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आंकड़ों में सिमट कर रह गई सारी कवायद

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बंगाल में हुगली बनकर प्रवेश करने वाली गंगा, खा़ड़ी के पास डेल्टा क्षेत्र में वन माफिया हावी है और पारिस्थिकी असंतुलन के ढेर सारे संकेत भविष्य के किसी ब़ड़े खतरे की चेतावनी दे रहे हैं। सरकारी स्तर पर डेल्टा क्षेत्र के संकट को अभी तक अनदेखा किया जाता रहा है। कोलकाता और आसपास के उपनगरों से लगभग 5270 लाख लीटर कचरा रोजाना गंगा की गोद में बहाया जा रहा है, जिसमें से 80 फीसदी कचरे की सफाई भी नहीं हो पा रही। गंगा की सेहत दुरुस्त करने के लिए सीधे प्रधानमंत्री की निगरानी में नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी (एनजीआरबीए) का गठन किया गया है, जिससे बंगाल को 539 करो़ड़ रुपए मिले हैं। इसके अलावा आठ सौ करो़ड़ रुपए और मंजूर किए गए हैं।

बंगाल में कांग्रेस कोटे से कैबिनेट (सिंचाई व जल संसाधन विकास) मंत्री डॉ. मानस भुइयां के वाममोर्चा की पिछली सरकार ने राज्य में कुल 287 योजनाओं पर काम शुरू किया था, जिनपर अब तक पांच सौ करो़ड़ से अधिक खर्च हो चुके हैं लेकिन अधिकांश जगहों पर एसटीपी के मरम्मत और अपग्रेडेशन की जरूरत बताई जा रही है। बंगाल में भाटपा़ड़ा-ईस्ट, टीटाग़ढ़ और पानीहाटी समेत विभिन्ना जगहों पर 32 एसटीपी लगाए गए थे, जिनमें 15 में काम चालू किया जा सका, लेकिन आज की तारीख में सिर्फ तीन काम कर रहे हैं। बंगाल में जहां नदी की लंबाई 520 किलोमीटर है, वहां यह हाल है जबकि मिदनापुर बर्दवान, हल्दिया, आसनसोल, फरक्का जैसे इलाकों में अवैध बालू उत्खनन और पत्थर उत्खनन अबाध है। स्वयंसेवी संगठन गंगा मुक्ति मोर्चा के संयोजक अभिजीत मित्रा के अनुसार, कोलकाता और उपनगरों में कोलकाता मेट्रोपॉलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी (केएमडीए) और राज्य के बाकी हिस्सों के लिए पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग विभाग को नोडल एजेंसी बनाया गया है लेकिन दोनों संस्थाओं की रुचि इस महत्वपूर्ण परियोजना को लेकर कम ही रही है।
 

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