आर्सेनिक: भयावह विस्तार

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संसद में केन्द्रीय जल संसाधन मन्त्रालय से जुलाई 2004 में पानी में आर्सेनिक (संखिया) और फ्लोराइड के दूषण के विस्तार पर एक सवाल पूछा गया। मन्त्रालय ने जवाब दिया कि आर्सेनिक से पश्चिम बंगाल के आठ जिले- मालदा, दक्षिण 24-परगना, उत्तर 24-परगना, नादिया, हुगली, मुर्शिदाबाद, बर्धमान और हावड़ा प्रभावित हैं। इनके अलावा बिहार में सिर्फ एक भोजपुर जिला अत्यधिक आर्सेनिक से प्रभावित माना जाता है।

केन्द्र सरकार के पास पानी की गुणवत्ता की निगरानी करने के 15,000 जल केन्द्रों का एक नेटवर्क है। तो फिर इस नेटवर्क से सरकारी एजेंसियाँ दूषण की सीमा तय करने में क्यों असक्षम रहीं? लेकिन फिर एक आसान सी दलील दी जाती है कि पेयजल राज्य सरकारों का मामला है और इसलिए, इसकी गुणवत्ता बरकरार रखना

“केन्द्र सरकार की जिम्मेदारी नहीं है।”



दो एजेंसियाँ अपने राज्य के सहयोगियों के साथ भूजल पर निगरानी रखने के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। दिल्ली आधारित केन्द्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) पानी की गुणवत्ता की निगरानी और राज्य सरकारों को तकनीकी सलाह देने का काम करती है। सन 2003 में, इसने अनेक कुओं में आर्सेनिक का सर्वेक्षण करने का बीड़ा उठाया। परन्तु इसे उत्तर प्रदेश में विष का कोई तत्व नहीं मिला। यह सर्वेक्षण रिपोर्ट जिसे ‘डाउन टू अर्थ’ पाने में असमर्थ रही, इसके बारे में बताया जाता है कि इस एजेंसी ने मात्र छिछले कुओं की जाँच की, जिनमें आर्सेनिक होने की सम्भावना ही नहीं होती।

वे छुपाने की कोशिश करते हैं

क्या सीजीडब्ल्यूबी के पास छुपाने के लिए कुछ है?


इसका जवाब हाँ भी हो सकता है - एक रिपोर्ट, जिसे ‘डाउन टू अर्थ’ पाना चाहता था, सन 2003 में संचालित एक विशेष अभियान से सम्बन्ध रखती थी, जिसके जरिए देशभर के कुओं में आर्सेनिक की मौजूदगी की जाँच की गई।

“इस अभियान में पश्चिम बंगाल के आठ जिले और बिहार का एक जिला इससे प्रभावित पाए गए”

ऐसा एम मेहता का कहना है, जो केन्द्रीय जल संसाधन मन्त्रालय के वरिष्ठ संयुक्त आयुक्त (भूजल) हैं। बाद में हमें बताया गया कि सिर्फ उथले कुओं की ही जाँच की गई थी। परन्तु जब ऐसे जलाशयों में आमतौर पर आर्सेनिक नहीं पाया जाता है, तो फिर इसके दूषण के लिए उथले कुओं की ही क्यों जाँच की गई?

राजीव गाँधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन (आरजीएनडीडब्ल्यूएम) ग्रामीण जल आपूर्ति कार्यक्रमों की जिम्मेदारी उठाता है। 1998 तक केन्द्र सरकार को पानी की गुणवत्ता पर आरजीएनडीडब्ल्यूएम की उप-परियोजनाओं की मन्जूरी देनी पड़ी, जिनके तहत इस कार्यक्रम की 15 प्रतिशत अनुदान की राशि पानी की गुणवत्ता बनाए रखने में उपयोग की जाती है। परन्तु आज इन्हें राज्य सरकारों को सौंप दिया गया है। उन्हें प्रत्येक प्रखंड के 10 प्रतिशत भाग में एक प्राथमिक जल गुणवत्ता सर्वेक्षण करना पड़ता है, अगर इनमें दूषण की समस्या है तो पूरे प्रखंड का सर्वेक्षण करना पड़ता है। परन्तु स्पष्ट है कि इन ‘सर्वेक्षणों’ से कोई फायदा नहीं हो रहा है।

