बैरन का दूसरा नैनीताल दौरा

8 Nov 2019
0 mins read
बैरन का दूसरा नैनीताल दौरा
बैरन का दूसरा नैनीताल दौरा

दिसम्बर, 1842 में पीटर बैरन दूसरी बार नैनीताल आए। बैरन 9 दिसम्बर को बरेली से भीमताल को रवाना हुए। उनके तराई पहुँचने तक रात हो गई थी। उन्होंने हल्द्वानी से पालकी में बैठकर रात में तीन घंटे का सफर तय किया। उसी रोज देर रात भीमताल पहुँचे गए। बैरन के नैनीताल की पहली यात्रा के दोनों साथी जे.एच.बैटन और कैप्टन वेलर भीमताल के बंगले में पहले से ही उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। इस बार बैरन अपने साथ बीस फीट लम्बी नाव और दो हल्के पतवार भी लाए थे। इस नाव को 60 मजदूरों ने बमुश्किल भीमताल पहुँचाया था। बैरन की भीमताल की यह पहली यात्रा थी। पर वे भीमताल की सुन्दरता से बिल्कुल भी प्रभावित नहीं हुए।

भीमताल के आस-पास और भी झीलें थीं। लेकिन बैरन की दृष्टि में नैनीताल की झील के सौन्दर्य का की मुकाबला नहीं था। बैरन का मानना था कि नैनीताल का दृश्य इतना मनमोहक है कि जितना देखो उतना ही ज्यादा खूबसूरत नजर आता है। बैरन की राय में पहाड़ के लोगों का सभी झीलों के प्रति आदरपूर्ण बर्ताव था। यहाँ के लोग झीलों को धार्मिक दृष्टि से देखते थे। इन झीलों को मानसरोवर झील की तरह पवित्र मानते थे। 10 दिसम्बर, 1842 को बैरन और उनके साथियों ने भीमताल की झील में नौकायन किया। बिशप हेबर से मुलाकात की। फिर बोट को मजदूरों के कंधों पर लादकर नैनीताल को रवाना कर दिया। बोट के क्षतिग्रस्त हो जाने की स्थिति में उसकी मरम्मत करने के लिए बैरन एक कारपेंटर और डामर भी अपने साथ लाए थे। स बार बैरन के साथ नौकर-चाकरों की लम्बी-चौड़ी फौज भी थी। 11 दिसम्बर को बैरन और उनके साथी सूर्यास्त के समय नैनीताल पहुँचे। बैरन के शब्दों में- जैसे ही मैं नैनीताल पहुँचा। आधा सूरज डूब चुका था। तालाब की सतह में आग की परत जैसी बिछी दिखाई दे रही थी। आयारपाटा की पहाड़ी काली और मार्बल की तरह चिकनी लग रही थी। इस बार मैं नैनीताल की विशालता और खूबसूरती से पिछली यात्रा के मुकाबले कहीं ज्यादा अचंभित था। पिछली बार मैं हिमालय के बर्फीले इलाकों की यात्रा के बाद नैनीताल आया था। इस बार मैदानी क्षेत्र से आया हूँ। इसलिए भी मुझे नैनीताल का सौन्दर्य अद्भुत नजर आ रहा है। बैरन के 1842 के दूसरे दौरे तक नैनीताल को सरकारी दस्तावेजों में अधिसूचित कर लिया गया था। आधे दर्जन से ज्यादा लोगों ने यहाँ मकान बनाने के लिए जमीन आवंटन हेतु आवेदन कर दिया था। इनमें कुछ को इजाजत मिल भी गई थी। कुमाऊँ के तत्कालीन कमिश्नर जी.टी.लुशिंगटन ने यहाँ एक छोटा सा घर बनाना शुरू कर दिया था। उन्होंने कुछ आउट हाउस भी बना लिए थे। उन्हीं में से एक आउट हाउस पीटर बैरन और उनके साथियों ने रहने के लिए लिया। कमिश्नर लुशिंगटन ने मल्लीताल बाजार के लिए स्थान तय कर बाजार की परिकल्पना भी तैयार कर ली थी और सार्वजनिक भवनों के लिए स्थानों का चयन हो गया था।

