बाघों के गढ़ में घट रहे किसान
म.प्र. में बाघों के गढ़ कहे जाने वाले बांधवगढ़ नेशनल पार्क क्षेत्र में किसानों की संख्या लगातार घटती जा रही है। प्रदेश में कृषि उत्पादन रकवे और लाभ में बतायी जा रही 18 प्रतिशत की बढ़त के बावजूद वर्ष 2001 से 2011 के बीच उमरिया जिले में 17.2 फीसदी किसानों ने खेती छोड़कर अन्य कामों की राह पकड़ ली है। यही नहीं बीते दशक में कृषि क्षेत्र से जुड़े मजदूरों की संख्या में 14.4 फीसदी की बढ़त भी हुई है। किसानों की संख्या में जारी गिरावट और उसका अन्य मजदूरी के कार्यों में चले जाने का नतीजा यह है कि अब उमरिया जिले में महज 65,369 किसान ही बचे हैं जिससे किसानों का आंकड़ा वर्ष 2001के 39.8 प्रतिशत से गिरकर वर्तमान में 22.6 प्रतिषत पर आ पहुंचा है। ज्ञात हो कि उमरिया प्रदेळ का सबसे कम किसानों वाला जिला है। यह भी देखना होगा कि बाघों की सुरक्षा के नाम पर किए गए विस्थापन से कितने किसानों पर असर पड़ा है।
म.प्र.जनगणना निदेशालय द्वारा हाल ही में जारी आंकड़ों के आधार पर किए गए विष्लेषण में यह स्थिति सामने आई है। प्रदेश के ज्यादातर जिले में संचालित तमाम योजनाओं से एक तरफ जहां कुछ किसानों का ही उत्पादन बढ़ा है वहीं नए किसान तैयार करने तथा पुराने किसानों पर पड़ने वाले विपरीत प्रभावों को रोकने में प्रशासन के प्रयास कमजोर रहे हैं।
आंकड़ों में उलझा किसान
बात आंकड़ों की की जाए तो उमरिया जिले में 45,852 पुरूष तथा 19,517 महिला किसान हैं जबकि कृषि मजदूरों की संख्या 145,690 है। कुछ दिनों पूर्व यहां के किसानों द्वारा आत्महत्या किए जाने का मामला भी विधानसभा में गूंजा था जिसे राजनीतिक हो हल्ले के बीच भुला दिया गया। जनगणना के इस नतीजे से यह जाहिर हो चुका है कि किसानों की स्थिति जिले में बेहतर नहीं है। जिले के कृषि व उसके सहयोगी अमले द्वारा दिखाए जा रहे उत्पादन के बढ़ते हुए आंकड़े कुछ लोगों के लाभ को प्रदर्शित करते हैं। सच तो यह है कि आज भी कई छोटे-मझोले किसान खेती को घाटे का सौदा महसूस करते हुए उससे पलायन कर रहे हैं।
बढ़ रहा है किसानों पर संकट
जिले में कृषि विभाग द्वारा संचालित कार्यक्रमों और मनरेगा व भूमिसुधार कार्यों से ज्यादातर बड़े किसानों की जमीनों या सरकारी जमीनों पर विकास की योजनाएं बनायी गई। इससे अपने खेतों में काम करने की बजाए लोगों ने मजदूरी करना बेहतर समझा और जब उन्हें लगातार काम नहीं मिला तो उन्होने किसानी छोड़कर कहीं दूसरी जगह मजदूरी कर ली। जनगणना के जारी आंकड़ों में बड़ी संख्या उन लोगों की भी है जिन्हें 6 व 3 माह से भी कम समय तक काम मिला है ऐसे में किसानों पर बढ़ते संकट को समय रहते समझने होगा।