अस्तित्व बचाने की जंग लड़ता जनकल्याण तालाब


वाराणसी। कभी कई बीघे में फैले इस तालाब का रकबा आज सिमटकर लगभग 10 बिस्वा में ही शेष रह गया है। सरकारी दस्तावेजों में कहने को तो यह जगह आज भी जनकल्याण तालाब के नाम से दर्ज है जिसमें इसका रकबा 23 बिस्वा प्रदर्शित होता है। लेकिन वर्तमान में ना तो वहाँ कोई तालाब जैसी जगह दिखलाई पड़ती है और ना ही आसपास कही पानी की एक बूँद।

वे तालाब जो कभी लोगों के पानी की आवश्यकताओं को पूरा करते थे, आज खुद अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद करते दिख रहे हैं। वाराणसी में कभी सैकड़ों की संख्या में पोखरे, तालाब, कुण्ड, जलाशय और बावलियाँ हुआ करती थीं लेकिन वर्तमान में ज्यादातर या तो अवैध अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुकी हैं या फिर भू-माफियाओं द्वारा पाट दी गई हैं। यही दशा शहर के पार्कों और नालों की भी है जिस पर अतिक्रमणकारियों ने राजनीतिक संरक्षण की बदौलत कब्जा जमा लिया है।

इनमें से ही एक तालाब जन कल्याण तालाब है जोकि शहर का पॉश इलाका समझे जाने वाले महमूरगंज में स्थित है, आज इनकी भेंट चढ़ चुका है। कभी कई बीघे में फैले इस तालाब का रकबा आज सिमटकर लगभग 10 बिस्वा में ही शेष रह गया है।

सरकारी दस्तावेजों में कहने को तो यह जगह आज भी जनकल्याण तालाब के नाम से दर्ज है जिसमें इसका रकबा 23 बिस्वा प्रदर्शित होता है। लेकिन वर्तमान में ना तो वहाँ कोई तालाब जैसी जगह दिखलाई पड़ती है और ना ही आसपास कही पानी की एक बूँद। हाँ तालाब के बीचोंबीच एक बड़ा सा मकान खड़ा जरूर दिखलाई पड़ता है। यही नहीं इस तालाब के अस्तित्व को खत्म करने के लिये प्रशासन की ओर से चारों तरफ से चाहरदीवारी भी खड़ी कर दी गई है।

इस चाहरदीवारी के सहारे कई मकान खड़े हो गए हैं। तालाब के जिन हिस्सों पर अभी कब्जा नहीं हुआ है उस पर भू-माफियाओं द्वारा मिट्टी और कूड़ों का ढेर लगाकर उसके बचे-खुचे अस्तित्व को भी खत्म करने की तैयारी चल रही है। स्थानीय निवासियों ने इस सम्बन्ध में कई बार जिलाधिकारी और कमिश्नर से मिलकर शिकायत भी की लेकिन सत्ताधारी नेताओं और कुछ अफसरों के संरक्षण से फल फूल रहे भू माफियाओं पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।

सामाजिक कार्यकर्ता अभिनव त्रिपाठी की शिकायत पर एक बार कमिश्नर से कार्रवाई का भरोसा भी मिला तो सिर्फ तालाब की पैमाइश कर छोड़ दिया गया। इसी पैमाइश में तालाब का वर्तमान रकबा लगभग 10 बिस्वा है यह ज्ञात हुआ। यहाँ विचारणीय तथ्य यह है कि जनकल्याण तालाब पर बने अवैध मकानों को मकान नं. भी उपलब्ध हो चुका है। इस सम्बन्ध अभिनव त्रिपाठी कहते हैं कि राजनीतिक संरक्षण और भू माफियाओं के दबाव में अधिकारी ही तालाब पर कब्जा करवा रहे हैं।

जनकल्याण तालाब काफी पुराना और धार्मिक महत्त्व वाला तालाब रहा है। इसकी वर्तमान दशा देखकर क्षेत्रीय निवासियों में रोष है। कई बार प्रशासन को लिखित शिकायत दर्ज कराई गई है लेकिन आज तक उस पर कोई कार्रवाई ना होना प्रशासनिक अकर्मण्यता का प्रमाण है।

इस तालाब को पूरी साजिश के तहत खत्म किया जा रहा है। क्योंकि यह शायद दुनिया का पहला तालाब होगा जिसकी बाउंड्री कराई गई होगी। अभिनव त्रिपाठी का यह भी कहना है कि सिर्फ जनकल्याण तालाब इकलौता तालाब नहीं है जो भू माफियाओं की भेंट चढ़ा है। इसके अलावा बहुत से तालाब इसी तरह वजूद बचाने के लिये संघर्ष कर रहे हैं। शहर के कई पार्कों की भी यही स्थिति है।

