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अलवर

अलवर भारत के राजस्थान राज्य का एक मुख्य नगर तथा जिला है। यह नगर क्वार्ट्‌स तथा स्लेट से बनी हुई पहाड़ी के नीचे, दिल्ली से ८० मील दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। पहले अलवर एक देशी राज्य था और अलवर नगर उसकी राजधानी थी, परंतु १९४७ में भारत के स्वतंत्र होने के पश्चात्‌ जब छोटी छोटी रियासतें भारत सरकार में सम्मिलित हो गई, राज्य पुनर्गठन के अनुसार, अलवर राजस्थान राज्य में मिला दिया गया और तब से इस नगर का राजधानी रहने का श्रेय चला गया। अलवर की स्थिति अ.२७ ३४उ. तथा दे.७६ ३६ पू. पर है। अलवर राज्य का क्षेत्रफल राजस्थान में मिलने के पूर्व ३,१५८ वर्ग मील था और जनसंख्या ८,२३,०५५ (१९४१) थी। अलवर जिले का क्षेत्रफल ८,३८२ वर्ग कि.मी. है।

अलवर नाम की उत्पत्ति के बारे में मतभेद है। कुछ लोगों का कहना है कि इसके पूर्व नाम आलपुर, अर्थात्‌ सुदृढ़ नगरी, से वर्तमान नाम अलवर आया; कुछ औरों के विचार से इस नाम का मूल अरवलपुर अर्थात्‌ अरावली पर्वत का शहर है, क्योंकि अलवर की पहाड़ियाँ अरावली पर्वतमाला का ही एक भाग हैं। वर्तमान समय में कुछ विद्वानों के मत से अलवर का नाम सालवास जाति के लोगों के नाम से निकला जो यहाँ पहले पहल बसे थे और इसका पुराना नाम सालवायरा था, जिससे सालवर, हलवर और फिर अलवर नाम प्रसिद्ध हुआ। राजपूत वीर प्रतापसिंह ने इस राज्य की स्थापना की (सन्‌ १७४०-९१) और बख्तावरसिंह को इन्होंने गोद लिया। बख्तावरसिंह के समय में इस नगर की खूब उन्नति हुई। बाद में अंग्रेजों के साथ हाथ मिलाकर मराठों के साथ इन्होंने लड़ाई की तथा १८०३ ई. में अंग्रेजों से संधि की। १८९२ ई. में १० साल की अवस्था में महाराजा जयसिंह सिंहासन पर बैठे तथा उन्होंने १९२३ में लंदन के इंपीरियल कान्फरेंस में भारत का प्रतिनिधित्व किया। अंग्रेजों के सिक्के को अलवर राज ने सर्वप्रथम मान लिया था। भारत के स्वतंत्र होने के पूर्व अंग्रेजों की पदातिक तथा अश्वारोही सेना का कुछ भाग यहाँ रहता था।

अलवर नगरी एक घाटी के पास करीब १,००० फुट की ऊँचाई पर स्थित है। पुराने जमाने की लड़ाई के समय यह बड़ी ही सुरक्षित थी। इसके एक ओर अखंड पहाड़ी है ही, अन्य ओर सुदृढ़ भीत, प्रशस्त खाई तथा एक गहरे नाले द्वारा घिरी हुई है। ऊँचाई पर स्थित इसके किले का दृश्य एक मुकुट के समान प्रतीत होता है। शहर में प्रवेश के लिए पांच तोरण हैं तथा भीतर मनोरम राजभवन, मंदिर और समाधि आदि बनी हैं।

राज्य की अधिकतम लंबाई उत्तर से दक्षिण की ओर लगभग ८० मील तथा चौड़ाई पूरब से पश्चिम की ओर ६० मील है। इसका कुल क्षेत्रफल ३,१५८ वर्ग मील है। इस राज्य के पूर्वी भाग में खुला मैदान है जो खेती के लिए उपयुक्त है। अरावली पर्वतमाला के कुछ अंश पश्चिम सीमा पर हैं। इनकी लंबाई लगभग १२ से २० मील है। ये पथरीली सीधी पर्वतमालाएँ समांतर रूप से फैली हुई हैं तथा स्थान-स्थान पर इनकी ऊँचाई २,२०० फुट तक चली गई है। दो महत्वपूर्ण नदियाँ साभी तथा रूपारेल इसी के पास से बहती हैं। रूपारेल नदी पर महाराव राजा बन्नीसिंह ने १८४४ ई.में एक बांध बनवाया जिस कारण यहाँ एक सुदंर झील बन गई हैं। इसे सीली सेढ़ झील कहते हैं। यह अलवर के दक्षिण पश्चिम में लगभग नौ मील की दूरी पर स्थित है। इससे दो नहरें सिंचाई के लिए निकाली गई हैं।

विशेष दर्शनीय स्थानों में १९वीं शताब्दी का बना राजा बन्नीसिंह का राजमहल, १३९३ की बनी तारंग सुलतान की दर्गाह (जो कुछ लोगों के विचार से फीरोजशाह तुगलक का भाई था और कुछ लोगों के विचार से नाहर खां मेवाती का पौत्र था), फतेजंग की दर्गाह, जिसपर अभी भी हिदुओं की कलाओं का निदर्शन मिलता है। ओर महाराव राजा बख्तावर सिंह का समृतिस्तंभ आदि सुविख्यात है। इनके अतिरिक्त कई मस्जिदें भी हैं जिनमें दैरा की मस्जिद विशेष महत्वपूर्ण है। यह १५७९ ई. में इस रास्ते से अकबर के गुजरते समय बनी थी। आधुनिक समय में बना लेडी डफरिन का महिला अस्पताल (सन्‌ १८८९) भी दर्शनीय है। शहर के उत्तर-पश्चिम में नगर की अपेक्षा लगभग १,००० फुट अधिक ऊँचाई पर निकुंभ राजपूतों का बना किला है जो खानजादे का अधिकार होने के पूर्व यहाँ राज्य करते थे। इनकी दीवारें पहड़ों के ऊपर उपत्यकाओं में होती हुई लगभग दो मील तक फैली हैं। शहर के बाहर दो और दर्शनीय महल हैं, एक बन्नीविलास प्रासाद और दूसरा लैंसडाउन कोठी।

अलवर इस समय पर्याप्त उन्नतिशील नगर है। यहाँ पर उच्च शिक्षालय, अस्पताल, महिला विद्यालय आदि हैं। महारानी विक्टोरिया की हीरक जयंती के अवसर पर राजाओं के बच्चों के पढ़ने के लिए एक विशिष्ट विद्यालय खोला गया। अलवर के निजी उद्योगों में रुई ओटना, कालीन बनाना, कंबल बनाना अदि कुछ छोटे मोटे गृहउद्योगों के अतिरिक्त कोई बड़ा उद्योग नहीं है। (वि.मु.)

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