आपदा को लेकर आमजन को सचेत करने की जरूरत

हम किसी भी आपदा को रोक नहीं सकते। प्रकृति के ऊपर कोई बस नहीं है। हां, हम सचेत हो सकते है। अगर समय रहते सचेत हो गए, तो जान-माल की कम से कम हानि होगी। प्राकृतिक आपदा और बिहार का बहुत पुराना नाता रहा है। हर साल बिहार का एक बड़ा हिस्सा बाढ़ की चपेट में आता है। लाखों की जान-माल की हानि होती है। सरकार ऐन वक्त पर ही हरकत में आती है। तब तक बहुत देर हो जाती है। आमजन को ऐसी आपदा को लेकर समय रहते जानकारी मिल सके। इसके लिए बिहार सरकार ने बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकार का गठन किया है, जिसका काम आपदा के समय और पहले लोगों को सचेत करना है। प्राधिकार लोकहित में कैसे काम करता है? काम करने का प्रारूप क्या है? इस विषय में आपदा प्रबंधन प्राधिकार के उपाध्यक्ष अनिल सिन्हा से सुजीत कुमार बातचीत की। पेश है बातचीत का अंश।

प्रबंधन प्राधिकार कैसे काम करता है? सुखाड़ वाले जिलों की स्थिति पर आप क्या कहेंगे?

देखिए, सरकारी विभाग और प्राधिकरण अलग-अलग हैं। सरकारी विभाग यह तय करता है कि कौन से जिले में सूखा पड़ा और किस जिले में नहीं। हमारा प्राधिकरण आने वाले मौसम की तैयारी करता है, जिसमें हम शासन के अन्य हिस्से, जैसे पुलिस-प्रशासन, आपदा के समय अन्न-भोजन की तैयारी कराते हैं। नाव की स्थिति को ठीक कराते हैं। नाविकों को ट्रेनिंग देते हैं। इन सबका काम विभाग के पास रहता है। रही बात आपदा प्रबंधन की, तो यह जान लिजिए कि पूरी दुनिया में आपदा का स्वरूप बदल गया है। पहले आपदाओं का असर एडहॉक होता था। समाज और संस्था के लोग इसमें कैसे ट्रेनिंग करेंगे।

बाढ़-सुखाड़ जैसी प्राकृतिक आपदा तो आती रहती है। उससे बचाव कैसे संभव है?

आपदा की तैयारी या बचाव को हम जान-माल से तौलते हैं। जैसे, जितनी बड़ी मात्रा में जान जाती है, आपदा उतनी बड़ी मानी जाती है। आज की तारिख में यदि जापान में कोई आपदा आती है, तो वहां कोई नहीं मरता। इसलिए नहीं मरता, क्योंकि उसने उन सारी आपदाओं को ध्यान में रखकर अपनी पूरी तैयारी कर रखी है। वहां की इमारतें, लोगों के रिहायशी मकान, रेल लाइन यानि सब के सब आपदाओं को ध्यान में रखकर बनाई गई हैं। लेकिन हमारे यहां क्या होता है? जब हम किसी भी चीज को झेलते है, तो बात सामने आती है।

विकास के बढ़ते कदम के साथ विनाश से नजदीकी बढ़ती जा रही है। दोनों एक साथ ही चलते हैं। हमारे देश और राज्य दोनों की भौगोलिक संरचना ऐसी है कि एक ही समय में हमें प्रकृति के दो रूप देखने को मिल जाते हैं। कहीं पानी से तबाही हो जाती है, तो कहीं पानी के बिना तबाही। आपदा के बाद की परिस्थिति में ज्यादा से ज्यादा जान-माल की हानि होती है। इसका एक कारण आपदा रोधी तकनीक से बने निर्माण की कमी भी है। आने वाले सुरक्षित कल के लिए आपदा को ध्यान में रखकर निर्माण करने और उन्नत तकनीक की आज ही जरूरत है। कल तक बहुत देर हो जाएगी।
(अनिल सिन्हा, उपाध्यक्ष, बिहार आपदा प्रबंधन प्राधिकार)
गुजरात के भूकंप में स्कूल के सारे बच्चे मर जाते हैं। अस्पताल में सारे मरीज असमय काल के गाल में चले जाते है। यह दुर्भाग्य है कि ऐसा स्थिति पैदा होता है। इससे बचाव के लिए लांगटर्म कैपासिटी के हिसाब से काम करना होता है।

जहां तक बचाव करने की बात है, तो इसके लिए जन जागरण और शिक्षण बहुत जरूरी है। किसी भी आपदा को समय रहते पहचाना जाना और लोकेट करना, उसका आकलन करना और उसका निर्धारण करना, यह हमारा मुख्य काम है। लोगों को जगह-जगह पर जागरूक करना, उन्हें इस बारे में बताना हमारे काम का अहम हिस्सा है।

सन् 1998 में भारत और पूरी दुनिया में बाढ़ का प्रकोप था। उसी बात को ध्यान में रखकर एक सोच हुई कि कुछ ऐसी व्यवस्था हो कि ऐसे किसी भी आपदा की स्थिति पर नजर रख सकें। इसके लिए एक उच्चस्तरीय कमेटी बनी, जिसने दो साल के अंदर पूरे देश में पचास से भी ज्यादा बैठक किया। सन् 2005 में ऐसा ही एक और आदेश आया, जिसमें 2-3 चीजें साफ हुर्इं। आपदा का कांसेप्ट साफ हुआ कि आपदा क्या है। पहले तो कोई सूची ही नहीं थी कि आपदा क्या है। आपदा से बचने के लिए एक विशेष तौर पर विभाग बनाने की जरूरत महसूस हुई।