जनकल्याण तालाब को लेकर जिलाधिकारी को पत्र लिख चुके एनएसयूआई के प्रदेश उपाध्यक्ष अमित राय का कहना है कि बिना किसी राजनीतिक संरक्षण के तालाब पर कब्जा करना सम्भव नहीं है। हम लोगों ने कई बार स्थानीय लोगों के साथ जाकर इसकी सूचना प्रशासन को दी है। आज तक उस पर कुछ नहीं हुआ बल्कि हर दिन कूड़ा और मलबा का ढेर तालाब में बढ़ता जा रहा है।

जनकल्याण तालाब काफी पुराना और धार्मिक महत्त्व वाला तालाब रहा है। इसकी वर्तमान दशा देखकर क्षेत्रीय निवासियों में रोष है। कई बार प्रशासन को लिखित शिकायत दर्ज कराई गई है लेकिन आज तक उस पर कोई कार्रवाई ना होना प्रशासनिक अकर्मण्यता का प्रमाण है। इस तालाब को पूरी साजिश के तहत खत्म किया जा रहा है। क्योंकि यह शायद दुनिया का पहला तालाब होगा जिसकी बाउंड्री कराई गई होगी।वह दिन दूर नहीं जब जनकल्याण तालाब का अस्तित्व पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा। यदि प्रशासन अब नहीं चेता तो हम सब आन्दोलन करने को बाध्य होंगे। स्थानीय निवासी और महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ के छात्रनेता अखिलेश उपाध्याय कहते हैं कि जनकल्याण तालाब पर कब्जे की कहानी तो सिर्फ एक बानगी भर है।

शहर में ना जाने कितने तालाब, पार्क इस तरह से अवैध अतिक्रमण की चपेट में हैं। यह प्रशासन की जिम्मेवारी है कि वह नगर के सभी ऐतिहासिक और पौराणिक महत्त्व के तालाबों और स्थानों के संरक्षण करें। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि प्रशासन के ही संरक्षण से इनके अस्तित्व पर खतरा मँडरा रहा है।

इस बाबत जब पूर्वापोस्ट ने नगर आयुक्त से बात कर उनका रुख जानने की कोशिश की तो उनसे सम्पर्क ही नहीं हो पाया। कई बार फोन और सन्देश भेजने के बावजूद उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं भेजा गया। इससे सहज ही अन्दाजा लगाया जा सकता है कि नगर का प्रशासन तालाबों को लेकर कितना फिक्रमन्द है। आमतौर पर प्रशासन पर सत्ता की हनक साफ तौर पर दिखाई पड़ जाती है।

भेलुपुर के चर्चित शाही नाले के ऊपर बने एक आलीशान होटल को गिराने के लिये जब तत्कालीन प्रशासक बाबा हरदेव सिंह ने बुलडोजर चलवाना शुरू किया तो रातों रात उनका तबादला कर दिया गया। इससे अन्दाजा लगाना मुश्किल नहीं कि यदि अब भी नगर का प्रशासन चुप है तो उसकी वजह क्या है।

बहरहाल यहाँ सवाल सिर्फ एक तालाब या पार्क का नहीं है। शहर के कई बड़े और पौराणिक महत्त्व के तालाबों और स्थानों का भी यही हाल है। माधोपुर, सिगरा का सकरा तालाब, शास्त्री नगर, सिगरा का चकरा तालाब, सोनिया, सिगरा का सोनिया तालाब, महमूरगंज का मोतीझील, भदैनी का सोनभद्र तीर्थ, अस्सी का पुष्कर तालाब, लहरतारा का कबीर पोखरा सब कमोबेश इसी स्थिति से गुजर रहे हैं।

इनमें से कुछ जगहों पर राजनीतिक रसूख रखने वाले लोगों के सहयोग से भू-माफियाओं ने बड़े-बड़े बंगले भी बनवा लिये हैं। पानी तो शायद ही किसी तालाब में देखने को मिले और यदि मिल भी गया तो वह हाथ-पैर धोने योग्य भी नहीं रहता है क्योंकि उसमें सूकर और भैंस जैसे जानवर ही अपना डेरा जमाए देखे जा सकते हैं।

ऐसी स्थिति में शहर के हालात को बयाँ करना मुश्किल है। एक तरफ पर्यावरणविद जल संरक्षण की बात कहते हैं और सरकार की तरफ से भी हर सरकारी भवनों पर रेनवाटर हार्वेस्टिंग लगाए जाने का प्रावधान भी किया गया है। लेकिन उन तालाबों और जलाशयों की सुध लेने वाला कोई नहीं जो जल संरक्षण के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण में भी बड़े मददगार साबित हो सकते हैं।

ऐसे में समाज के आम नागरिकों को अपनी जिम्मेवारी का निर्वहन करने की आवश्यकता महसूस की जा रही है, यदि हम इसी तरह चुप रहे तो एक दिन शहर में एक भी पार्क, तालाब, कुण्ड और तीर्थ शेष नहीं बचेंगे।

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