

ए.एन.एम. संविदा

97

97

00

5.

कंपाउडर फर्मसिस्ट

28

05

23

6.

ड्रेसर

28

05

23

 

3. गैर सरकारी संगठन


कल्पान्तर शिक्षण एवं अनुसन्धान केन्द्र ने नवागत जिले के कलेक्टर श्री चन्द्रशेखर बोरकर को अवगत कराया गया कि लोक स्वास्थ्य यान्त्रिकी विभाग द्वारा प्रभावित गाँवों में सुचारू रूप से पानी का वितरण करने बीमारी के बचाव के लिये जन जागृति चलाए जाने, स्वास्थ्य विभाग को संवेदनशील करने की जरूरत के बारे में चर्चा की गई थी। जिला कलेक्टर ने लोक स्वास्थ्य यान्त्रिकी विभाग को गाँव में पोस्टर, पर्चे वितरण करने के निर्देश दिए थे।

इसके अलावा किसी भी गैर सरकारी संगठन ने प्रभावित गाँवों में शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने, फ्लोरोसिस नियन्त्रण के लिये, एवं लोगों के स्वास्थ्य सुधार के सतत कार्य नहीं किया गया।

बीमारी के बारे में जानकारी का अभाव


प्रभावित अधिकतर लोगों को यह नहीं पता है कि फ्लोराइड क्या है? फ्लोराइड हमारे शरीर में कैसे पहुँचता है? हमारे शरीर के किन अंगों को यह नुकसान पहुँचाते हैं? या फ्लोराइड से कौन सी बीमारी होती है? उन्हें यह भी पता नहीं है कि जिन जलस्रोतों का वे पानी पीने के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं उसका पानी पीने योग्य नहीं है। यह पानी हमारे स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। हमारे जलस्रोतों में फ्लोराइड की मात्रा अधिक है।

गाँवों में अशिक्षा के कारण लोग फ्लोराइड के घातक असर के बारे में अनभिज्ञ हैं। ग्रामीण अशिक्षित परिवार लोक यान्त्रिकी विभाग व स्वास्थ्य विभाग से पानी की गुणवत्ता के बारे में पूछताछ तक नहीं करते। लोक यान्त्रिकी विभाग एवं स्वास्थ्य विभाग द्वारा पानी की गुणवत्ता के बारे में लोगों को नहीं बताया जाता है। गाँव में अशिक्षा के कारण जलजनित बीमारी के शिकार हो जाते हैं। जानकारी का अभाव है।

दाँत पीले होने का कारण लोगों का मत है यह जेनेटिक है। जिन लोगों के दाँत पीले हैं उन्हें लोग केसरिया दाँत कहते हैं।

लोक यान्त्रिकी विभाग एवं स्वास्थ्य विभाग द्वारा पानी की गुणवत्ता के बारे में किसी भी प्रकार की जानकारी लोगों तक नहीं पहुँचाई जाती है। स्वास्थ्य विभाग के स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा फ्लोरोसिस बीमारी के गम्भीरता के बारे में और न ही इस बीमारी के रोकथाम के लिये स्थानीय समुदाय के साथ सामूहिक प्रयास किये जाते हैं।

गरीबी के कारण लोग कैल्शियम, लौह तत्व, विटामिन सी जैसे पौष्टिक आहार युक्त भोजन का उपयोग नहीं कर सकता है। इसी गरीबी के कारण लोग फ्लोराइड युक्त जल को शुद्धिकरण यन्त्र से अपने पेयजल को शुद्ध नहीं कर पाता है। मसलन लोग पानी की बगैर जाँच किये किसी भी प्रकार के पानी पेयजल के रूप इस्तेमाल करता है। जानकारी के अभाव में लोग नहीं जानते कि किन चीजों को खाने से परहेज रखना चाहिए।

युवा वर्ग का मानना है हमारे दाँत पीले होने के कारण शादी में दिक्कतें होती हैं। इसलिये गाँव के युवा अपने दाँतों का पीलापन दूर करने के लिये दाँतों के डाक्टर का सहारा लेते है। लेकिन दाँत के डाक्टर भी इस समस्या से छुटकारा नहीं दिला पा रहे हैं। गाँव के अधिकतर युवा वर्ग की राय है कि इस समस्या से हमें निजात चाहिए। वे चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ी को फ्लोरोसिस से बचाना है।

लोगों की इस बीमारी के साथ कई सारे पहलू एक दूसरे से जुड़े हुए है। दाँतों के फ्लारोसिस से प्रभावित युवा लोग इस कुरूपता से छुटकारा पाना चाहते हैं। लेकिन उपरोक्त कारणों का समाधान किये बगैर लोग इस बीमारी से छुटकारा नहीं पा सकते है। बचने के उपायों के बारे में सोच रहे है लेकिन कुछ कर पाने स्थिति में नहीं है?

स्कूल का दौरा


फ्लोरोसिस से सबसे ज्यादा प्रभावित ग्राम इस्डू की प्राथमिकशाला का दौरा किया गया। वहाँ पर बच्चों में दाँतो के फ्लोरोसिस का प्रतिशत ज्यादा पाया गया। प्राथमिकशाला के आँगन में लगे हैण्डपम्प के पानी का सैम्पल टेस्ट किया जिसमें बहुत अधिक मात्रा में फ्लोराइड पाया गया। इसी हैण्डपम्प से पीने का पानी मोहल्ले के लोग भी इस्तेमाल करते हैं। इस फलिये कि युवा लड़कियों के उनके दाँतों में पीलापन मौजूद पाया गया है।

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