आणविक अंकित बहुलक एवं कृषि विज्ञान में इसके अनुप्रयोग - एक समीक्षा (Molecular imprinted polymer and its applications in Agriculture Science : a review)


सारांश


तृणनाशक के अत्यधिक उपयोग के कारण पर्यावरण के प्रदूषित होने की गम्भीर समस्या उत्पन्न हो रही है एवं इसका दुष्प्रभाव मिट्टी, पानी, हवा के साथ-साथ मानव के स्वास्थ्य के लिये गम्भीर समस्या बन चुका है। अतः इसकी जाँच के लिये आसान, शीघ्र एवं कम लागत की तकनीक का पता लगाने के लिये शोधकर्ताओं द्वारा कार्य प्रारम्भ किया जा चुका है। आणविक अंकित बहुलक, जो कि एक कृत्रिम सामग्री है, इन परिस्थितियों में तृणनाशक की जाँच के लिये बहुत उपयोगी है यह तकनीक पर्यावरण वैज्ञानिकों, रसायनविदों, भेषजवैज्ञानी व कृषि-खाद्य उद्योग से जुड़े कर्मियों के लिये विभाजकों के विश्लेषण, परिमार्जन, पूर्णसांद्रण हेतु अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इस समीक्षा पत्र में आणविक अंकित बहुलक को विशेष रूप से तृणनाशक की जाँच के लिये कैसे बनाया जा सके एवं कैसे उसका उपयोग किया जाये। के सन्दर्भ में उल्लेख किया गया है।

Abstract: Contamination of environment due to indiscriminate use of herbicides poses severe risks to soil, water and air as well as human health. Therefore, need of easy, rapid and of low cost detection methods triggered the researcher to find out new technology. Molecularly imprinted polymers (MIPs), the synthetic materials are very useful in these circumstances. It offers several advantages to the environmental scientist, chemist, pharmaceutical and agro food industry for analysis, censoring, extraction or preconcentration of analytes. The high toxicity of herbicides and their large use in modern agriculture practices has increased public concerns. In this review paper, imprinting and detection of herbicide, the recognition and transport properties of molecularly imprinted polymer (MIP) membranes prepared for herbicides such as Isoproturon and 2,4-D in particular have been discussed.

1. परिचय- आणविक अंकित बहुलक (एम.आई.पी.) एक विशेष प्रकार की कृत्रिम सामग्री होती है। जिनके पास विशेष लक्ष्य प्रजातियों को निश्चयात्मकता के साथ वाह्य करने का गुण होता है। इस क्षमता के साथ एम.आई.पी. के पास केवल लक्ष्य प्रजाति के साथ बन्ध बनाकर उनके विश्लेषण में उपयोग किया जा सकता है। इन विशेष लक्षणों के कारण एम.आई.पी. के पास यह क्षमता होती है कि वह लक्ष्य अणुओं के साथ परस्पर क्रिया करके एवं इनके साथ बन्ध बनाकर, इनकी उपस्थिति की जाँच जटिल विलयन मैट्रिक्स जैसे कि जैविक तरल पदार्थ अपशिष्ट या अभिक्रिया मिश्रण से किया जा सकता है। वैज्ञानिक साहित्य में एम.आई.पी. का विस्तार से उनके प्रयोग का उल्लेख विभिन्न क्षेत्रों जैसे की प्रतिरोधक क्षमता, उत्प्रेरक, वर्णलेखन एवं संवेदक उपकरणों में किया गया है।