बाजार के लिए नियत स्थान में दुकानों के लिए लीज में जमीन लेने को बड़ी संख्या में लोग आने लगे थे। पहाड़ के लोग बहुत खुश थे। उन्हें उम्मीद थी कि भविष्य में नैनीताल एक फलता-फूलता नगर बनेगा। बैरन की नाव बहुत मुश्किल से दो दिन में भीमताल से नैनीताल पहुँच पाई। अनेक कठिनाई के बाद अंततः 12 दिसम्बर, 1842 को पीटर बैरन अपनी नाव को नैनीताल की झील तक पहुँचाने में सफल रहे। नाव झील में डाली गई। सबसे पहले बैरन और उनके साथियों ने नाव में बैठकर तेज रफ्तार के साथ पूरी झील की परिक्रिया की, जो कि करीब साढ़े तीन मील की थी। नैनीताल के तालाब के सीने पर तैरने वाली यह पहली नाव थी। झील में नाव के दौड़ने का यह नजारा देख पहाड़ के लोग अचम्भित थे। सभी लोग बच्चों की तरह खुश हो रहे थे। नौकायन के बाद बैरन और उनके साथी जब तालाब के किनारे जमीन पर आए तो वहाँ मौजूद लोगों ने उन्हें विष्णु भगवान के अवतार से जोड़कर देखा। बधाइयाँ दी। लोगों ने नाव को कमल का फूल बताया और बैरन को विष्णु की संज्ञा दी। बैरन और उनके साथियों ने झील में दूसरी बार नौकायन किया। उन्होंने इस बार भीड़ में मौजूद थोकदार नरसिंह बोरा को भी अपनी बोट में बैठा लिया। बैरन के साथ मौजूद जे.एच.बैटन नरसिंह को पहले जानते थे। क्योंकि थोकदार नरसिंह ने नैनीताल और इसके आस-पास की पहाड़ियों पर अपने स्वामित्व का दावा कुमाऊँ के तत्कालीन वरिष्ठ सहायक कमिश्नर जे.एच.बैटन की अदालत में ही किया था। जे.एच.बैटन की अदालत थोकदार नरसिंह का दावा खारिज कर चुकी थी। फिलहाल यह मामला प्रोविंसेस के गवर्नर या बोर्ड ऑफ रेवन्यू के समक्ष विचाराधीन था। बैरन की नाव जब तालाब के काफी भीतर चली गई, बैरन ने थोकदार नरसिंह से कहा कि वे अपना दावा वापस लेकर इस झील पर ईस्ट इंडिया कंपनी का स्वामित्व स्वीकार लें। बैरन ने थोकदार नरसिंह से कहा कि या तो वे अपना दावा वापस लें अन्यथा उन्हें उनकी कथित जायदाद के साथ यहीं छोड़ देंगे। बैरन ने कहा कि अगर वे नाव को डगमगाएँगे तो नरसिंह तालाब में डूब सकते हैं। ऐसी स्थिति में वे लोग खुद को बचा लेंगे। इस पर थोकदार नरसिंह अपना दावा वापस लेने पर राजी हो गए। चूंकि बैरन एक घुमक्कड़ी स्वभाव के इंसान थे, पेन्सिल और डायरी हमेशा उनके जेब में रहती थी।

बैरन ने अपनी जेब से डायरी और पेन्सिल निकाली और उस डायरी में थोकदार नरसिंह से तालाब पर उनका कोई दावा नहीं है लिखवा लिया। इस दौरान नाव में बैरन और उनके साथी गम्भीर बने रहे। उनके व्यवहार से नरसिंह को भी इस बात का पूरा यकीन हो गया कि इस मामले में बैरन और उनके साथी वास्तव में बेहद गम्भीर हैं। जब नाव तालाब के किनारे आई। सब लोग जमीन पर आ गए। बैरन ने वहाँ मौजूद सभी लोगों को यह डायरी दिखाई। फिर थोकदार नरसिंह को बताया गया कि यह उनके साथ किया गया महज एक मजाक था। यह जानकर वहाँ उपस्थित सभी लोग खिलखिलाकर हँसे और लोगों ने नरसिंह की खूब मजाक उड़ाई। बैरन के अनुसार पहाड़ में आमतौर पर किसी की ऐसी मजाक नहीं उड़ाई जाती है। बैरन एक मजाकिया स्वभाव के इंसान थे। बैरन ने खुद भी इस वाकये को सिर्फ एक मजाक बताया है. बैरन ने लिखा है कि पहाड़ के लोग भले ही गरीब क्यों न हो, पर वे समझदार थे। पढ़ना-लिखना नहीं जानते थे। फिर भी वहाँ मौजूद लोगों ने थोकदार नरसिंह से मजाक में लिखाए गए उस कागज के मजमून को बिना किसी अड़चन के समझ लिया था। बाद में थोकदार नरसिंह का स्वामित्व दावा अंतिम तौर पर खारिज हो गया। थोकदार नरसिंह ने उनसे पाँच रुपए प्रतिमाह के वेतन पर नैनीताल के बंदोबस्त का पटवारी नियुक्त करने का अनुरोध किया। पर नरसिंह पटवारी नियुक्त हो पाए होंगे, स पर संदेह है। संदेह के दो कारण हैं। पहला यह कि पीटर बैरन ईस्ट इंडिया कंपनी के मुलाजिम नहीं थे, वे एक सामान्य यूरोपियन नागरिक थे। लिहाजा बैरन को किसी भी व्यक्ति को सरकार पद पर नियुक्त करने का कोई अधिकार नहीं था। दूसरा 10 मार्च, 1847 के एक अदालती फैसले में नरसिंह को मौजा-चौसला, भाबर का प्रधान बताया गया है। नरसिंह के खिलाफ यह मुकदमा कालाढूंगी के प्रधान रामसिंह ने किया था। उस दौर में थोकदारों को अपने कब्जे-काश्त की जमीन का कर और नजराने से छूट के अलावा कोई विशेष अधिकार हासिल नहीं थे।