“हमारे 2004 के आँकड़ों के अनुसार, पश्चिमी बंगाल में 4,937 रिहायशी स्थल (100 लोग या अधिकतम 20 परिवारों के जमघट को एक रिहायशी स्थल माना गया है), बिहार में 45 और छत्तीसगढ़ में 11 रिहायशी स्थल आर्सेनिक के दूषण से ग्रसित हैं,”

आरजीएनडीडब्ल्यूएम के निदेशक राकेश बिहारी ने ‘डाउन टू अर्थ’ को यह जानकारी दी।

पानी की गुणवत्ता की निगरानी को काफी कम प्राथमिकता दी जाती है। “ज्यादातर रुपया दायरा बढ़ाने पर व्यय किया जाता है। हम यह सुनिश्चित कर पाने में असमर्थ हैं कि राज्य सरकारें इसकी गुणवत्ता की ओर विशेष ध्यान दें। पर हम उन्हें अनुदान देना बन्द भी नहीं कर सकते। क्योंकि इससे अनगिनत लोग मर जाएँगे,” बिहारी ने आगे बताया।

भयावह क्षेत्र

चंडीगढ़, पटियाला (पंजाब)

नई दिल्ली

पश्चिम बंगाल

सं.

जिला

सर्वेक्षण का वर्ष

एजेंसी

दूषण का स्तर (पार्टस पर बिलियन)

 

 

 

 

अधिकतम

न्यूनतम

1.

मालदा

Since  1988

जेयू

**

1,904

<3

2.

मुर्शिदाबाद

Since 1988

जेयू

3,003

<3

3.

नादिया

Since 1988

जेयू

 

<3

4.

उत्तर 24 परगना

Since 1988

जेयू

4,772

<3

5.

दक्षिण 24 परगना

Since 1988

जेयू

3,700

<3

6.

कोलकाता

Since 1988

जेयू

825

<3

7.

हावड़ा

Since 1988

जेयू

622

<3

8.

हुगली

Since 1988

जेयू

600

<3

9.

बर्धमान

Since 1988

जेयू

2,230

<3

बिहार

सं.

जिला

सर्वेक्षण का वर्ष

एजेंसी

दूषण का स्तर (पार्टस पर बिलियन)

 

 

 

 

अधिकतम

न्यूनतम

1.

पश्चिमी चम्पारन

2003-04

यूनीसेफ*

<25

<5

2.

पूर्वी चम्पारन

2003-04

यूनीसेफ

48

<5

3.

सीतामढ़ी

2003-04

यूनीसेफ

48

<5

4.

मधुबनी

2003-04

यूनीसेफ

<25

<5

5.

सुपौल

2003-04

यूनीसेफ

<50

<5

6.

अररिया

2003-04

यूनीसेफ

<50

<5

7.

किशनगंज

2003-04

यूनीसेफ

<10

<5

8.

पुर्णियाँ

2003-04

यूनीसेफ

<25

<5

9.

कटिहार

2003-04

यूनीसेफ

<25

<5

10.

पटना

2004

जेयू**

1,466

<3

11.

भोजपुर

2002

जेयू

1,654

<3

 

2003-04

यूनीसेफ

120

<5

12.

बक्सर

2003

जेयू

2,182

<3

 

2003-04

यूनीसेफ

<50

<5

13.

सारण (छपरा)

2004

जेयू

838

<3

14

वैशाली

2004

जेयू

288

<3

नोट

:

* यूनाइटेड नेशन्स चिल्ड्रंस फंड, नई दिल्ली **स्कूल ऑफ इन्वायरन्मेंटल स्टडीज, जादवपुर विश्वविद्यालय कोलकाता, पश्चिम बंगाल

उत्तर प्रदेश

सं.