प्रायः तृणनाशक भोज्य पदार्थों, मिट्टी एवं पानी में बहुत कम सान्द्रता (नैनोग्राम/ग्राम) के स्तर पर अत्यधिक विभिन्न मध्यवर्ती, जटिल संरचना के रूप में पाये जाते हैं। इसलिये उनका तेजी से पता लगाने और निगरानी करने से प्रतिकूल प्रभाव नहीं हो सके, इसकी आवश्यकता है। तृणनाशक का पता लगाने में एम.आई.पी. का प्रयोग प्रतिदीप्ति तकनीकी द्वारा भी किया गया है। इनके द्वारा विभिन्न तृणनाशकों के संश्लेषण कर इनका जाँच किया गया है। एम.आई.पी. द्वारा पैराथियान के जाँच के लिये संवेदक का निर्माण किया गया है एम.आई.पी. का उपयोग आइसोप्रोट्यूरॉन एवं 2,4- डी-जैसे तृणनाशक के तेजी से पता लगाने के लिये इलेक्ट्रो संवदकों के रूप में एम.आई.पी. का संश्लेषण करने की तकनीक का उपयोग करके किया गया है।

2. सामग्री एवं विधि- एम.आई.पी. तैयार करने की विधि

आणविक अंकित की प्रक्रिया को सहसंयोजक अंकण विधि (पूर्व संगठित दृष्टि कोण), गौर सहसंयोजक अंकण विधि (आत्म नियोजित दृष्टिकोण) और अर्ध सहसंयोजक अंकण विधियों द्वारा किया जाता है। एम.आई.पी. बनाने के मूल सिद्धांतों का वर्णन चित्र सं.-1 में किया गया है।

एम.आई.पी. के संश्लेषण में उपस्थित सिद्धांतों का योजनाबद्ध चित्रण।सहसंयोजक बन्ध (पूर्व संगठित दृष्टिकोण)- एम.आई.पी. के सहसंयोजक दृष्टिकोण द्वारा संश्लेषण में पहले टेम्पलेट्स कार्यात्मक एवं मोनोमर के साथ अभिक्रिया कर क्रियात्मक मोनोमर एवं टेम्पलेट्स यौगिक का निर्माण होता है। इसके बाद इस यौगिक को विलायक में मिलाया जाता है। वर्तमान समय में इस विधि का उपयोग बोरोनेट एस्टर, शिफबेस, किटाल और एसिटॉल जैसे यौगिकों का निर्माण संघनन अभिक्रिया द्वारा होता है।

अ- सहसंयोजक बन्ध- इस विधि के अन्तर्गत एम.आई.पी. के निर्माण हेतु कॉम्पेल्क्सन टेम्पलेट, क्रियात्मक मोनोमर और क्रॉस लिंकर को उपयुक्त विलायक मैट्रिक्स में मिलाकर प्राप्त किया जाता है। जिसमें क्रियात्मक मोनोमर टेम्पलेट के साथ हाइड्रोजन बन्ध बनकर जुड़ता है। गैर सहसंयोजक बन्ध, सहसंयोजक बन्ध की तुलना में कमजोर होता है। लेकिन रासायनिक दृष्टि से गैर सहसंयोजक बन्ध द्वारा आणविक अंकण, सहसंयोजक बन्ध की तुलना में आसान होता है।

शुष्क प्रवास्था इनवर्जन पद्धति- योशीकाबा व उनके सहयोगियों ने पाली स्टाइरिन रेजिन का उपयोग करके पेप्टाइड पहचान के साथ एम.आई.पी. का निर्माण किया।

आर्द्र प्रवास्था इनवर्जन पद्धति- आणविक मान्यता हेतु बंधीय किनारों की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। सुप्रामॉल्युकुलर मेजवान। अतिथि रसायन शास्त्र में अविधि अणु मेजवान के संरचना में फिट बैठता है। अतः इसके अनुसार मेजवान में इस प्रकार की एक आन्तरिक गुहा बनाता है और टेम्पलेट मेजवान के गुहा में हाइड्रोजन बन्ध, बन्ध फिक्सेशन द्वारा फिट होता है। एम.आई.पी. के निर्माण में- विलायक की भूमिका अति महत्त्वपूर्ण होती है। विलायक, बहुलक के आकृति विज्ञान को तो प्रभावित करता ही है, इसके साथ-साथ विलायक एम.आई.पी. की ताकत को भी प्रभावित करता है।

3. एम.आई.पी. के उपयोग- एम.आई.पी. का उपयोग कीटनाशकों को निकालने, संवेदक के रूप में, अन्तःस्रावी ग्रन्थियों को नुकसान पहुँचाने वाले अणुओं की पहचान, रासायनिक अभिक्रिया में उत्प्रेरक, एवं क्रोमेटोग्राफी आदि में किया जाता है। तृणनाशक का पता लगाने के लिये एम.आई.पी. का प्रयोग प्रतिदीप्ति तकनीकी के द्वारा विभिन्न आर्गेनोफॉस्फेट कीटनाशकों को Eu(III)-पिरिडीन-2,6-डाईकार्बाक्सीलिक एसिड को प्रोब के रूप में उपयोग करके किया गया है। अलग-अलग कीटनाशक जैसे- क्लोरोफेनविन्फों, मैलाथियान, एनिन्फो और पैराक्ज्न इथाइल का Eu(III)-पिरिडीन 2,6-डाई कार्वोक्सीलिक एसिड के साथ 1ः2 के अनुपात में लेकर प्रतिदीप्ति की तीव्रता कीटनाशकों की सान्द्रता के बढ़ने से घटता है। इस विधि से ऑर्गेनो फॉस्फेट कीटनशक जो कि जल, नदी, खनिज और अपश्ष्टि में उपस्थित होते हैं की जाँच आसानी एवं कम लागत में किया जा सकता है। आइसोप्रोट्यूरॉन एवं 2,4-डी तृणनाशक को पता लगाने के लिये एम.आई.पी. का निर्माण किया गया है, और वैद्युत संवेदक द्वारा इनका पता लगाया गया है। इस तकनीकी के द्वारा इन तृणनाशक का 10-3m से 10-6m सान्द्रता तक जाँच किया गया है। जिसे चित्र सं.-2 एवं 3 में दर्शाया गया है।

आइसोप्रोट्यूरॉन अंकित आण्विक बहुलक में संवेदक के ऊपर विद्युत आवृत्ति का प्रभाव।2,4-डी अंकित आण्विक बहुलक में संवेदक के ऊपर विद्युत आवृत्ति का प्रभाव। इसलिये उपरोक्त अध्ययन से यह स्पष्ट है कि तृणनाशक की सान्द्रता को पता लगाने में एम.आई.पी. का उपयोग बहुत ही लाभदायक है।

निष्कर्ष


एम.आई.पी. एक अलग प्रकार का बहुलक होता है जो विशिष्ट टेम्पलेट के साथ-साथ बन्ध बनाकर चयनात्मक और सुदृढ़ भी होता है इसलिये इनका उपयोग अलग-अलग रसायनों की जाँच में उपयोग कर सकते हैं, जैसे- कृषि एवं खाद्य प्रौद्योगिकी। इस समीक्षा पत्र में तृणनाशक की जाँच हेतु एम.आई.पी. के उपयोग द्वारा इनका संक्षेप में वर्णन किया गया है।

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लेखक परिचय


आर.के. प्रजापति
रसायन विभाग, डी.जे. कॉलेज, बड़ौत बागपत-250611, उ.प्र. भारत, ayub67@rediffmail.com

एम.ए. अन्सारी
रसायन विज्ञान विभाग, बिपिन बिहारी कॉलेज, झांसी-284001, उ.प्र. भारत, rameshkrpr@yahoo.com

प्राप्त तिथि-19.07.2016 स्वीकृत तिथि-12.09.2016

R.K. Prajapati
Department of Chemistry, D.J. College, Baraut, Baghpat-250611, U.P., India
ayub67@rediffmail.com

M.A. Ansari
Department of Chemistry, Bipin Bihari P.G. College, Jhansi-284001, U.P., India
rameshkrpr@yahoo.com

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