अंग्रेजों के कुमाऊँ में आने से पहले यहाँ किसी को भी भौमिक अधिकार प्राप्त नहीं थे। ट्रेल के 1822 के भूमि बंदोबस्त में पहली बार जमीनों की नाप-जोख और गाँवों की सीमाएँ तय हुईं थीं। इस बंदोबस्त में कब्जे-काश्त की आबाद जमीन को नाप जमीन माना गया था। वन, बंजर और गैर आबाद सम्पूर्ण भमि की मालिक सरकार थी। बैरन और थोकदार नरसिंह के बीच हुए इस प्रहसन से पहले सरकार नैनीताल की समस्त भूमि को सरकारी भूमि के रूप में अधिसूचित कर चुकी थी। नैनीताल में जमीन आवंटन की प्रक्रिया शुरु हो गई थी। आधा दर्जन लोग नैनीताल में जमीन पाने के लिए आवेदन कर चुके थे, इनमें से कुछ लोगों को जमीन आवंटित भी हो चुकी थी। पीटर बैरन ने खुद के लिए तीन स्थानों पर जमीन चिन्हित की थी। बैरन नैनीताल में जमीन पाने के लिए खुद सरकार से जद्दोजहद कर रहे थे। इस यात्रा के दौरान पीटर बैरन और उनके साथियों ने तीन दिन झील के इर्द-गिर्द बिताए। यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता का जमकर लुफ्त उठाया। उन दिनों नैनीताल में बर्फ की सफेद चादर बिछी हुई थी। मार्च महीने के आखिर या अप्रैल के पहले हफ्ते तक बर्फ के पिघलने की उम्मीद थी। नैनीताल की झील के ऊपर स्थित एक छोटी झील (सूखाताल) पूरी तरह बर्फ से जमी हुई थी। बैरन और उनके साथी इस जमी हुई झील में स्लाइडिंग करना चाहते थे। पर उनके पास स्कैट्स नहीं थे। उन्हें बर्फ में चलने पर भी ठंड का अहसास नहीं हो रहा था। नैनीताल की झील के पूरी तरह ऊँची पहाड़ियों से घिरा होने की वजह से इसी ऊँचाई में मौजूद दूसरी झीलों के मुकाबले यहाँ की जलवायु कहीं ज्यादा स्थित समझी जाती थी। उन दिनों नैनीताल का दिन का तापमान 12.2 डिग्री सेंटीग्रेट और रात का तापमान 7.7 डिग्री सेंटीग्रेट था। 1842 के जून के महीने में यहाँ आए एक यात्री ने नैनीताल का तापमान 13.8 डिग्री सेंटीग्रेट नापा था।

विशालता और खूबसूरती के लिहाज से तब नैनीताल में मौजूद पेड़ों का कोई मुकाबला नहीं था। इन सब खूबियों के चलते पीटर बैरन की राय थी कि नैनीताल की जलवायु इंग्लैंड से बेहतर नहीं तो उसके मुकाबले की अवश्य थी। 1842 में नैनीताल की झील में नौकायन करते समय बैरन और उनके साथियों का काला भालू दिखा। 14 दिसम्बर को कैप्टल वैरल और शेर की आमने-सामने की मुठभेड़ हुई। 14 दिसम्बर को कैप्टन वेलर अल्मोड़ा और बैरन एवं बैटन खुर्पाताल होते हुए निहाल नदी के रास्ते मैदान की ओर रवाना हो गए। बैरन 50 लोगों को नाव का स्टैण्ड बनाने की जिम्मेदारी के साथ अपनी नाव नैनीताल में ही छोड़ गए।

TAGS

nainital lake, nainital, habitation in nainital, history of nainital, nainital wikipedia, british rule in nainital, peter barron in nainital, peter barron.

 

Posted by
Attachment
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading