. . . और अब मुसीबत बनी नहरें

जिन गांवों में पानी की कमी का संकट है, में तकरीबन हर गांव में ऐसे सैकड़ों लड़के हैं जो शादी की उम्र पार कर चुके हैं। कुंवारे गाबरू गांवों में समस्या बन रहें हैं। पौरुष हरियाणवी समाज के लिए एक बड़ी समस्या के रूप में उभरा है। झज्जर के डीघल और बराहना किसानों की कहानी बहुत दुखदायी होती जा रही है। महम के कई गांव सूखे की मार से त्रस्त हैं तो कई गांवों में सेम ने किसानों के पूरे अर्थशास्त्र को चरमरा दिया है। राज्य सरकार इसका कोई हल निकालने में नाकामयाब रही है। कुछ वर्ष पहले हरियाणा में अध्ययन के लिए आए इस्राइल के सिंचाई विभाग के अधिकारी ने रोहतक के पास जवाहर लाल नेहरू नहर की लीकेज देखकर कहा, 'यदि इस्राइल में नहर लीक होने की घटना हो जाती तो वहां के सिंचाई मंत्री और प्रधानमंत्री त्यागपत्र दे देते। लेकिन हरियाणा में नहरों के ओवरफ्लो होने और अंतिम छोर के किसानों तक पानी न पहुंचने से सैंकड़ों गांवों के हजारों किसान बर्बाद हो रहे हैं।

अभी तक केंद्र और राज्य सरकार के प्रयास भी किसानों के कर्जे माफ करने तक है, उनके भविष्य के लिए ठोस योजना की कोई पहल पहले की सरकारों की भांति इस सरकार ने भी नहीं की है।

पानी की मार झेल रही सोनीपत के धनाना गांव की 65 वर्षीय मूर्ति कहती हैं, 'जिस दिन तें ब्याह के आई हूं उस दिन तै पां पाणी म्हैं सैं। कर्जा तारण ताहीं दस किले बेच दिए, अर इब्बी हालत ठीक कोन्या।’ (जिस दिन से शादी होकर इस गांव में आई हूं पानी में ही जीवन काट दिया, कर्ज उतारने के लिए 10 एकड़ जमीन बेच दी, लेकिन अब भी हालत ठीक नहीं है।) मूर्ति के चेहरे पर उसके देवर की दस एकड़ जमीन भी कर्ज के चलते बिकने का दर्द है।

पंजाब की भांति हरियाणा में असमान जल वितरण के चलते देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का नहरों के जाल बिछाने का मॉडल अब किसानों के लिए मुसीबत बन गया है। नहरों के किनारों और अंतिम छोर पर बसे गांवों में घूमने के दौरान कई चौंकाने वाले तथ्य उजागर हुए। हरियाणा में 65 प्रतिशत से अधिक भूमिगत जल खारा है।

नहरों के जाल से राज्य के बड़े भू-भाग पर भूमिगत जल ऊपर आ गया है। 0.5 मिलियन हेक्टेयर जमीन सेम और मिट्टी में लवणता की समस्या से ग्रस्त है। खेती की जमीन का 10 प्रतिशत हिस्सा बेकार पड़ा है। केंद्रीय एवं दक्षिण-पश्चिमी हरियाणा के सैंकड़ों गांव सेम और लवणता से ग्रस्त हैं।

रोहतक, झज्जर, जींद और यहां तक कि रेगिस्तानी भिवानी जिले के दादरी उपमंडल के दर्जनों गांव सेम से प्रभावित हैं। इन गांवों मेें किसानों के सामने रोजी-रोटी का संकट गहरा रहा है। रोहतक के निदाना के एक किसान होशियार सिंह बताते हैं, 'नौकरी आला के ब्याह हो ज्यां सै, म्हारै बरगां के बालक कंवारे रह ज्या सै।’

पूर्व विधायक और हरियाणा विधानसभा की जल आकलन समिति के पूर्व अध्यक्ष ओमप्रकाश बेरी के मुताबिक असमान जल वितरण अपराध को बढ़ावा दे रहा है। कारण कि काफी गांवों में कृषि उत्पादन असमान जल वितरण के चलते प्रभावित हुआ है। ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति चरमराई है। परिणामस्वरूप लड़के आय के शॉर्टकट ढूंढ़ रहे हैं।

मिट्टी में लवणता बढ़ने और सेम की समस्या से 3.5 लाख हेक्टेयर से अधिक जमीन खतरे में है। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि लवणता और सेम यदि कुछ समय और बनी रही तो जमीन लंबे समय तक बंजर हो जाएगी। खेती पर आश्रित राज्य की 70 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या के लिए यह एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है। उपरोक्त जिलों में जहां कई जगह नहरों के अंतिम छोर पर पानी की एक भी बूंद नहीं पहुंच रही है वहीं कई सौ गांव सेम से चौपट हो रहे हैं।

जिन गांवों में पानी की कमी का संकट है, में तकरीबन हर गांव में ऐसे सैकड़ों लड़के हैं जो शादी की उम्र पार कर चुके हैं। कुंवारे गाबरू गांवों में समस्या बन रहें हैं। पौरुष हरियाणवी समाज के लिए एक बड़ी समस्या के रूप में उभरा है। झज्जर के डीघल और बराहना किसानों की कहानी बहुत दुखदायी होती जा रही है। महम के कई गांव सूखे की मार से त्रस्त हैं तो कई गांवों में सेम ने किसानों के पूरे अर्थशास्त्र को चरमरा दिया है। राज्य सरकार इसका कोई हल निकालने में नाकामयाब रही है।