जिला

सर्वेक्षण का वर्ष

एजेंसी

दूषण का स्तर (पार्टस पर बिलियन)

 

 

 

 

अधिकतम

न्यूनतम

1.

पीलीभीत

2003-04

यूनीसेफ*

<25

<5

2.

लखीमपुर

2003-04

यूनीसेफ

<50

<5

3.

बहराइच

2003-04

यूनीसेफ

<50

<5

4.

श्रावस्ती

2003-04

यूनीसेफ

<50

<5

5.

बलरामपुर

2003-04

यूनीसेफ

<50

<5

6.

सिद्धार्थ नगर

2003-04

यूनीसेफ

<10

<5

7.

महाराजगंज

2003-04

यूनीसेफ

<25

<5

8.

कुशीनगर

2003-04

यूनीसेफ

<25

<5

9.

बलिया

2003-04

जेयू**

3,191

<3

10.

वारानसी

2003-04

जेयू

499

<3

11.

उन्नाव

2003-04

यूनीसेफ

<5

<5

12.

लखनऊ

2003-04

यूनीसेफ

<10

<5

झारखंड

सं.

जिला

सर्वेक्षण का वर्ष

एजेंसी

दूषण का स्तर (पार्टस पर बिलियन)

 

 

 

 

अधिकतम

न्यूनतम

1.

साहिबगंज

2003-04

जेयू**

1,012

<3

छत्तीसगढ़

सं.

जिला

सर्वेक्षण का वर्ष

एजेंसी

दूषण का स्तर (पार्टस पर बिलियन)

 

 

 

 

अधिकतम

न्यूनतम

1.

राजनंदगाँव

1999

जेयू**

880

<3

 

1999

यूनीसेफ*

49

<5

2.

 

1999

यूनीसेफ

>10

>10

असम

सं.

जिला

सर्वेक्षण का वर्ष

एजेंसी

दूषण का स्तर (पार्टस पर बिलियन)

 

 

 

 

अधिकतम

न्यूनतम

1.

धेमाजी

2004

जेयू**

490

<3

2.

करीमगंज

2004

जेयू

303

<3


मई 2001, में, केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मन्त्रालय (एमओईएफ) ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के आधार पर जल गुणवत्ता मूल्यांकन प्राधिकरण की स्थापना की। एमओईएफ के सचिव की अध्यक्षता में इस प्राधिकरण में पानी की गुणवत्ता से सम्बन्धित अन्य मन्त्रालयों के प्रतिनिधि भी शामिल हैं। इस प्राधिकरण की जिम्मेदारियों में नदियों के पानी की गुणवत्ता में सुधार लाने और विभिन्न योजनाओं के यान्वयन पर निगरानी रखने की एक कार्य योजना तैयार करना शामिल है। परन्तु

“मृदुपेय, फलों के रस तथा अन्य पदार्थों में कीटनाशी तत्व और सुरक्षा के मानकों की संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट”

के अनुसार पानी की गुणवत्ता की निगरानी करने में इस प्राधिकरण की कुशलता को लेकर संदेह होने लगता है। क्योंकि इस रिपोर्ट से यह प्रतीत होता है कि इसमें किसी अन्य एजेंसी के विरुद्ध कोई कानूनी कार्यवाई कर पाने की शक्ति का अभाव है।

“आज भी हमारा काम फाइलों तक सीमित है। हर कोई इस प्राधिकरण के अस्तित्व को ही भुला बैठा है,”

इस प्राधिकरण के एक वरिष्ठ संयुक्त आयुक्त वी एन वाकपंजर ने इस बात को स्वीकारा।

अतः ऐसे में इस बात से इन्कार करना आसान हो जाता है कि आर्सेनिक की समस्या मौजूद है। काम कम हो जाता है। दबाव कम हो जाता है। भला दीनानाथ की किसको परवाह है?

फैलती समस्या

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