आसान नहीं है कचरा प्रबंधन का सवाल


बीते दिनों केन्द्र सरकार ने शहरों को कूड़े-कचरे से मुक्त करने के लिये कूड़े-कचरे के निस्तारण की चरणबद्ध मुहिम शुरू करने की घोषणा की है। इसके पहले चरण में देश की राजधानी दिल्ली सहित 20 प्रमुख शहरों को साल 2018 से पहले कूड़े-कचरे से मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा है। देखा जाये तो यह एक अच्छा कदम है और इसकी सर्वत्र प्रशंसा और सराहना की जानी चाहिए। गौरतलब है कि देश के शहरों में सालाना 6.2 करोड़ टन ठोस कचरा निकलता है। सरकार की मानें तो देश में प्रति वर्ष कचरे की मात्रा 1.3 फीसदी की वृद्धि दर के चलते देश में कचरे की समस्या ने भयावह रूप अख्तियार कर लिया है। इस समस्या का एकमात्र समाधान कचरे को अलग-अलग करके इसका निस्तारण ही है। आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के स्वच्छ भारत अभियान के तहत पर्यावरण विज्ञान केन्द्र द्वारा शहरों में कचरे के स्रोत के स्थान पर ही उसका निस्तारण किये जाने की योजना है। इससे जाहिर होता है कि इस समस्या ने समूचे देश को अपनी चपेट में ले लिया है। केन्द्र का यह अभियान दिल्ली के अलावा पटना, गया, पूना, इंदौर, गंगटोक और वाराणसी सहित देश के 20 शहरों में एक साथ शुरू किया जायेगा।

इस अभियान में शामिल सभी एजेंसियों को एक समूह के रूप में शामिल कर समयबद्ध तरीके से पूरा करने हेतु अलग-अलग जिम्मेदारियाँ दी जायेंगी जिसमें केन्द्रीय स्तर के निगरानी तंत्र की मदद ली जायेगी। इसका मकसद 2018 से पूर्व कचरे का शत प्रतिशत निस्तारण किया जाना है। इसके तहत ही पर्यावरण विज्ञान केन्द्र ने देश के 20 महानगरों में अलग-अलग किये गए विभिन्न श्रेणी के कचरे को निस्तारित किये जाने का अभियान स्थानीय निकायों के साथ मिलकर चलाने की पहल की है। इसमें स्थानीय नागरिक संगठनों को शामिल कर अलग-अलग किये गए ठोस कचरे को निस्तारण केन्द्रों तक ले जाने में मूलभूत सुविधाओं-संसाधन मुहैया किये जाने की योजना है।

इस मुहिम के तहत आवासीय इलाकों में कचरा अलग-अलग करने के नियम और प्रक्रिया का पालन करने की जिम्मेदारी स्थानीय निकायों को सौंपी गई है। नियम और प्रक्रिया तय करने से लेकर ठोस कचरे को स्थानीय निकायों द्वारा संचालित स्थानीय निस्तारण केन्द्रों तक पहुँचाने में तकनीकी विशेषज्ञता पर्यावरण विज्ञान केन्द्र पहुँचायेगा। यह जगजाहिर है कि अभी तक कूड़े-कचरे के निस्तारण की जिम्मेदारी स्थानीय निकायों के पास ही है। इसमें नाकामी का कारण भी स्थानीय निकायों की अक्षमता, लापरवाही और नाकारापन ही है। इसके कारण ही स्थिति ने भयावह रूप अख्तियार किया है। इसमें सरकारों के ढुल-मुल रवैये अहम भूमिका निभाई है। ऐसी स्थिति में पुनः स्थानीय निकायों के भरोसे कूड़े - कचरे के निस्तारण की उम्मीद बेमानी है। आजतक का इतिहास इसका ज्वलंत प्रमाण है। इसमें कोई दो राय नहीं कि कूड़े-कचरे की समस्या ने देश में विकराल रूप धारण कर लिया है।

विडम्बना है कि यह स्थिति तब है जबकि देश में कूड़े-कचरे के निस्तारण के लिये व्यवस्थित रूप से एक सरकारी विभाग है। इसके देशभर में हजारों कार्यालय हैं, हजारों-लाखों की तादाद में पूरे लाव-लश्कर और तामझाम के साथ कर्मचारी-अधिकारी तैनात हैं। उस हालत में कूड़ा कैसे भीषण समस्या बन गया, यह विचारणीय है। दरअसल कूड़े का जन्म ही अव्यवस्था से होता है। सच तो यह है कि यदि कूड़े के निस्तारण की समुचित व्यवस्था हो जाये तो समस्या विकराल ही न हो। इससे साफ जाहिर होता है कि कूड़े की समस्या की विकरालता के पीछे इसके निस्तारण की व्यवस्था के लिये नियुक्त विभाग की लापरवाही कहें या नाकारापन पूरी तरह जिम्मेदार है। इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता।

इसमें दो राय नहीं कि कूड़े के जन्मदाता हम ही हैं। वह बात दीगर है कि इस असलियत को हम सिरे से नकार दें। कूड़े को हम अपने जीवन से अलग भी तो नहीं कर सकते। न हम इससे बच ही सकते हैं। यह जीवन की एक वास्तविकता है। एक वास्तविकता यह भी है कि इसे हम देखना भी पसंद नहीं करते। क्योंकि यह असहनीय हो जाता है। कारण वह दुर्गन्ध है जो इसके पास हमें खड़ा तक नहीं होने देती। इसके चलते सांस की बीमारियों का खतरा तो रहता ही है। यह कई जानलेवा बीमारियों का कारण बन सकता है। इसमें क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज यानी फेफड़ों से सम्बन्धित बीमारी अहम है। चिकित्सकों की मानें तो जिन लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है उनको कूड़े से सबसे अधिक परेशानियाँ उठानी पड़ती हैं।