वर्ष 1989 में महम में चीनी मिल लगी थी। कई वर्षों तक कई गांव के किसानों ने मिल का गेट ही नहीं देखा यानी इन गांवों में गन्ने का उत्पादन ही नहीं हुआ। भैणी चंद्रपाल के रमेश ने कहा, 'म्हारै भाग में कुछ कोन्या।’ ये पानी की कमी ही थी कि महम और लाखनमाजरा के कई गांवों के सैंकड़ों किसान परिवार छत्तीसगढ़ जाकर बस गए हैं।

असमान जल वितरण से हरियाणा में सामाजिक-आर्थिक संकट भी गहरा रहा है। अमीर-गरीब की खाई बहुत गहरी हो रही है। इसके चलते ही राज्य के कई गांवों में किसानों ने आत्महत्याएं की हैंं। जींद जिले के कर्मगढ़, अमरगढ़ और बेलरखां ऐसे गांव हैं जहां पानी की अधिकता ने किसान परिवारों को कर्ज के नीचे दबा दिया है।

इन तीनों गांवों में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने आत्महत्या करने वाले किसान परिवारों का दुखड़ा भी सुना, लेकिन राज्य सरकार इस दिशा में कुछ ठोस नहीं कर पाई। उधर, विडंबना देखिए- भिवानी के लोहारू और तोशाम उपमंडल के कई दर्जन गांव पानी की बूंद-बूंद के लिए तरसते हैं। सोनीपत के धनाना की मूर्ति को पानी की अधिकता ने मारा तो उनके भाई निदाना के शमशेर को पानी की कमी के चलते अपना गांव छोड़ना पड़ा।

एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि नहरी इलाकों में जहां पानी की अधिकता है वहां केवल 43 प्रतिशत पानी ही गुणवत्ता वाला है। 48 प्रतिशत क्षेत्र में पानी की गुणवता सामान्य है और 11 प्रतिशत क्षेत्र में यह बिल्कुल खारा है। राज्य के पूर्वी हिस्से में खारापन अधिक है और यह केंद्रीय और पश्चिमी भाग में भी तेजी से बढ़ रहा है।

असमान जल वितरण से कहीं किसान मालामाल हो रहे हैं तो न्यूनतम सिंचाई जल से वंचित होने के कारण सैंकड़ों गांव करोड़ों के कर्ज में डूब गए हैं। साठ के दशक में भाखड़ा नहर के निर्माण से पूर्व-दक्षिण पंजाब के क्षेत्र में पश्चिमी यमुना नहर और आगरा नहर से सिंचाई की जाती थी।

पश्चिमी यमुना नहर की मुख्य पांच ब्रांच सिरसा, दिल्ली, भुटाना व हांसी थीं। इनसे जींद, हिसार, सोनीपत, झज्जर, रोहतक व दिल्ली के कुछ गांवों की सिंचाई की जाती है। भाखड़ा तक पानी मिलने के बाद सिरसा ब्रांच में पश्चिमी यमुना नहर का पानी चलना बंद हो गया और इस ब्रांच में जाने वाले पानी को हांसी, बुटाना और दिल्ली ब्रांच में चलाया जाने लगा।

भाखड़ा से पहले पश्चिमी यमुना कैनाल से जुड़ी नहरें महीने में एक सप्ताह ही चलती थी। भाखड़ा आने के बाद भाखड़ा सिस्टम व यमुना सिस्टम की नहरें दो सप्ताह तक चलने लगी। राज्य में विकास के जनक दिवंगत बंसीलाल ने दक्षिण हरियाणा में नहरों का जाल बिछा दिया, जनस्वास्थ्य विभाग के वाटर वर्क्स बनवा दिए।

इसके चलते पानी दो सप्ताह की जगह फिर से एक सप्ताह चलने लगा। 1978 में पंजाब, हरियाणा के बीच रावी-व्यास के पानी के आकलन के बाद 18 लाख एकड़ फुट पानी हरियाणा को दिया गया। एसवाईएल के पूरा न होने से यह 18 लाख एकड़ फुट पानी भाखड़ा की नहरों में ही चलाया जाने लगा।

असमान जल वितरण के विरुद्ध संघर्ष कर रहे जल योद्धा शमशेर नेहरा कहते हैं, 'सारी गड़बड़ यहीं से शुरू हुई, भाखड़ा की नहरें तीन सप्ताह तक चलने लगीं और जरूरत से ज्यादा नहरी पानी से भाखड़ा नहर के क्षेत्र में आने वाले किसान मालामाल हो गए जो अब पानी से ही बर्बाद हो रहे हैं। सिंचाई विभाग में भ्रष्टाचार, कुप्रबंधन के चलते नहरी पानी की चोरी से भी सेम और छोर की समस्याएं खड़ी हुई हैं। परिणामस्वरूप किसानों को अपनी अधपकी या पूर्णपकी फसलों से हाथ धोना पड़ता है।’

किसानों की आत्महत्याओं पर अध्ययन करने के बाद पता चलता है कि 'जींद के जिन गांव में किसानों और खेतीहर मजदूरों ने कर्ज के चलते आत्महत्याएं की हैं वे गांव पानी की मार से टूटे हैं।’ हरियाणा के प्रमुख जानकार और कृषि वैज्ञानिक डा. रामकुमार के मुताबिक, 'कुछ वर्ष पहले तक रोहतक और जींद में बड़ी संख्या में बाग थे और गन्ने की खेती भी खूब होती थी। बाग तो खत्म हो ही गए गन्ने का रकबा भी कम हो गया है। पानी की मार ने किसानों को कहीं का नहीं छोड़ा।’

वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. एचएस लोहान का अध्ययन बताता है, 'सेम और लवणता से हजारों किसान बर्बाद हो गए हैं। सरकार को सेम और लवणता की समस्या को खत्म करने के लिए किसानों की सहभागिता से नई परियोजनाएं शुरू करनी चाहिए।’

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