राष्ट्रीय स्तर पर पीएम चेयरमैन होता है, राज्य स्तर पर सीएम और जिला स्तर पर डीएम। क्योंकि आपदा के समय शासन-प्रशासन के हर हिस्से के लोगों की सहायता देनी होती है। हम किसी विशेष को उसका प्रमुख नहीं बना सकते। इसलिए जो प्रमुख होता है, उनको ही इसका प्रमुख बनाया जाता है ताकि वह ऐसे वक्त पर तुरंत निर्णय ले सकें।

आपदा की पूर्व सूचना को लेकर क्या व्यवस्था है?

आपदा के समय पूर्वानुमान का बहुत बड़ा रोल होता है। देखा जाए, तो भूकंप को छोड़कर किसी का भी पूर्वानुमान हम लगा सकते है। भूकंप का कोई पूर्वानुमान नहीं होता। वह कभी भी, कहीं भी आ सकता है, लेकिन बारिश और आंधी-तूफान का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। आंधी-तूफान के मामले में हमें लगभग 70 से 80 घंटे का समय मिल जाता है। यह समय बहुत अहम होता है। मौसम विभाग इन सारे पूर्वानुमान का आकलन करता है।

हर राज्य मौसम विभाग से जुड़े रहते है। सभी राज्यों में मौसम विभाग का ऑफिस एयरपोर्ट के पास होता है। हमारा देश विविधताओं से भरा हुआ है। एक ही समय में जब राजस्थान में सूखा पड़ता है तो बिहार में बाढ़ आ जाती है। कहीं बर्फ गिरती है तो कहीं जाड़े में मौसम नार्मल होता है।

बिहार में आपदा प्रबंधन प्राधिकार सन् 2010 से काम कर रहा है। तब से लेकर अब तक हमने लोगों को जागरूक करने का काम किया है। हां, यहां यह भी बताना जरूरी है कि हमने जो भी काम किया है, वह अभी हमारा बेबी स्टेप है।
(अनिल सिन्हा, उपाध्यक्ष, बिहार आपदा प्रबंधन प्राधिकार)
आपदा के समय मौसम विभाग से जुड़ कर उसकी बातों पर अमल करते हैं। वैसे कई बार मौसम विभाग का पूर्वानुमान भी सही निकलता है, तो कभी नहीं, लेकिन ताजा मामले में देखा जाए, तो फायलीन तूफान को लेकर मौसम विभाग का पूर्वानुमान सही रहा। इन मामलों में हम सरकारी टीवी चैनल और रेडियो से जुड़े रहते हैं। इसके अलावा मौसम विभाग से राज्य स्तर, राज्य स्तर से जिला स्तर और जिला स्तर से पंचायत और ग्राम स्तर तक समय रहते सूचना दी जाती है। लोगों को गाड़ी से सुरक्षित स्थानों पर ले जाना या हर संभव लोगों को आपदा के बारे में सूचना दी जाती है कि समय रहते लोगों को बचाया जाए।

किसी भी आपदा में कम से कम जान-माल की हानि हो, इसके लिए प्राधिकरण की क्या व्यवस्था है? कैसे सचेत करते हैं?

बिहार की जमीन तकनीकी रूप से बहुत खतरनाक है। कम से कम भूकंप के लिहाज से। हमने बिहार के जिलों को कई वर्गों में बांट कर रखा हैं। सन् 1934 के विनाशकारी भूकंप के बाद ऊपर वाले की कृपा से अभी तक ऐसी कोई आपदा बिहार में नहीं आई है, लेकिन फिर भी हमें काफी सचेत रहना होगा।

सबसे बड़ी बात यह है कि ऐसी हालात को लेकर प्राधिकरण कैसे काम करता है? देखिए, लोगों को जागरूक करना और आपदा से लड़ने की सूचना देना सबसे बड़ा हथियार है। लोगों को जागरूक करने के लिए ग्लोबल वर्ष अक्तूबर के दूसरे बुधवार को मानने का फैसला लिया गया और 29 अक्तूबर को राष्ट्रीय आपदा निराकरण दिवस मनाया जाता है। यह इसलिए कि ओडीसा में उसी वक्त साइक्लोन आया था।

फिर हमने सोचा कि केवल डे मनाने से काम नहीं होने वाला। कुछ ऐसी भी प्रक्रिया अपनाई जाए, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग सचेत हो सके। इसके लिए हमने जनवरी के पहले सप्ताह में भूकंप सप्ताह मनाने का निर्णय लिया। 14 से 20 अप्रैल तक अग्नि सुरक्षा सप्ताह और बाढ़ का सप्ताह मौसम के हिसाब से मनाया जाता है। इसके अलावा हम समय-समय पर समाचार-पत्र, दूरदर्शन में विज्ञापन देकर, टेबल कैलेंडर छपवा कर लोगों को आपदा से सचेत करते रहते हैं। ग्राम और पंचायत स्तर पर टेबल कैलेंडर छपवा कर स्कूलों में भेजतें है। इसमें कोई शक नहीं है कि सरकार हर कदम पर हमारा साथ दे रही है।

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