कई बार ऐसा होता है जबकि सांस की दिक्कत के बाद लिवर में पस तक पड़ जाता है। आँखों में जलन की समस्या तो आम बात है। ब्रोंकाइटिस, दमे की संभावना बनी ही रहती है। अधिक समय तक कूड़े के संपर्क में रहने की वजह से टीबी जैसी बीमारी होने की आशंका को नकारा नहीं जा सकता। अक्सर सड़कों पर कूड़े के ढेर रहने और उसके फैले रहने से डायरिया, पेट में इंफैक्शन, व कालरा जैसी बीमारियों का हमेशा अंदेशा बना रहता है। कई-कई बार तो कई-कई दिनों, हफ्ते और महीनों सड़क पर कूड़े के ढेर पड़े रहने से प्लेग की आशंका को झुठलाया नहीं जा सकता। इसका सबसे ज्यादा नुकसान पाँच साल तक के बच्चों को उठाना पड़ता है। इसी सबसे बचने की खातिर अक्सर लोग कूड़े के ढेर के पास से नाक पर रूमाल रखते गुजरते देखे जाते हैं।

समस्या की विकरालता का अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि देश के सभी 4041 शहरों, कस्बों के लिये स्वच्छ सर्वेक्षण-2018 की शुरूआत की गई है। इन शहरों-कस्बों का छह महीनों में 71 मानकों पर सर्वे किया जायेगा। यह सर्वे चार अंकों का होगा। इसमें शहरी क्षेत्र की तकरीब 40 करोड़ आबादी हिस्सेदार बनेगी। इस सर्वे में राज्यों की राजधानियों समेत एक लाख से ज्यादा जनसंख्या वाले 500 शहर और एक लाख से कम जनसंख्या वाले 3541 शहर व कस्बों को शामिल किया गया है। सर्वे के लिये तय मानकों में शौचमुक्त शहर के लिये 30 प्रतिशत, ठोस कचरे के एकत्रीकरण व परिवहन के लिये 30 प्रतिशत, ठोस कचरे के निपटान के लिये 25 प्रतिशत, सूचना, शिक्षा व संचार के लिये 5 प्रतिशत, क्षमता निर्माण के लिये 5 प्रतिशत, नवोन्मेष के लिये 5 प्रतिशत अंक निर्धारित किये गए हैं। आकलन के स्तर पर सेवा स्तर प्रगति के लिये 35, नागरिकों की प्रतिक्रिया के लिये 35 और स्वतंत्र फील्ड निरीक्षण के लिये 30 प्रतिशत अंक रखे गये हैं। अभी दिसम्बर 2017 का आखिरी पखवाड़ा है, मार्च 2018 में इसके पूरा होने का दावा किया जा रहा है। हालात गवाह हैं कि यह तब तक पूरा हो भी जायेगा, इसकी संभावना ना के बराबर ही है। असली समस्या तो यह है कि यह सर्वे कब तक पूरा होगा, यह तो भविष्य के गर्भ में है।

इतना तय है कि एक दुर्घटना के चलते देश की राजधानी का कूड़ा चर्चा में जरूर आ गया। यह अकेले दिल्ली की समस्या नहीं, वरन पूरे देश की समस्या है। इसके चलते एनजीटी तक को सरकार को लताड़ लगानी पड़ी कि दिल्ली से कूड़े के पहाड़ कब खत्म होंगे। उसने कहा कि सरकार को यह भी बताना होगा कि उसने गाजीपुर, भलस्वा, और ओखला लैंडफिल पर इन कूड़े के ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों को हटाने की खातिर अभी तक क्या किया है और उसके प्रयासों का कोई फायदा हो भी रहा है कि नहीं। क्यों लोगों को कचरे के ढेरों के नीचे दबाकर मार रहे हैं आप। कूड़े-कचरे के कारण वायु-जल प्रदूषण फैल रहा है सो अलग। कूड़े से पानी तक जहरीला हो गया है।

हकीकत यह है कि गाजीपुर से जहाँ दुर्घटना घटी और दो लोगों की दबकर मौत हुई, वहाँ से दो साल से पहले कूड़े के पहाड़ हटने की कोई उम्मीद नहीं है। हाई कोर्ट तक ने दिल्ली के उपराज्यपाल से तीन सप्ताह के भीतर राजधानी में कूड़ा-कचरा निस्तारण के लिये बनी नयी नीति को लागू करने का निर्देश दिया है। साथ ही कहा है कि नई नीति लागू होने के बाद लोगों को कूड़ा-कचरा शुल्क भी देना होगा। यह शुल्क घरों से कितना कूड़ा निकलता है, उसके आधार पर तय किया जायेगा। सुप्रीम कोर्ट तक ने इस बाबत दिल्ली के अधिकारियों को लताड़ लगाते हुए कहा कि कूड़ा-कचरा प्रबंधन पर दिल्ली सरकार गंभीर नहीं है। यह पूरे देश के लिये एक गंभीर समस्या है। हम आशा करते हैं कि दिल्ली में कूड़े-कचरे के प्रबंधन के बारे में एक निश्चित कार्य योजना और रणनीति तैयार की जाये ताकि इसे देश के अन्य हिस्सों में भी अपनाया जा सके। लेकिन इन हालातों में फिलहाल कूड़े-कचरे प्रबंधन की उम्मीद बेमानी है।
 

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